Lohri 2025 : लोहड़ी में क्यों खास है तिल और गुड़, भगवान विष्णु से गहरा संबंध
चंडीगढ़ , 13 जनवरी (ट्रिन्यू)
Lohri 2025 : जनवरी की ठंडी हवा में उत्तर भारत के लोग 13 जनवरी को लोहड़ी के त्यौहार के रूप में सर्दियों को अलविदा कहने के लिए एकत्रित होते हैं। पंजाब में जहां लोहड़ी को विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है वहीं, किसान अपनी फसल के लिए आभार व्यक्त करने और प्रार्थना करने के लिए आग जलाते हैं।
तिलोहरी से बनी है लोहड़ी
यह उत्सव मुख्य रूप से तिल और गुड़ से बनी पारंपरिक मिठाइयों को साझा करने पर भी केंद्रित है, जो सर्दियों के महीनों के दौरान सांस्कृतिक और व्यावहारिक दोनों तरह के महत्व रखती हैं। 'लोहड़ी' नाम से ही इस प्रिय उत्तर भारतीय फसल उत्सव में तिल और गुड़ का महत्व पता चलता है। दुनिया सबसे पहले 'तिलोहरी' से विकसित हुई - 'तिल' (तिल) और 'रोहड़ी' (गुड़) का एक संयोजन है।
समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए थे तिल
इन सामग्रियों को सिर्फ उनके स्वाद के लिए नहीं चुना जाता है बल्कि पौराणिक कथाओं से भी इसका गहरा संबंध है। लोककथाओं के अनुसार, तिल के बीज एक दिव्य संबंध रखते हैं क्योंकि यह ब्रह्मांडीय मंथन के दौरान भगवान विष्णु के माथे से निकले पसीने की बूंदों के रूप में उत्पन्न हुए थे। माना जाता है कि तिल में सौर ऊर्जा होती है जो उन्हें लोहड़ी के लिए विशेष रूप से उपयुक्त बनाती है।
आयुर्वेदिक मान्यता
आयुर्वेदिक नजरिए से तिल-गुड़ का मिश्रण सेहत के लिए भी फायदेमंद है, जो शरीर को गर्मी देता है और इम्यूनिटी भी बढ़ाता है। तिल और गुड़ खाने से तिल और गुड़ खाने से हड्डियों को कैल्शियम मिलता है और इससे एसिडिटी, कब्ज, अपच जैसी समस्याएं भी दूर रहती हैं। इसके अलावा तिल के लड्डू भूख बढ़ाने में भी मददगार हैं।