विविध कृतियों पर तार्किक दृष्टि
जतिंदर जीत सिंह
‘समग्र निष्पक्षता एवं बौद्धिक सामर्थ्य के साथ सहृदयता से की गई पुस्तक समीक्षा रचना, रचनाकार, समाज तथा साहित्य का सही मायने में भला करती है।’ लंबे अरसे से समीक्षा-कर्म को समर्पित लेखक, साहित्यकार सत्यवीर नाहड़िया के ये शब्द उनकी पुस्तक समीक्षाओं पर सटीक बैठते हैं। आलोच्य कृति ‘समीक्षा के उस पार’ उनकी पूर्व प्रकाशित पुस्तक समीक्षाओं का संग्रह है। हरियाणा, यहां के लोक जीवन, साहित्य, संस्कृति, बाल साहित्य समेत विविध विषयों पर 41 कृतियों की समीक्षाओं का यह संकलन न सिर्फ पाठकों, बल्कि लेखकों, शोधार्थियों, समीक्षकों के लिए एक मार्गदर्शक की तरह है। विषय का गहरा ज्ञान, उस ज्ञान को पाठकों तक सहज व सरल अंदाज में पहुंचाने की क्षमता, पुस्तक का बारीकी से विश्लेषण, उसकी खूबियों व खामियों का तार्किक मूल्यांकन उनकी हर समीक्षा में नजर आता है।
पुस्तक की कमियों को विनम्रता पूर्वक रेखांकित करते हुए वह आवश्यक सुझाव भी देते हैं। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. लालचंद मंगल ‘गुप्त’ ने इस कृति की भूमिका में इसे तटस्थ-निरपेक्ष और सत्य-तथ्य आधारित मानक समीक्षा-पुस्तक बताया है।
पुस्तक प्रेमियों के लिए यह कृति एक कोष की तरह है जो एक साथ कई पुस्तकों की अनूठी जानकारियां देकर उन्हें पढ़ने, सहेजने के लिए प्रेरित भी करती है। चूंकि ये समीक्षाएं बीते दो दशकों के दौरान आई पुस्तकों की हैं, ऐसे में इनके प्रकाशन वर्ष की जानकारी का अभाव अखरता है। पुस्तक की छपाई सुंदर, स्पष्ट है, लेकिन पृष्ठ 25-26 उलटा जुड़ा होने के कारण कुछ पल उलझाता है।
पुस्तक : समीक्षा के उस पार लेखक : सत्यवीर नाहड़िया प्रकाशक : समदर्शी प्रकाशन, गाजियाबाद पृष्ठ : 112 मूल्य : रु. 175.