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अनलॉक हुए सावन में लॉक हुई उम्मीदें

12:15 PM Aug 13, 2021 IST

‘एक बार आ जा, आ जा’ की करुण पुकार इंद्र देवता ने सुन ही ली। सावन के अनलॉक होते ही अधिकांश प्राणियों के मन मयूर की भांति नाच उठे हैं। उनमें से कइयों को तो वैसी ही फीलिंग आ रही है जैसी किसी ट्विटरधारी को उसके ट्विटर अकाउंट से हटाए गए ब्लू-टिक फिर से बहाल होने पर आती है। यह बात दीगर है कि मंत्रिमंडल विस्तार के बावजूद झंडी वाली कार न मिल पाने की वजह से किसी नेता के दिल में उठने वाली हूक की मानिंद, थोड़ी-सी मायूसी भी इस मौसम में घुली हुई है।

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सरकारी स्कूलों में अम्बर की छत के नीचे अपना भविष्य संवारने वाले बच्चे, कोरोना काल से पहले के उन दिनों को मायूस होकर ‘मिस’ कर रहे हैं जब वे ‘रेनी डेज़’ वाली छुट्टी के रोमांच से उत्साहित होकर धमाल मचाया करते थे। ऑनलाइन पढ़ाई से कब के बोर हो चुके नौजवानों को, कॉलेज में ऑफलाइन ज्ञान अर्जित करने के दौरान ‘भीगा बदन जलने लगा’ टाइप गीतों की सत्यता जांचने-परखने के लिए मिलने वाला सुनहरा अवसर इस बार भी हाथ से निकलता हुआ दिखाई दे रहा है। लेकिन इतना ज़रूर है कि संसद के मॉनसून-सत्र से ठीक पहले हुई इंद्र देवता की कृपा के चलते सरकार भी इस सत्र के लिए नया नाम ढूंढ़ने की कवायद से बच गई है। नहीं तो मॉनसून की गैर मौजूदगी में होने वाला मॉनसून-सत्र ‘आंख के अंधे नाम नैनसुख’ वाली कहावत याद दिला देता।

वैसे तो मॉनसून महाराज के पधारने से पहले ही बड़ी-बड़ी कंपनियों ने अपनी मुनाफे रूपी भैंस को पानी में जाने से बचाने के लिए ‘मॉनसून धमाका सेल’ के विज्ञापन रूपी छाते यत्र-तत्र-सर्वत्र तान दिए थे। ‘घर बैठे बारिश और आंधी के अलर्ट पाएं’ जैसी टैग लाइनों वाले ‘वैदर एप’ के विज्ञापनों की बौछारें, मॉनसून की गैर मौजूदगी में भी, लोगों की मोबाइल स्क्रीन को तर-बतर कर चुकी थीं। बहरहाल, मॉनसून के प्रकट होते ही, प्रशासन द्वारा बाढ़ से निपटने के लिए किए गए पुख्ता इंतज़ामों की कलई शीघ्र ही खुलने की उम्मीद मात्र से विपक्षी नेताओं की बांछें खिल गई हैं। बिजली के लम्बे-लम्बे घोषित-अघोषित कट्स के विरोध में धरना-प्रदर्शन कर रहे जन-सामान्य के आक्रोश से त्रस्त विद्युत विभाग के अधिकारियों ने अब जाकर राहत की सांस ली है।

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इन्द्र देवता के मेहरबान होते ही बिजली संकट से जूझ रही विभिन्न राज्य सरकारें और अधिक फजीहत से बच गई हैं। आइसक्रीम की दुकान पर उमड़ी भीड़ को देख एक अरसे से मन ही मन जल भुनकर राख हुआ ‘पकोड़े वाला’ मौसम के अंगड़ाई लेते ही गुनगुनाने लगा है – दुख भरे दिन बीते रे भइया, ग्राहक आयो रे!

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