लोन बालाएं और ज़िंदगी की बलाएं
धर्मेंद्र जोशी
वो दिन हवा हुए जब बैंक से लोन लेने में लोगों के जूते घिस जाया करते थे, यहां तक कि बैंक मैनेजर को साधने के चक्कर में चपरासी को चाय पिला-पिलाकर स्थायी जान-पहचान हो जाती थी। उसके बाद भी लोन होने की गारंटी नहीं होती थी, मगर आजकल तो उल्टी गंगा बह रही है। सुबह उठते ही किसी का फोन आए न आए बैंक से मधुर कंठ की स्वामिनी कन्या का लोन निवेदन प्रतिदिन बिना नागा किए अवश्य आता है, जिसके कारण कई लोगों को अपनी पत्नी का स्वर बहुत ही कर्कश मालूम पड़ता है। वे इस कल्पना में खो जाते हैं, कि काश! बैंक वाली बाला का मधुर, मनभावन स्वर प्रतिपल, कलि काल तक गुंजायमान रहे।
मेरे मित्र लकी बाबू के लिए एक दिन बैंक से आया फोन बहुत ही लकी रहा, लकी बाबू का हमेशा से ही मिजाज आशिकाना रहा, जब बैंक से लोन के लिए फोन आया, तो लकी बाबू अपनी आदत के अनुसार लोन के आग्रह को दिल पर ले बैठे। एक दिन दोपहर के समय बैंक पहुंच गए, जिस प्रकार बैंक वालों ने विशेष कर लोन डिपार्टमेंट की कन्या कर्मचारी ने उनकी खातिर तवज्जो की, उससे तो लकी बाबू गद्गद हो गए। लगे हाथ एक पर्सनल लोन का आवेदन भी दे आए, मगर निर्बल सिबिल स्कोर ने लकी बाबू की पोल खोल दी। पुराने लोन को समय पर न चुकाने के लिए डिफॉल्टर घोषित कर दिया गया था लेकिन ऐसे मौके पर बैंक की कन्या कर्मचारी ने लकी बाबू को सहारा दिया, और बदले में लकी बाबू दिल हार बैठे। फिर जीवन भर के बंधन में बंध गए। खैर, लोन भी मंजूर होना ही था। यही कारण है कि आज लकी बाबू एक महंगी चार पहिया वाहन के मालिक के साथ-साथ दो बच्चों के पिता भी हैं और लोन देने वाले बैंक के दामाद भी।
दूसरी ओर हमारे भीरु भैया हैं, जो लोन लेने के लिए दो कदम आगे बढ़ाते हैं और चार कदम पीछे हट जाते हैं। यही कारण है कि वे लोन लेने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं। वे ‘कर्ज को कलह’ मानने की पुरानी अवधारणा को आत्मसात कर रहे हैं, जबकि आजकल तो सारी चमक-दमक का असली आधार लोन की ही लीला है। बैंक भी जन्म से लेकर मृत्यु तक का सफर लोन के माध्यम से पूरा करने के लिए वचनबद्ध है। कई ऐसे उदाहरण भी देखने में आए हैं, कि जिन लोगों ने बैंक से लोन लेकर ऊंचा स्थान बनाया और कुछ समय बाद अपने हाथ ऊंचे कर वैश्विक यात्रा पर निकल गए, बैंक को आज भी उनके आगमन की प्रतीक्षा है।
एक दिन सुबह की पहली किरण के साथ ही हमारे पड़ोसी चंपू जी, जो कई बैंकों से भांतिभांति के लोन ले चुके हैं, जब उनके पास बैंक की बाला का लोन कॉल गया, तो वे भी एक और लोन लेने के लिए लालायित हो गए। हालांकि, उनकी तनख्वाह का अधिकतर हिस्सा पहले से ही लोन की किस्तों को चुकाने में चला जाता है। चंपू जी अक्सर यह कहते हैं कि शादी को छोड़ मैंने हर काम किस्तों में किया है। ये उनके सहित महंगाई के इस युग में कड़वी सच्चाई भी है।