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तपते द्वीप बनते शहरों में जीना हुआ दूभर

08:06 AM May 22, 2024 IST
तपते द्वीप बनते शहरों में जीना हुआ दूभर
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पंकज चतुर्वेदी

जब देश-दुनिया गर्मी में तपते थे तो हिमाचल प्रदेश में लोग सुकून की तलाश में आते थे। लेकिन इस साल इस हिमपात वाले राज्य के नौ जिलों में तापमान 42 डिग्री से पार है और सरकार ने वहां लू की चेतावनी दी है। गत 20 मई को ऊना का अधिकतम तापमान 44.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। वहीं हमीरपुर के नेरी का तापमान 44.1 डिग्री था। प्रदेश के मैदानी इलाकों में पिछले चार दिनों से तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रिकॉर्ड हो रहा है। गौर से देखें तो ये तपते शहर वे हैं जहां तेजी से शहरीकरण हुआ। जब हिमाचल के ये हाल हैं तो फिर पंजाब-हरियाणा में तो तापमान 45 पार होना कोई बड़ी बात नहीं। जिन स्थानों पर अस्वाभाविक रूप से तापमान बढ़ा, वहां कंक्रीट के जंगल रोपने में समाज अव्वल रहा है। बढ़ती आबादी वाले शहरों में तापमान बढ़ना केवल शारीरिक विकार ही नहीं , बल्कि कई और दिक्कतें साथ लेकर आता है। दिल्ली से सटे गाज़ियाबाद के सरकारी अस्पताल में बीते एक पखवाड़े से चिड़चिड़ेपन, दिमाग घूमने के मरीज आ रहे हैं। यही नहीं, सड़कों पर झगड़े बढ़ रहे हैं। काम करने में दिक्कतों के चलते कमाई कम हो रही और बिजली-पानी का खर्चा बढ़ रहा है।
भारत के बड़े हिस्से में सदियों से गर्मी पड़ती रही है लेकिन अब इसका दायरा बढ़ रहा है व दिन भी दुगने हो रहे हैं। प्रचंड गर्मी ने देश में पिछले 50 साल में 17,000 से ज्‍यादा लोगों की जान ली है। साल 1971 से 2019 के बीच लू चलने की 706 घटनाएं हुई हैं। लेकिन गत पांच सालों में चरम तापमान और लू की घटनाएं न केवल समय के पहले हो रही हैं, बल्कि लम्बे समय तक इनकी मार रहती है, खासकर शहरीकरण ने इस मौसमी आग में ईंधन का काम किया है, शहर अब जितने दिन में तपते हैं, रात उससे भी अधिक गरम हवा वाली होती है। आबादी से उफनते महानगरों में बढ़ता तापमान अकेले संकट नहीं होता, उसके साथ बढ़ती बिजली-पानी की मांग, दूषित होता पर्यावरण भी नया संकट खड़ा करता है।
अमेरिका की कोलम्बिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के एक अध्ययन के मुताबिक, बढ़ती आबादी और गर्मी के कारण भारत के चार बड़े शहर नई दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई और चेन्नई सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। कोलकाता में बढ़ते जोखिम के पीछे 52 फीसदी गर्मी तथा 48 फीसदी आबादी जिम्मेदार है। वैज्ञानिकों का कहना है कि बाहरी भीड़ को नही रोका गया तो तापमान तेजी से बढ़ेगा जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह साबित होगा। शहरों में बढ़ते तापमान के कई कारण हैं– सबसे बड़ा तो शहरों के विस्तार में हरियाली का नष्ट होना। भले ही दिल्ली जैसे शहर दावा करें कि उनके यहां हरियाली की छतरी का विस्तार हुआ है लेकिन हकीकत में यहां लगने वाले अधिकांश पेड़ पारम्परिक ऊंचे वृक्ष की जगह, जल्दी उगने वाले झाड़ हैं, जो धरती के बढ़ते तापमान की विभीषिका से निबटने में अक्षम हैं। ‘शहरी ऊष्मा द्वीप’ शहरों की कई विशेषताओं के कारण बनते हैं। बड़े वृक्षों के कारण वाष्पीकरण और वाष्पोत्सर्जन होता है जो कि धरती के बढ़ते तापमान को नियंत्रित करता है। बोगेनवेलिया जैसे पौधे धरती के शीतलीकरण प्रक्रिया में कोई भूमिका निभाते नहीं हैं।
महानगरों की गगनचुम्बी इमारतें सूर्य की तपन से गर्मी को प्रतिबिंबित और अवशोषित करती हैं। एक-दूसरे के करीब कई ऊंची इमारतें भी हवा के प्रवाह में बाधा बनती हैं, इससे शीतलन अवरुद्ध होता हैं। शहरों की सड़कें उसका तापमान बढ़ने में बड़ी कारक हैं। महानगर में सीमेंट और कंक्रीट के बढ़ते जंगल, डामर की सड़कें और ऊंचे मकान बड़ी मात्रा में सूर्य की किरणों को सोख रहे हैं। इस कारण शहरों में गर्मी बढ़ रही है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक तापमान में जितनी वृद्धि होगी, बीमारियां उतना ही गुणा बढ़ेंगी और जनहानि होगी। सड़क डामर की हो या कंक्रीट की, ये गर्मी को अवशोषित करती हैं और फिर तापमान कम होते ही उसे उत्सर्जित कर देती हैं। इसके अलावा, शहरों के ऊपर वायुमंडलीय स्थितियों के कारण अक्सर शहरी हवा जमीन की सतह के पास फंस जाती है, जहां इसे गर्म शहरी सतहों से गर्म किया जाता है। हालांकि शहरों को भट्ठी बनाने में इंसान भी पीछे नहीं। वाहनों के अलावा पंखे, कंप्यूटर, रेफ्रिजरेटर और एसी जैसे बिजली के उपकरण इंसान को सुख देते हैं लेकिन ये वहां का तापमान बढ़ने में बड़ी भूमिका अदा करते हैं। फिर कारखाने, निर्माण कार्य और बहुत कुछ है जो शहर को उबाल रहा है।
यदि इन शहरों से 50 किलोमीटर दूर किसी कस्बे या या गांव में जाएं तो गर्मी का तीखापन इतना नहीं लगता। गर्मी अपने साथ बहुत सी बीमारियां लेकर आ रही है। गर्मी के कारण शहर के नालों के पानी का तापमान बढ़ता है और यह जल जब नदी में मिलता है तो उसका तापमान भी बढ़ जाता है, जिससे नदी की वनस्पति और जीवों को खतरा है। शहरों की घनी आबादी संक्रामक रोगों के प्रसार का आसान जरिया होते हैं जिससे यहां बीमारों की संख्या ज्यादा होती है।
यदि शहर में गर्मी की मार से बचना है तो अधिक से अधिक पारम्परिक पेड़ों का रोपना जरूरी है, साथ ही शहर के बीच बहने वाली नदियां, तालाब, जोहड़ यदि निर्मल और अविरल रहेंगे तो बढ़ी गर्मी को सोखने में ये सक्षम होंगे। कार्यालयों के समय में बदलाव, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा, बहुमंजिला भवनों का इको फ्रेंडली होना, ऊर्जा संचयन सहित कुछ ऐसे उपाय हैं जो बहुत कम व्यय में शहर को भट्टी बनने से बचा सकते हैं। हां, अंतिम उपाय तो शहरों की तरफ पलायन रोकना ही होगा।

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