सुरंग में फंसी जिंदगियां
अपेक्षाकृत नयी हिमालय पर्वत शृंखलाओं में बड़े संरचनात्मक निर्माण कार्यों को लेकर लगातार सवाल उठाये जाते रहे हैं। खासकर जोशीमठ शहर के धंसने व हिमाचल में बढ़ते भूस्खलन के खतरों के बाद यह मांग विशेषज्ञों व आम लोगों के स्तर पर तेज हुई। बीते रविवार को सुबह जब देश दीपावली मनाने की तैयारी कर रहा था तो उत्तराखंड के उत्तरकाशी में यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर धरासू व बड़कोट के बीच सिल्क्यारा के निकट निर्माणाधीन सुरंग में मलबा गिरने से चालीस मजदूरों की जिंदगी में अंधेरा छा गया। दिवाली मनाने की तैयारी कर रहे बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा व उत्तर प्रदेश के इन श्रमिकों के परिजन सदमे के अंधेरे में डूब गए। दरअसल, ऑलवेदर रोड बनाने के क्रम में सिल्क्यारा की तरफ से सुरंग में 270 मीटर अंदर करीब तीस मीटर क्षेत्र में ऊपर से यह मलबा गिरा। अब पूरे देश को चिंता इन कामगारों की जान बचाने की है। वैकल्पिक रास्तों से ऑक्सीजन व भोजन देने के प्रयास हो रहे हैं। निस्संदेह, घुप्प अंधेरे में जीवन व मौत के बीच झूलते ये श्रमिक भारी मानसिक दबाव से गुजर रहे होंगे। बुधवार को दो श्रमिकों की तबीयत खराब होने की बात सामने आई। अब कोशिश है कि मशीन के जरिये 36 इंच की ड्रिल करके एक पाइप डालकर फंसे श्रमिकों को बाहर निकाला जाए। केंद्र सरकार भी हादसे को लेकर गंभीर है और सबसे बड़े मालवाहक हैलीकॉप्टर के जरिये एक हैवी ड्रिल मशीन उत्तराखंड पहुंच चुकी है। एक ड्रिल मशीन के खराब होने के बाद बुधवार को हैवी ड्रिल मशीन हवाई मार्ग से मंगवाई गई। यह मशीन एक सौ बीस मीटर तक टनल बना सकती है, जिससे बचाव कार्य में तेजी आएगी। मशीन को टनल तक ले जाने के लिये ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया है। साथ ही मशीन के लिये काम करने का ढांचा भी तैयार कर लिया गया है। श्रमिकों के परिजनों समेत पूरा देश प्रार्थना कर रहा है कि फंसे श्रमिक शीघ्र सुरक्षित बाहर निकलें।
बहरहाल, केंद्र व राज्य सरकार समेत तमाम बचाव कार्य से जुड़े संगठन धंसी सुरंग में फंसे लोगों को बचाने में जुटे हैं। लेकिन फिर भी सुरंग निर्माण कार्य में वह वैकल्पिक व्यवस्था उपलब्ध कराने में चूक जरूर हुई है, जो ऐसी स्थिति में श्रमिकों के बचाव में सहायक हो सकती है। साथ ही पहाड़ की संवेदनशीलता का भी ध्यान रखना जरूरी था। खासकर जोशीमठ में शहर धंसने व लगातार बढ़ी भूस्खलन की घटनाओं के मद्देनजर अतिरिक्त सावधानी जरूरी थी। लंबे समय से हिमालयी रीजन में संवेदनशील इलाकों में संरचनात्मक विकास से जुड़े हादसों को ध्यान रखते हुए विकास नीति पर नये सिरे से विचार करने की जरूरत महसूस की गई है। निस्संदेह, सिल्क्यारा सुरंग बहुचर्चित चारधाम हाईवे प्रोजेक्ट का एक भाग है, जिसको लेकर विगत में भी सवाल उठे थे। यह मामला कालांतर में शीर्ष अदालत तक भी पहुंचा था और इसे क्षेत्र के पारिस्थितिकीय संतुलन के लिये घातक बताया गया था। जिस बाबत सरकार ने कोर्ट में दलील दी थी कि परियोजना देश की सुरक्षा के लिये अपरिहार्य है। कोर्ट ने इस आधार पर प्रोजेक्ट को मंजूरी भी दी थी। निस्संदेह, चीन की तरफ से लगातार मिल रही चुनौती के मद्देनजर हर मौसम में काम करने वाली चौड़ी सड़क की जरूरत है ताकि जल्दी से सेना की कुमुक सीमांत इलाकों में पहुंचाई जा सके। फिलहाल, देश की प्राथमिकता फंसे श्रमिकों को बचाने की है। लेकिन कालांतर इस पहलू पर भी विचार किया जाना चाहिए कि सुरंग धंसने की वजह क्या है। जाहिर है सुरंग बनने से पहले पहाड़ी इलाके में वैज्ञानिक तरीके से भौगोलिक अध्ययन हुए होंगे। पता लगाया जाना चाहिए कि बड़े प्रोजेक्टों के साथ जमीन धंसने की घटनाएं क्यों बढ़ रही हैं। पर्यावरणविद् लंबे समय से इस हिमालयी क्षेत्र में बड़ी विकास परियोजनाओं का विरोध करते रहे हैं। क्या ऐसे प्रोजेक्ट बनाते समय विशेषज्ञों की सिफारिशों पर अमल होता है? क्या आज हमें हिमाचल व उत्तराखंड में विकास के मॉडल पर नये सिरे से विचार करने की जरूरत है? जरूरत इस बात की भी है कि संवेदनशील पहाड़ी इलाकों की स्थिति को महसूस करते हुए विकास का स्वरूप तय किया जाए।