महिला सरोकारों की जीवंत बानगी
शील कौशिक
सूर्य की पहली किरण के साथ जिंदगी का फ़लसफ़ा शुरू होता है और ज़िंदगी का इंद्रधनुषी चेहरा दिखाई पड़ता है, जिसमें हर दिन एक नया अनुभव, नई घटना, नई पीड़ा, नया विश्वास, और नई प्रेरणा होती है। संवेदनशील कथाकार रोचिका शर्मा के मन में इनसे संबंधित संवेदना ने जब-जब मन के द्वार खटखटाए, तो भावोद्गार के फलस्वरूप इन कहानियों का जन्म हुआ है।
संग्रह की सभी पन्द्रह कहानियां समय और समाज से संपृक्त हैं। ‘बट ज्वाइंट’ कहानी में जहां एक ओर बलात्कार पीड़िता सौम्या का अंतर्द्वंद दिखाया गया है, वहीं दूसरी ओर समाज की रुग्ण व दोगली मानसिकता उजागर हुई है। फिर भी परिवार के संयुक्त प्रयासों से सौम्या को यह समझाने में सफल हो गए कि बलात्कार होना भी मात्र एक हादसा है, जिसे अपने जहन से जल्दी से निकाल देना चाहिए।
‘छोटी सी बात’ कहानी में समाज के रीति-रिवाजों को दरकिनार कर यदि वधू पक्ष की लाचारी को समझा जाए तो रिश्तो में परस्पर प्रेम, सौहार्द वापस आ सकता है। कहानी में राज की मां के विचारों का खुलापन व सहृदयता मानवीय कृत्य है।
‘जो रंग दे वही रंगरेज’ प्रेम का वास्तविक अर्थ समझाती दार्शनिक बोध की शीर्ष कहानी है, जिसमें प्रतिस्थापित किया गया है कि प्रेम सिर्फ हर्फों में नहीं… भावना में छिपा होता है।
‘वी आर इडियट’ एक प्रेरक कहानी है, जिसमें अभिभावकों के लिए संदेश है कि वे बदलते समय के साथ अपने भीतर बदलाव लाएं और नई पीढ़ी की आवश्यकताओं को समझ कर सामंजस्य बैठाने का प्रयत्न करें।
झकझोर कर रख देने वाली गंभीर विषय की कहानी है, ‘गूंंज’ जिसमें समाज का वीभत्स रूप सामने आया है। ‘मन का फ्रेम’ कहानी में परंपरागत सौतेली मां के छवि के विपरीत परिवार में सांमजस्य बिठाने वाली मां के रूप में अभिव्यक्त किया है। संग्रह की अन्य कहानियां साधारण हैं।
रोचिका शर्मा स्वयं महिला है, इसलिए अधिकतर कहानियांं महिला सरोकारों की जीवंत बानगियां हैं। परिपक्व विचारों व आधुनिक सोच के साथ-साथ सामाजिक जीवन मूल्यों को बचाने की लेखिका की प्रतिबद्धता प्रशंसनीय है। बिना किसी तथाकथित स्त्री विमर्श तथा आधुनिकता का लबादा ओढ़े, यथार्थ के धरातल पर बुनी इन कहानियों के पात्र यथा श्वेता (दूसरा रुख), माही (छोटी सी बात), सौम्या (बट ज्वाइंट), महिमा (सुनहरा साहिल) आदि हमारे आसपास के विश्वसनीय पात्र हैं।
सरल, सहज, रोचक भाषा में अभिव्यक्त इन कहानियों में उर्दू, अंग्रेजी के शब्दों का भरपूर प्रयोग किया गया है, जिससे भाषा में रवानगी आई है। कहानियों में अलंकारों का प्रयोग चार चांद लगा देता है, जैसे ख्वाबों का आईना, पूर्णमासी के चांद-सा चेहरा, आंखों से आंसुओं का ऐसे झरना जैसे पतझड़ के किसी मुरझाई बेल से एक-एक कर पत्ते झड़ रहे हों, आदि।
पुस्तक : जो रंग दे वो रंगरेज़ कहानीकार : रोचिका अरुण शर्मा प्रकाशन : बोधि प्रकाशन, जयपुर पृष्ठ : 128 मूल्य :Rsरु. 150.