एक नाकामी की सौ कथाएं सुनिए
शमीम शर्मा
बरसों पहले पंचतंत्र की कहानियों की रचना एक राजा के नासमझ बेटों को ज्ञान देने के लिये की गई थीं। दो बिल्ली और एक बंदर की कहानी हम सबने सुनी है जिसमें एक रोटी को आपस में बांटने की लड़ाई में एक बंदर ने सुझाया था कि वह उनको रोटी बराबर-बराबर बांट कर दे देगा। पर वह कूटनीति से पूरी रोटी का स्वयं ही मालिक हो गया। कहानी ने संदेश दिया था कि दो बिल्लियों की लड़ाई में बंदर को फायदा मिलना सहज है। इस बार हरियाणा के चुनावों में यह कहानी सबको याद आ रही है।
‘नाच न जाने आंगन टेढ़ा’ कहावत का सार भी चुनाव खत्म होने पर हर बार याद आता है। यानी नाचना ठीक से खुद को नहीं आता और कमी निकालने लगते हैं कि आंगन ही उबड़-खाबड़ है। अन्यथा बहुत शानदार डांस होता। अध्यात्म शैली में इसी बात को कहें तो कहंेगे कि हमें अपनी कमी कभी देखनी ही नहीं आई। अंतर्मन में झांकने का सवाल ही नहीं। एक अकुशल कारीगर हमेशा अपने औजारों के सिर ही अपनी असफलता का ठीकरा फोड़ता आया है। इन चुनावों में भी यही हुआ। हारने वालों ने बेचारी ईवीएम के सिर पर इल्जामों का गट्ठर टिका दिया। और ईवीएम मश्ाीनें नेताओं की बेचारगी पर टुकुर-टुकुर मुस्कराने लगीं। एकाध ने तो चीख कर पूछ भी लिया होगा कि जहां तुम्हें बहुमत मिला है, वहां क्यों नहीं कहते कि हमारी जीत गलत है।
परंपरा तो यह थी कि हारो या जीतो, चुनाव के बाद जनता को थैंक यू कहा जाये पर वह रस्म अब पानी भरने जा चुकी। चुनावों के बाद अब तो सवाल दागे जाते हैं कि मेरे खाते के वोट इधर से उधर हुए तो कैसे हुए। पर नेताओं को कैसे बतायें कि ये कोई बैंक का खाता तो है नहीं कि जितने भी काले-पीले पैसे हम जमा करवायेंगे, हमेशा हमारे ही रहंेगे। वोट तो वो धन है जो खिसकने में क्षण भी नहीं लगाता। जैसे ही नेताओं में अहंकार, भ्रष्टाचार या अन्य विकार दिखाई देता है, वोट मिल्खा सिंह की स्पीड से भागने लगते हैं।
एक सेना के योद्धा यदि आपस में ही टकरायेंगे और राह का कांटा समझकर निकालने का दुस्साहस करेंगे तो सामने वाला उनकी कीकर जड़ से उखाड़ फेंकने में देरी क्यूं करेगा। प्राचीन काल में भी कई बार हाथी अपनी ही सेना को रौंद दिया करते। इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ।
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एक बर की बात है अक नत्थू फौज मैं भर्ती होण चल्या ग्या। बड्डा अफसर उसका इंटरव्यू लेते होये बूज्झण लाग्या- अगर तुम्हें एके 47 देकर दुश्मनों से लड़ने पहाड़ों पर भेज दिया जाये तो तुम क्या करोगे? नत्थू बोल्या- सर जी भेज कै देखो, उड़ै पहोंचते ही लट्ठ सा गाड़ द्यूंगा।