टेढ़ी-संकरी राहों से प्रगति की रेखा
रेनू सैनी
जीवन में रेखाओं का बहुत महत्व होता है? हस्तरेखा, ज्यामिति रेखा, जीवनरेखा, भाग्यरेखा एवं प्रगति रेखा। प्रगति रेखा भाग्य से अधिक मेहनत का परिणाम होती है। मैक्स ओ’ रेलिंग कहते हैं कि ‘किस्मत का मतलब है वे कष्ट और वंचनाएं जिन्हें झेलने में आप नहीं हिचकिचाएं, वे लंबी रातें जिनमें आप काम करते रहे। किस्मत का अर्थ है वे अपॉइंटमेंट्स जिन्हें आपने हमेशा निभाया, वे ट्रेनें जो आपने बिना चूके पकड़ीं।’ अगर आपने रेखाओं को देखा है तो यह अवश्य जानते होंगे कि बहुत कम रेखाएं ऐसी होती हैं जो सीधी होती हैं। समानांतर और सीधी रेखाएं बहुत कम लक्ष्य तक जाती हैं। उनका कोई अंत नहीं होता। जब हम सड़क पर जाते हैं तो गंतव्य तक पहुंचने का मार्ग आड़ा-टेढ़ा ही होता है। मार्ग में अनेक मोड़ आते हैं। सड़क पर सीधा-सीधा चलने से आप अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच सकते।
ईसीजी से सभी परिचित हैं। यह टेस्ट हृदय की इलेक्ट्रिक गतिविधियों को दर्ज करता है। ईसीजी में यदि स्क्रीन पर सीधी रेखा आती है तो इसका अर्थ होता है कि व्यक्ति जीवित नहीं है। इससे भी इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रकृति ने व्यक्ति का जीवन इस तरह का बनाया है कि वह कठोर परिश्रम करे और स्वयं को स्वस्थ रखे। प्रगति की रेखा भी कई मोड़ों से होकर गुजरती है, अर्थातzwj;् प्रगति के लिए व्यक्ति को अनेक चुनौतियों एवं कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। सभी सफल व्यक्तियों की प्रगति रेखा संकरी, टेढ़ी-मेढ़ी थी। लेकिन उन्होंने प्रयास करने नहीं छोड़े। जो व्यक्ति प्रयास करना नहीं छोड़ता, निरंतर लगा रहता है, उसके आगे बड़े से बड़ा व्यक्ति भी हार मान लेता है और उसकी मेहनत के आगे श्रद्धा से नत हो जाता है।
बिहार में पले-बढ़े बिधान चंद्र राय पढ़ने में मेधावी थे। उन्हें कोलकाता के मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिल गया। पिता साल भर कुछ रुपये भेजते रहे, लेकिन आर्थिक अभावों के कारण धीरे-धीरे रुपये आने कम और फिर बंद हो गए। किसी तरह उनकी छात्रवृत्ति का इंतजाम हुआ तो उन्होंने तय किया कि पढ़ने में कभी उन्नीस नहीं रहना है। कोलकाता मेडिकल कॉलेज के डिसेक्शन हॉल में एक शिलालेख पर लिखा था, ‘तुम्हें जो भी करने को मिले, अपनी पूरी शक्ति से करना।’ बिधान चंद्र बार-बार इस उद्धरण को पढ़ते और जीवन में अमल करते।
आखिरकार उन्होंने भारत में मेडिकल की पढ़ाई पूरी की, अब उनकी तमन्ना इंग्लैंड के सबसे अच्छे मेडिकल कॉलेज में पढ़ने की थी। वे वहां गए तो सेंट बारथोलोम्यूज हॉस्पिटल के डीन डॉक्टर उन्हें देखते ही व्यंग्य से बोले, ‘एक तो एशियाई, उसमें भी भारतीय और ऊपर से बंगाली। पढ़ाई छोड़ो और किसी अस्पताल में काम करो।’ बिधान अलग मिट्टी के बने थे। वे जानते थे कि सफल होने के लिए मुश्किलों को सहजता से पार करना है। उन्होंने इस व्यंग्य की परवाह न की और नियम से डीन के पास जाते रहे। डेढ़ महीने में वे करीब तीस बार डीन के पास गए और यही कहते रहे कि ‘यहां से शिक्षा प्राप्त करनी है।’ आखिरकार डीन का हृदय पसीज गया। बस फिर क्या था, बिधान की इच्छा पूरी हो गई और वे तन-मन से पढ़ाई में जुट गए। तय समय से पहले ही सर्जरी व मेडिसन की पढ़ाई पूरी करके उन्होंने साबित कर दिया कि भारतीय धुन और दृढ़ निश्चय के पक्के होते हैं। वे सफलता का मार्ग जानते हैं, पहचानते हैं।
उपाधि सौंपते हुए डीन की आंखें नम हो गईं और वे बिधान चंद्र राय को बधाई देते हुए बोले, ‘जब आप मेरे पास पहली बार आए, तभी आपको इस संस्थान में प्रवेश नहीं देने के अपने आचरण पर मुझे वास्तव में बहुत शर्म आ रही है। जाइए, आगे जब भी आप किसी छात्र को मेरे पास अपने पत्र के साथ भेजेंगे, तो मेरा वादा है, मैं एक सवाल नहीं करूंगा।’ गांधीजी के चिकित्सक रहे बिधान चंद्र राय 14 साल पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री भी रहे। भारत रत्न बिधान चंद्र राय का भारत में चिकित्सा की नींव रखने में महत्वपूर्ण योगदान रहा।
बिधान चंद्र राय ने अपनी लगन और मेहनत से प्रगति की टेढ़ी-मेढ़ी और मुश्किल रेखा को पार कर इतिहास रच दिया। इतिहास वे ही रचते हैं जो चुनौतियों को मुश्किल न समझ कर उन्हें अवसर मानते हैं और फिर दृढ़-संकल्प के साथ जुट जाते हैं। सीधी-सादी रेखा पर चलने का मतलब है एक ही ढर्रे चलना। जो लोग लीक से परे चलते हैं, प्रकृति भी बांहें फैलाकर उनका स्वागत करने के लिए तैयार खड़ी होती है।
कुछ लोग जीवन में परिवर्तन को बाधा मानते हैं और रुक जाते हैं, जबकि परिवर्तन भी तरक्की की एक सीढ़ी है। अगर आप उस सीढ़ी पर चढ़ने से इंकार कर देंगे तो मंज़िल तक कैसे पहुंचेंगे। अगर जीवन में परिवर्तन न होते तो प्रकृति और प्रगति की रेखाएं बिल्कुल सीधी होतीं। एक बात और दिमाग में आ रही है कि सोचिए सीधी रेखा पर चलकर सभी लोग एक जैसे बनते। फिर जीवन में विविधता कैसे और कहां से आती? प्रगति की रेखा सीधी नहीं है, इसलिए जीवन में संघर्ष है, मार्ग में हर्ष है। खुशी मनाइए कि प्रगति की रेखा आड़ी-टेढ़ी रेखाओं के रूप में चुनौतियां लेकर आती है और कुछ लोगों को मिसाल बना कर जाती है।