चट्टानों को कवच बनाने वाला समुद्री घोंघा लिम्पेट
वीना गौतम
सागर में ऐसे बहुत से घोंघे पाए जाते हैं, जिनके आवरण तम्बू की तरह होते हैं एवं ये किसी चट्टान अथवा ऐसी ही सतह से मजबूती से लटके रहते हैं। इन घोंघों को लिम्पेट कहते हैं। विश्व के सागरों और महासागरों में अनेक प्रकार के लिम्पेट पाए जाते हैं। इनमें सामान्य लिम्पेट सर्वाधिक विख्यात है। इसके साथ ही अन्य महत्वपूर्ण लिम्पेट है मोरपंखी लिम्पेट, कछुआ-कवच लिम्पेट, की होल लिम्पेट तथा स्लिपर लिम्पेट।
लिम्पेट उन चट्टानी स्थानों पर ज्यादा बड़ी संख्या में पाये जाते हैं जहां सागर की लहरें टकराती हैं। सागर में जहां ताजा पानी होता है, वहां यह पनपता है और तेजी से इसका विकास होता है। ये जिस चट्टान पर रहता है, उसकी ऊंचाई का इसके आवरण पर सीधा प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि ऊंची चट्टानों वाले लिम्पेट के आवरण मोटे और लंबे होते हैं, निचली चट्टानों पर रहने वाले लिम्पेट के आवरण छोटे और पतले होते हैं। नर मादा से छोटा होता है।
लिम्पेट के दो प्रमुख भाग होते हैं पहला आवरण दूसरा कोमल शरीर। आवरण की लंबाई 2.5 मिलीमीटर से लेकर 75 मिलीमीटर तक होती है। चट्टानों पर यह अपने आवरण के बलबूते पर अपनी मजबूत पकड़ बनाता है। यह घोंघा बनने के बाद सबसे पहले एक उपयुक्त चट्टान तलाश लेता है और उससे चिपक जाता है। लंबे समय तक उसी से चिपका रहता है। इसका आवरण धीरे-धीरे बढ़ता रहता है और चट्टान घिसती रहती है। बाद में इसका आवरण पूरी तरह से चट्टान में स्थित हो जाता है। यही इसका स्थायी निवास होता है। यह जिस भाग पर चिपकता है, उस भाग पर एक उथला-सा आकार बन जाता है। यह आकार उसके आकार के बराबर होता है। उसे वहां से सरलता से अलग नहीं किया जा सकता। यह ज्वार भाटे के समय भी चट्टान से चिपका रहता है। यही वजह है कि यह सागर की लहरों से भी बचा रहता है और शत्रुओं से भी सुरक्षित रहता है।
लिम्पेट का दूसरा प्रमुख भाग इसका शरीर है। इसका शरीर अन्य समुद्री घोंघों के समान होता है। इसके छोटे-छोटे गलफड़े होेते हैं। यदि यह अपने गलफड़ों के भीतर थोड़ा-सा भी पानी भर ले तो यह सुरक्षित हो जाता है और ज्वार भाटे के समय पानी न मिलने पर यह सूखता नहीं है। इसका एक पैर होता है, पैर का रंग ग्रे और हरा होता है। पैर की सतह चिपचिपी होती है। यह पूरी तरह शाकाहारी जीव है। यह चट्टानों पर उगने वाली काई, समुद्री पौधे खाता है। यह पैर की सहायता से नहीं चलता बल्कि सिर और संस्पर्शिकाओं की सहायता से लटक-लटककर चलता है। भोजन करने के बाद यह अपने निवास पर लौट आता है। यह अपना घर कभी नहीं भूलता। जो लिम्पेट भोजन की तलाश करते करते ज्यादा दूर निकल जाते हैं, वे अपना रास्ता भूल जाते हैं।
इसकी कुछ जातियों में नर और मादा अलग होते हैं। कुछ में यह उभयलिंगी होते हैं। कुछ जातियों में बाह्य निषेचन पाया जाता है और कुछ में आंतरिक निषेचन। कुछ जातियों के लिम्पेट अपने सेक्स बदलते रहते हैं। यह जन्म के समय नर होते हैं और लंबे समय तक नर बने रहते हैं। ये समागम काल में शुक्राणु छोड़ते हैं जैसे-जैसे ये बढ़ते हैं इनका सेक्स बदल जाता है। नर से मादा होने के बाद ये फिर मादा से नर बन जाते हैं। कुछ जातियों में जीवन में सिर्फ एक बार, कुछ साल में एक बार और कुछ जीवनभर कई बार सेक्स बदलते हैं। इसको प्रजनन के लिए किसी अन्य साथी की जरूरत नहीं पड़ती। इसके शरीर से निषेचित अंडे बाहर निकलते हैं।