लोक कलाअों में सांस्कृतिक धरोहर का उजास
डॉ. मोनिका राज
दीपावली, जिसे दीपों का त्योहार कहा जाता है, भारत का एक प्रमुख और अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व न केवल आध्यात्मिकता और धार्मिकता का प्रतीक है, बल्कि भारतीय लोककला और सांस्कृतिक धरोहर का भी अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करता है। दीपावली के अवसर पर विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में विविध लोककलाएं, जैसे रंगोली, दीप सजावट और पारंपरिक हस्तशिल्प देखने को मिलते हैं।
रंगोली : रंगों का उत्सव
रंगोली, भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो दीपावली पर विशेष रूप से बनाई जाती है। यह एक पारंपरिक कला है जिसमें विभिन्न रंगों के चावल, फूलों की पंखुड़ियों और रंगीन पाउडर का उपयोग करके सुंदर डिज़ाइन बनाए जाते हैं। रंगोली न केवल घर की सुंदरता को बढ़ाती है, बल्कि यह लक्ष्मी माता का स्वागत करने का एक तरीका भी है।
रंगोली बनाने की कला प्राचीन काल से चली आ रही है। इसे सामान्यतः महिलाएं घर के दरवाजे और आंगन में बनाती हैं, ताकि यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर करे और सकारात्मकता को आकर्षित करे। भारत के विभिन्न राज्यों में रंगोली के निर्माण के तरीके भिन्न होते हैं, जो उस क्षेत्र की संस्कृति और परंपरा को दर्शाते हैं।
राजस्थान में रंगोली को ‘आलपन’ कहा जाता है। यहां की महिलाएं रंग-बिरंगी चूड़ियों और कपड़ों का उपयोग करके विशेष डिज़ाइन बनाती हैं। राजस्थान की रंगोली में पारंपरिक ज्यामितीय आकृतियों के साथ-साथ स्थानीय देवी-देवताओं के चित्र भी बनाए जाते हैं। यह कला वहां की सांस्कृतिक धरोहर को संजोए हुए है। महाराष्ट्र में रंगोली में ज्यामितीय आकृतियां और देवी-देवताओं के चित्र बनाए जाते हैं। इस क्षेत्र की रंगोली के डिज़ाइन आमतौर पर अधिक बारीक और विस्तृत होते हैं। दीपावली पर, यहां की महिलाएं ‘अलपना’ नामक रंगोली बनाती हैं, जिसमें मिट्टी के रंगों का उपयोग किया जाता है। तमिलनाडु में, यह कला ‘कोलम’ के नाम से जानी जाती है, जिसमें चावल के आटे से सफेद डिज़ाइन बनाकर उस पर रंगीन पाउडर डाला जाता है। यहां की महिलाएं सुबह-सुबह कोलम बनाती हैं, जिससे दिन की सकारात्मकता बढ़े और घर में सुख-समृद्धि आए। कोलम के डिज़ाइन में अक्सर फूलों और पत्तियों के आकार होते हैं, जो इसे और भी सुंदर बनाते हैं।
रोशनी का त्योहार
दीपावली के दौरान घरों की सजावट में दीपों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह दीपक और मोमबत्तियां न केवल घर को रोशन करती हैं, बल्कि सुख-समृद्धि का भी प्रतीक हैं। विभिन्न क्षेत्रों में दीप सजाने के तरीके भिन्न होते हैं, जो प्रत्येक राज्य की विशेषता को दर्शाते हैं।
उत्तर भारत में, घरों को मिट्टी के दीपों से सजाया जाता है, जिन्हें ‘दीपक’ कहते हैं। ये दीपक तेल या घी से जलाए जाते हैं और इन्हें आमतौर पर घर के दरवाज़े और आंगन में रखा जाता है। उत्तर भारत में, घरों के अलावा सार्वजनिक स्थानों पर भी दीप जलाए जाते हैं, जिससे पूरे वातावरण में उजाला फैल जाता है। दक्षिण भारत में दीयों को रंग-बिरंगी मोमबत्तियों और बिजली की रोशनी से सजाया जाता है। यहां के लोग दीयों को एकत्रित कर के विशेष रूप से ‘दीपम’ नामक पूजा करते हैं, जिसमें दीप जलाकर पूजा की जाती है। इसके अलावा, गुजरात में दीपावली के दौरान घरों में विशेष सजावट की जाती है। यहां लोग कैंडल्स और रंगीन रोशनी का प्रयोग करके अपने घरों को एक अद्भुत वातावरण प्रदान करते हैं।
पंजाब में, दीयों के साथ-साथ ‘बत्तियों’ का भी उपयोग किया जाता है। यह दीपावली का विशेष आकर्षण होता है, जो विशेष रूप से सिखों के लिए महत्वपूर्ण है। यहां लोग ‘भाई दूज’ के अवसर पर अपने भाई-बहनों के लिए विशेष दीयों की सजावट करते हैं, जो भाई-बहन के रिश्ते को प्रगाढ़ बनाता है।
पारंपरिक हस्तशिल्प
दीपावली के अवसर पर भारत के विभिन्न राज्यों में पारंपरिक हस्तशिल्प का भी बड़ा महत्व है। ये हस्तशिल्प केवल सुंदरता का प्रतीक नहीं हैं, बल्कि ये प्रत्येक क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान को भी दर्शाते हैं।
उड़ीसा में, पेंटिंग्स और काष्ठशिल्प की विशेषता होती है। यहां की ‘पट्टचित्र’ कला दीपावली पर विशेष रूप से लोकप्रिय होती है, जिसमें देवी-देवताओं के चित्र बनाए जाते हैं। पट्टचित्र को बनाने में कागज़ या कपड़े का उपयोग किया जाता है और इसमें जीवंत रंगों का प्रयोग होता है।
कर्नाटक में, मिट्टी के बर्तन और दीपक बनाने की कला प्रचलित है। यहां के कुम्हार दीपावली के लिए विशेष प्रकार के मिट्टी के दीपक बनाते हैं, जिन्हें घर में रखा जाता है। इन दीपों को सजाने के लिए स्थानीय रंगों का उपयोग किया जाता है, जो उन्हें और भी आकर्षक बनाते हैं।
पंजाब में, फुलकारी कढ़ाई का प्रयोग दीपावली पर सजावट के लिए किया जाता है। महिलाएं रंगीन धागों से बनाई गई चादरों और कपड़ों का उपयोग करके अपने घरों को सजाती हैं। फुलकारी की कढ़ाई में फूलों और अन्य प्राकृतिक आकृतियों का चित्रण होता है, जो इसे अद्वितीय बनाता है।
लोककला का प्रकाश
दीपावली पर लोककला का प्रदर्शन न केवल धार्मिक आस्था को व्यक्त करता है, बल्कि यह विभिन्न सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण का भी एक माध्यम है। प्रत्येक राज्य की लोककला उसके इतिहास, परंपरा, और सामाजिक जीवन को दर्शाती है। यह कला न केवल पीढ़ी दर पीढ़ी संचालित होती है, बल्कि यह समाज में एकजुटता और सांस्कृतिक विविधता को भी बढ़ावा देती है। लोककला में न केवल सौंदर्य और कला का तत्व होता है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान का भी एक अभिन्न हिस्सा है। इसके माध्यम से, लोग अपनी पहचान, विचार और भावनाओं को व्यक्त करते हैं। यह कला न केवल उत्सवों में बल्कि दैनिक जीवन में भी महत्वपूर्ण होती है। दीपावली केवल एक त्योहार नहीं है। यह एक सांस्कृतिक उत्सव है जिसमें भारतीय लोककला का अद्भुत संग्रह है। विभिन्न राज्यों में रंगोली, दीप सजावट और पारंपरिक हस्तशिल्प के माध्यम से हम न केवल इस त्योहार को मनाते हैं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक धरोहर को भी संजोते हैं। दीपावली हमें याद दिलाती है कि कला और संस्कृति का संरक्षण कितना महत्वपूर्ण है, और यह हमारे समाज के समृद्ध इतिहास और विविधता को दर्शाती है।
दीपावली का पर्व हमें न केवल आनंद और उत्साह देता है, बल्कि यह हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है और हमारी सांस्कृतिक धरोहर का सम्मान करने का अवसर प्रदान करता है। हम सभी को चाहिए कि हम इस पर्व के माध्यम से अपनी लोककला और संस्कृति को संजोएं, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस अद्भुत धरोहर को जान सकें और आगे बढ़ा सकें। दीपावली का यह त्योहार न केवल दीपों का उत्सव है, बल्कि यह हमारी संस्कृति, परंपरा और कलात्मकता का भी महापर्व है। हमें इस पर्व को मनाने का हर संभव प्रयास करना चाहिए, ताकि हमारी सांस्कृतिक धरोहर हमेशा जीवित रहे।