मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

बयानवीरों के तीर से बेहाल जिंदगी

11:36 AM Jun 23, 2023 IST

मृदुल कश्यप

Advertisement

यूं तो नेता का व्यक्तित्व किराने या कपड़े की दुकान में सजे इने-गिने आइटमों के बजाय वैरायटी वाला सुपर मार्केट होता है जिसमें बचपन से पचपन तक की सभी नर-नारियों के लिए कुछ न कुछ होता है। बावजूद इसके, एक तूफानी नेता के लिए बयानबाज होना वैसा ही जरूरी है जैसा कि एक नवजात फिल्म अभिनेत्री के लिए स्पेशल फोटो सेशन करवाना। एक हाहाकारी बयानबाज बनने के लिए सैकड़ों स्टंटबाजों, रंगबाजों, पतंगबाजों और हवाबाजों से उनके सीक्रेट ऑफ सक्सेस उड़ाने पड़ते हैं तब कहीं जाकर सफलता आप की टोपी पर बैठती है।

हर छुटभैये, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय नेता की दिनचर्या चाय-दातुन निगलने के बाद बयान उगलने से ही प्रारंभ होती है। नेता बयान का जमीन से हवा, पानी, आकाश सभी तरफ मार करने वाला प्रक्षेपास्त्र लेकर चलते हैं। जब वह बिना लक्ष्य गड़गड़ करके चलाते हैं तो लगता है कि बयान धरती-आसमान सब को हिला कर रख देगा। जब उसे लक्ष्य करके दागते हैं तो लगता है आसमान में छेद हो जाएगा और सूरज पृथ्वी पर आ टपकेगा।

Advertisement

विभिन्न फ्लेवर के नेताओं द्वारा विभिन्न फ्लेवर के बयान दिए जाते हैं। कुछ बयानों की पीठ पर जो आरोपों का बारूद लदा होता है वह सामने वाले के चिथड़े-चिथड़े कर देता है। यह ऐसा सनसनाता नशा है कि सुनने वाले झूम-झूम जाते हैं। कई बयान ऐसे भी होते हैं कि पार्टी बार-बार सिर धुनती है कि किसे अपना नेता चुना। कुछ की मौलिकता ऐसी कि पार्टी ताल ठोक ले।

ज्ञानीजन बयान की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि वह बयान ही क्या जिससे स्वयं की पार्टी की हालत पतली न हो जाये। शालीनता की हद में रहें तो फिर कर ली बयानबाजी आपने। बयान पढ़कर सामने वाला बाल न नोचे और हड्डी-पसली बराबर करने की नियत से आपको घर में न ढूंढ़े तो वह बयान ही क्या। जिसे पढ़कर मछलियां तक शर्म से कपड़े पहन कर पेड़ पर न लटक जाएं। बयान जारी होने के बाद पाठक का किलो भर खून न जले तो क्या फायदा। अखबार में पव्वा भर स्याही चट न करें तो लानत है। टीवी पर कवरेज देखकर दर्शक कपड़े न फाड़े और रिमोट उठाकर टीवी पर न दे मारे तब तक आत्मा को चैन कैसे पड़े।

बयान की इस क्रीम के इस्तेमाल से नेता का रंग-रूप निखरने लगता है। उसमें हवा भरने लगती है और कद कद्दावर हो जाता है। उसकी कमीज औरों से सफेद लगने लगती है। जमीन पर पांव जम जाते हैं। रंग जमता है। लोग डरे-सहमे से कहते हैं संभल के जरा गड़बड़ की तो दादा ठोक देंगे बयान। और बयानबाजी चल निकलती है।

ऐसे समय में नेता बयान के रथ पर छिपा आरोप का शिखंडी निकालते हैं और उसे इस्तेमाल कर हस्तिनापुर का रास्ता प्रशस्त करने में जुट जाते हैं।

Advertisement