जिंदगी बदलती कहानियां
ऐसे वक्त में जब कथित सोशल मीडिया पर नकारात्मकता, भ्रामक जानकारी और उत्तेजक कंटेंट की बाढ़ है, तो टंडन दंपति जीवन मूल्यों पर आधारित, प्रेरक, ज्ञानवर्धक कहानियों के जरिये बदलाव की कोशिश में हैं। वैसे तो इस अभियान की शुरुआत पच्चीस साल पहले ई-मेल की दस्तक के बाद, सुबह के सकारात्मक संदेश भेजने से हुई। लेकिन मानव सभ्यता के भयावह कालखंड कोरोना महामारी के दौर में प्रेरक कहानियों की छोटी वीडियो स्टोरी के जरिये जीवन में उल्लास, उम्मीद व सकारात्मकता भरने की कोशिश की गई। खासकर लॉकडाउन के निराशा भरे दिनों में ये ऊर्जावान सोच के वीडियो रोज सोशल मीडिया पर आते थे। लोग बेसब्री से प्रतीक्षा करते थे। इस मुहिम व सेवा अभियान के अगुवा, समृद्ध राजनीतिक, सामाजिक व सांस्कृतिक विरासत वाले दंपति संजय व प्रिया टंडन से हुई अरुण नैथानी की लंबी बातचीत का सार।
देश-दुनिया में अंतर्मन को छूने वाली कहानियां हर दौर में मानवीय व्यवहार का आईना रही हैं। कहीं वे लोककथाओं के रूप में एक से दूसरे देश में सफर करती रही। उनका स्वर सकारात्मक व प्रेरणादायी रहा है। एक दौर में दादी-नानी बच्चों को कहानियां सुनाकर उनमें निहित मूल्यों को आत्मसात करने को प्रेरित करती रही हैं। कहानी कहने की कला देशकाल के अनुरूप बदलती रही है। एक दौर में प्रचलित पंचतंत्र की कहानियां, अमर चित्र कथा, नंदन, चंदामामा, चाचा चौधरी, डब्बू जी आदि की कथाएं आज भी पुरानी पीढ़ी के मानस पर अंकित हैं। इनका सम्मोहन बच्चों ही नहीं, बड़ों के मन को भी छूता रहा। आज भले ही मल्टीमीडिया, सोशल नेटवर्किंग, सोशल मीडिया तथा इंटरनेट के अन्य घटकों का वर्चस्व हो,लेकिन शब्दों में वर्णित कहानी का महत्व बरकरार है। वो बात अलग है कि अब कहानी सुनाने वाली दादी-नानी की पहुंच कम हुई और नयी पीढ़ी की रुचियां बदल गई हैं।
कोराना काल के बाद स्थितियां सामान्य हुई तो हर रविवार को ‘सूर्य के उजाले’ की तरह टंडन दंपति की ऊर्जावान कहानियां जीवंतता की पर्याय बनी। पिछले दिनों इन कहानियों की श्रृंखला की तीन सौवीं कड़ी प्रसारित हुई। महत्वपूर्ण यह भी कि इन कहानियों पर आधारित तेरह पुस्तकें अंग्रेजी, हिंदी व तेलगू में प्रकाशित हो चुकी हैं। इस संग्रह की प्रत्येक पुस्तक में 52 छोटी प्रेरणादायक कहानियां हैं। जिसमें श्रीसत्य साईं बाबा के प्रवचनों से चुने गए उद्धरणों से पहले प्रिया टंडन द्वारा चित्रित पेंसिल स्केच के जरिये कहानी को पाठक के मानस पटल पर अंकित करने का प्रयास हुआ है।
प्रेरणा का आधार
दरअसल, उन्होंने श्रीसत्य साईं बाबा की साधना स्थली पुट्टपर्थी के प्रशांति निलयम की यात्रा के दौरान उनके प्रवचनों के उद्धरणों वाला एक टेबल कैलेंडर खरीदा। फिर वर्ष 2000 में कुछ मित्रों को ईमेल से हर दिन सकारात्मक विचार वाला उद्धरण भेजने का उपक्रम शुरू हुआ। इसका कुछ ने उपहास भी किया तो शुभचिंतकों ने ‘मिस्टर गुड थॉट’ नाम से नवाजा। फिर पत्नी प्रिया के सुझाव पर हर रविवार एक प्रेरणादायक कहानी भेजनी शुरू की। फिर इन कहानियों को पुस्तक रूप देने के सुझाव ने मूर्त रूप लिया। संजय बताते हैं कि साईं बाबा की प्रेरणा इस यात्रा का मूल विचार-तत्व है। वे मानते हैं कि किसी भी धार्मिक जगह में किसी महात्मा से मिलना प्रारब्ध ही है। यानी प्रभु का इशारा होता है। ये आदमी की इच्छा से नहीं होता है। इस प्रसंग ने हमसे कई पुण्य काम करा दिए। इसी सद्इच्छा ने हमें जीवन में बदलाव के काम में लगाया कि आप लिखिए। कभी सोचा न था हम दोनों ने कि कुछ लिख भी सकते हैं। उनके शब्दों को टाइप करके लोगों को भेजने लगे। फिर कहानी लिखने का सिलसिला शुरू हुआ। फिर किताबों का दौर चला। कुल सात किताबें अंग्रेजी में, चार हिंदी व दो तेलगू में प्रकाशित हुई हैं। सनरेज संडे का सिलसिला सेटरडे तक हो गया।
बदलाव का महत्वपूर्ण काल
फिर कोविड का समय आया। यहीं से हमारी गाड़ी का गेयर शिफ्ट हुआ। कोविड के समय लगा कि काल चक्र बदल गया है। लगा दुनिया थम जाएगी। लॉकडाउन का पीरियड लोगों में हताशा भर गया। भय था कि कल देख पाएंगे कि नहीं। कहना मुश्किल था कि महामारी किसे निगल ले। लग रहा था कि दुनिया में जीव-जंतु व वनस्पति को छोड़कर सब पर असर है। सबकी मन:स्थितियां बिगड़ने लगी।
इस संकटकाल में छोटी प्रेरक कहानियों का वीडियो बनाने का विचार आया। वैसे तो मैं लॉकडाउन में लोगों की सेवा के लिये चला जाता था। कहीं दवा, ऑक्सीजन आदि सामान बांटना तो कभी लंगर लगाना। हम दोनों साथ बैठे तो सोचा कि लोगों में निराशा बहुत है। घर में इसी जगह बच्चों ने फोन पकड़ा और पहली स्टोरी शूट की। ये 25 मार्च 2020 का दिन था। लॉक डाउन का तीसरा दिन। रोज हम प्रेरक कहानी की छोटी वीडियो फिल्म बनाकर सोशल मीडिया पर अपलोड करते। ये कब हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन गया, पता ही नहीं चला। फिल्म बनाने, अपलोड करने का सिलसिला 36 दिन तक चला। एक बार मशहूर क्रिकेटर कपिल देव भी वीडियो फिल्म बनाने की प्रक्रिया में शामिल हुए। घर में रोज परिवार एक साथ बैठकर दुनिया में शांति के लिये चैंटिंग करता। जब भी हमारी स्टोरी अपलोड होने में कुछ भी देरी होती तो लोग फोन करके पूछते कि आज कहां गयी आपकी स्टोरी।
लॉकडाउन के बाद ‘सनरेज फॉर संडे’
लॉक डाउन खत्म हुआ तो स्टोरी बनाकर रोज वीडियो डालना कठिन लगा। फिर सोचा हर रविवार को स्टोरी अपलोड की जाए। पिछली 11 मई को 300वीं स्टोरी अपलोड की गई। अलग-अलग विषय कवर किए। प्रकाशित किताबों और सामयिक विषयों पर ख्याल आता तो उसे वर्तमान के साथ जोड़ लेते थे। उसे सोशल मीडिया के छह प्रमुख चैनलों, मसलन फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम लिंक्डइन, यू ट्यूब पर अपलोड करते। कई बार तो यूट्यूब पर 25 लाख व्यूज मिले। वे इसका सर्टिफेकेट भेज देते हैं।
पारिवारिक पृष्ठभूमि का योगदान
मेरी राजनीतिक पृष्ठभूमि रही है। पिता स्व. बलराम दास जी टंडन पंजाब के महत्वपूर्ण राजनेता रहे हैं। वे छह बार विधायक, चार बार मंत्री व डिप्टी सीएम रहे। आखिर में छत्तीसगढ़ के राज्यपाल भी रहे। पंजाब के कद्दावर नेता व जनसंघ के संस्थापकों में रहे हैं। वहीं प्रिया के पिता भारत के 28वें मुख्य न्यायाधीश रहे हैं जस्टिस मदन मोहन पुंछी। दोनों ही अपने क्षेत्र में ऊंचाइयों पर रहे। दोनों ने हमारी पुस्तक के लिये प्रस्तावना लिखी। जहां श्रीसत्य साईं बाबा ने हमें दिशा दी, वहीं हमारे परिवारों के जींस व संस्कारों ने हमें संवारा। ऐसी शिक्षा घर से तभी मिल पायी।
क्या सहपाठी से जीवन संगिनी बनने का आत्मीय रिश्ता मददगार रहा? निस्संदेह, आपस में आपकी समझ अच्छी होगी तो जीवनयात्रा सरस होगी। कई बार ऐसा होता है कि मैं बोलता नहीं, ये समझ जाती हैं। कभी ये नहीं बोलती तो मैं समझ जाता हूं। ये समझ ऐसे ही विकसित होती है। जीवन रथ के दोनों पहिए मैचिंग होंगे तो गृहस्थी का रथ सहज चलेगा।
आर्ट की बैकग्राउंड
टंडन परिवार के ड्राइंग रूम में तमाम पेंटिंग्स दीवारों पर सजी हैं। इन पेंटिंग्स में अध्यात्म का स्वर प्रबल है। ये पेंटिंग्स प्रिया टंडन ने बनायी हैं। कहती हैं बचपन से कला के प्रति गहरा रुझान रहा है। हालांकि, कोई फोरमल ट्रेनिंग नहीं ली है। रुचि के हिसाब से कुछ न कुछ करती रही हूं। प्रत्येक किताब में शामिल 52 कहानियों में से प्रत्येक में मेरा एक स्कैच है। मैं ऑयल पेंटिंग ही बनाती हूं। लेकिन कभी कोई प्रदर्शनी नहीं लगाई। क्या बचपन से ही पेंटिंग्स में आध्यात्मिक पक्ष प्रबल रहा है? ये शुरू से तो नहीं था शायद बाद में उभरा। जब बच्चा छोटा होता है तो फूल-पत्ते, पहाड़ से पेड़ तक के ही लैंडस्केप बनाता है। आम तौर पर बच्चा जब पेंटिंग की तरफ बढ़ता है तो किसी के पब्लिश काम की कॉपी करता है। फिर मन के विचार पेंटिंग्स में उभरने लगते हैं। संजय बताते हैं कि इनका वायदा था कि जब भी कोई ऑफिस बनेगा तो उसके लिये पेंटिंग्स बनाएंगी। मेरे हर ऑफिस में इनकी पेंटिंग लगी है, जिनक स्वरूप आध्यात्मिक ही है।
आध्यात्मिक यात्रा
प्रिया जी बताती हैं कि जब आठ साल की थी तब पहली बार श्रीसत्य साईं बाबा के शिमला में सपरिवार दर्शन किए। हम उसी दिन से बाबा के हो गए। इन्होंने भी शायद बचपन में अमृतसर में एक बार दर्शन किए थे। लेकिन ज्यादा संपर्क शादी के बाद हुआ। हमारी शादी 1987 में हुई। तब पापा के कहने पर हम वर्ष 88 में बाबा की साधना स्थली पहुंचे।
पुस्तक प्रकाशन का सिलसिला
अब तक सनरेज फॉर संडे श्रृंखला की तेरह किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें हिंदी में चार, सात पुस्तकें अंग्रेजी में और दो तेलगू में प्रकाशित हुई हैं। हिंदी में अनुवादित सनरेज श्रृंखला की पांचवीं पुस्तक शीघ्र प्रकाशित होगी। वे मानते हैं कि आज वर्चुअल व डिजिटल चीजों की तरफ लोगों का ज्यादा ध्यान है। स्टेंट आफ अटेंशन कम हुआ है। अब जो रील आती हैं वे 90 सेकेंड से ज्यादा पसंद नहीं की जाती। पहले 10 सेकेंड में लोग देखने का निर्णय कर लेते हैं। हमारी डिजिटल कहानियां दो से चार तीन मिनट तक की हैं। बदलते समय के साथ किताबों के लिये कुछ दोस्तों ने स्किट बनायी । पंजाब कला भवन में पांच कहानियों की स्किट बनायी। टैगोर थियेटर में स्किट का मंचन हुआ। बाबा की एक संस्था ने पांच-छह कहानियों की डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनायी है। संदेश देने के लिये अलग-अलग माध्यमों को चुना गया। दरअसल, हर कहानी की शुरुआत में साईं बाबा का एक कथन है, जिसे एक स्कैच जीवंत बनाता है। अंत में एक निष्कर्ष प्रेरणादायी है। इन पुस्तकों की प्रस्तावना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षामंत्री राजनाथ, गृहमंत्री अमित शाह, जेपी नड्डा, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, पीयूष गोयल व मुकेश अंबानी ने लिखी हैं। एक किताब हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल जी ने रिलीज की। तब उन्होंने एक कहानी सुनाई और उसे किताब में शामिल करने की बात कही। अगली किताब में हमने ये कहानी शामिल की। सभी किताबों को पहले पुट्टपर्थी में बाबा का आशीष मिला। तब जाकर अन्यत्र विमोचन किया। निस्संदेह, हमारा प्रयास तो छोटा है, उनकी पुस्तकों में तो अध्यात्म सौ गुना है।
कोविड के कहर का उज्ज्वल पक्ष
संजय कहते हैं कि यदि कोविड न आता तो कहानियों का वीडियो बनाने का संयोग तब न बनता। इस आपदा ने बहुत कुछ करने का अवसर दिया। कॉम्पिटेंट फाउंडेशन के तत्वावधान में इंदिरा होलीडे होम में 50 बैड का कोविड केयर सेंटर बनाया गया था। हम महामारी के चरम के दौरान कोरोना पीड़ितों को फ्री आक्सीजन, खाना व दवा आदि लगातार उपलब्ध करा रहे थे।
मानवता के कल्याण के लिये महायज्ञ
कोविड के समय प्रिया के मन में विचार आया कि जनकल्याण व वातावरण शुद्धि हेतु सामूहिक यज्ञ किया जाए। एक घर में नहीं, 108 जगह पर हवन कराने का संकल्प लिया। कोरोना संकट में यह बेहद चुनौती का काम था। कई स्वयंसेवी संस्थाओं व तत्कालीन गवर्नर बदनौर जी से बात की। तब करीब 350 जगहों पर एक समय पर हवन हुआ। लोगों को उसका लिंक दिया। वर्चुअल माध्यम से शहर में सकारात्मक वातावरण बनाने हेतु राज्यपाल महोदय ने लोगों को संबोधित किया।
सेवा का ऋषिकर्म
हम हर संकट में समाज हेतु रक्त उपलब्ध कराने का प्रयास करते हैं। अब तक हमने 114 रक्त दान शिविर लगाए हैं। कुल 14000 यूनिट ब्लड दे चुके हैं। परिवार के सभी सदस्य रक्त दान करते हैं। जब मैं 18 साल का था तो पिताजी ने मुझे ब्लड देने के लिए भेजा। मैंने अपने बच्चों को भेजा। कोरोना काल में जब प्लेटलेट्स का संकट था तो मैं दोनों बेटों को लेकर हॉस्पिटल में प्लेटलेट्स दिलाने ले गया।
अगली पीढ़ी को राजनीतिक विरासत
तीनों बेटों में से कोई राजनीति में आएगा? इस पर उनका कहना था कि ये उनके निर्णय पर निर्भर करेगा। पिताजी पंजाब की राजनीति में थे। मैं चंडीगढ़ में पला-बढ़ा तो अपनी जमीन तैयार की। तीनों बेटे अपने अपने-अपने क्षेत्र में अच्छा काम कर रहे हैं। एक सीए है, एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और एक हाईकोर्ट में वकील है। ये उन पर निर्भर है कि वे कहां पहुंचते हैं। सेंट जोन्स में पढ़ने के बाद तीनों बच्चों ने श्रीसत्य साईं बाबा के आश्रम में ग्यारहवीं व बारहवीं तक की पढ़ाई की। एक गुरुकुल जैसा जीवन- जमीन पर सोना, सादा भोजन, अपने कप़ड़े खुद धोना व स्वयं सफाई करना। हर रविवार को घर में भजन संध्या तीस साल से चल रही। बच्चों को श्लोक आते हैं वे भजन गाते हैं। प्रारब्ध में विश्वास है...? किसी व्यक्ति से मिलते हैं तो अच्छे लगने पर महसूस होता है कि कई जन्मों का नाता है। कोई घटनाक्रम होगा। कुछ से मिलने पर दो मिनट भी बात करने का मन नहीं करता। ये भगवान के बनाये चक्र हैं।
बदलावकारी शिक्षा का प्रयास
प्रिया बताती हैं कि देश की नई शिक्षा नीति में हमारे कंटेंट को रिक्रिएट किया जा रहा है। उसके अंदर वैल्यू कंटेंट डाल रहे। इस ढंग से कि हम बिना बताए लेसन के माध्यम से वैल्यू सिखा रहे हों। जैसे मां को बच्चे को दवा देनी होती है तो चॉकलेट या शहद के साथ दवा देती है। ताकि बच्चे को कड़वी दवा का अनुभव न हो। हम शैक्षिक सामग्री को प्राइम मिनिस्टर के दीक्षा पोर्टल पर अपलोड करते हैं। जिसे कोई भी टीचर डाउनलोड कर सकता है। कुछ एनजीओ अपलोड भी करते हैं। जिसमें सत्य साईं विद्या वाहिनी सबसे बड़ी कंट्रीब्यूटर है। दस साल से न्यू एजुकेशन पॉलिसी में योगदान कर रहे हैं। 2020 में कुछ गाइड लाइन्स सामने आई और सारे एनजीओ से सजेशन पेपर मंगवाए थे। हमारे काफी सजेशन पेपर एजुकशन पॉलिसी में कापी पेस्ट किए गए। आजकल हम स्पेशल दिव्यांग बच्चों के लिये कंटेंट बना रहे हैं। शिक्षा मंत्रालय ने आमंत्रित किया है कि यह काम आपकी संस्था ही कर सकती है। संस्था के 1500 वॉलंटियर पूरे विश्व में सारा काम ऑन लाइन कर रहे हैं। हम डिजीटल जुड़े हैं।
कॉम्पिटेंट फाउंडेशन की अनूठी मुहिम
कॉम्पिटेंट फाउडेंशन की मुहिम पिताजी ने शुरू की थी। शक्ति व न्याय का प्रतीक हनुमान जी की गदा संस्था का लोगो बना। संस्था वर्ष 2006 में स्थापित हुई। संस्था हर साल कमजोर वर्ग के 300 बच्चों को गोद लेती है। उन्हें स्कूल की किट, स्पोर्ट्स किट देते हैं। पिछले बाइस साल से हर मंगलवार को लंगर लगा रहे हैं। वर्ष 2018 में पिताजी के जाने के बाद हमने विधवा महिलाओं को राशन देने की योजना को मूर्त रूप दिया। हर महीने के पहले रविवार को विधवा महिलाओं व दो बच्चों के लिये पूरा राशन देते हैं। संजय बताते हैं कि पुस्तकों की बिक्री से मिलने वाली राशि समाज सेवा के कार्यों में लगा दी जाती है। किताबें प्रकाशित होने पर आधी पुस्तकें बाबा के बुक ट्रस्ट को दे देते हैं। पहली किताब बीस हजार की संख्या में छपी है। अंग्रेजी में सनरेज फॉर संडे से सनरेज फॉर सेटरडे तक सात दिन का कारवां पूरा हो चुका है। हिंदी में अनुवादित पुस्तक सनरेज फॉर वेडनेस डे तक आ गई है। हिंदी में पांचवीं पुस्तक आने को है। पंजाबी में भी लाने का मन है।