नई शुरुआत भी है रिटायरमेंट के बाद जीवन
शमीम शर्मा
रिटायरमेंट का दिन वह दिन होता है जब एक आदमी काम से लौटता है और अपनी पत्नी को प्यार से कहता है कि लो अब मैं तुम्हारी सेवा के लिये हमेशा के लिये आ गया, कभी ऑफिस नहीं जाऊंगा। और यही दिन एक महिला के लिये कुछ और भी खास होता है। रिटायरमेंट के बाद घर आते ही स्त्री का पहला वाक्य होता है- चलो अब कल से एक काम की तो हमेशा के लिये छुट्टी हुई, अब सिर्फ घर का ही काम करना पड़ेगा। वैसे किसी पुरुष को रिटायरमेंट के बाद अपनी पत्नी की निगाहें उस ठेकेदार जैसी लगती हैं जैसे उसका लेबर खाली बैठे बीड़ी पी रहा हो। दफ्तर के बॉस से तो आदमी को मुक्ति मिल जाती है पर घरेलू बॉस से वह ताउम्र नहीं बच सकता। जीवन के सफर में जब पूरा दिन हमसफर के साथ रहना पड़ता है तो कई लोग गच्चा खा बैठते हैं। सारा दिन सिरदर्द को झेलते हैं। तब उनके मुख से निकलता है कि बाहर ही ठीक थे।
सेवानिवृत्ति को कुछ लोग दर्दनाक हादसे की तरह भी लेते हैं क्योंकि कुर्सी गयी, नौकर-चाकर गये, जी हुजूरी गयी, माल-मलाई पर अंकुश लग गया और घर-समाज में रुतबा भी घट गया। पर किसी अनुभवी का कथन है कि रिटायरमेंट किसी सड़क का अन्त नहीं है बल्कि यह तो एक शानदार हाइवे की शुरुआत है, जहां जीवन की गाड़ी सरपट दौड़ती है। एक बंधी-बंधाई नौकरी से रिटायर होने का मतलब जिंदगी से रिटायर होना नहीं होता। ज़्यादातर सेवानिवृत्त लोगों का भी यही मत है कि ज़िंदगी रिटायर होने के बाद खत्म नहीं होती बल्कि शुरू होती है। रिटायर्ड लोगों को इतनी-सी नसीहत है कि खुद को कभी यह न कहना कि सठिया गये हो क्योंकि यह शब्द तो घर के सारे लोग प्रयोग करेंगे ही। उषा प्रियंवदा की ‘वापसी’ कहानी बरसों बाहर नौकरी से सेवानिवृत्त होकर आये गजाधर बाबू की मनःस्थिति के माध्यम से रिटायर्ड आदमी की मानसिक पीड़ा को व्यक्त करने को पर्याप्त है, जो हालात को भांपकर वापस किसी नौकरी पर सेवा करने चला जाता है।
000
एक बर की बात है अक नत्थू अपणी घरआली तै कसूत्ता तंग हो लिया था अर छोह मैं आकै बोल्या- हे राम! आज तो तैं मन्नैं ठा ले। उसकी घरआली भी किमंे घणी ए जलीभुनी बैट्ठी थी, वा भी हाथ जोड़कै रामजी तैं बोल्ली- हे राम जी! इसनैं मेरी नास्सां मैं धुम्मा कर राख्या है, तैं मन्नैं भी ठा ले। नत्थू बोल्या- रामजी! मेरी छोड्डो, पहल्यां थम इस भागवान की सुन ल्यो।