For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

पत्र

04:00 AM Dec 12, 2024 IST
पत्र
Advertisement

भारी पड़ती रेवड़ियां
हमारे समाज में मुफ्तखोरी की समस्या बढ़ती जा रही है, जो हमारी संस्कृति और विकास के लिए खतरनाक है। राजनीतिक दल मुफ्त की रेवड़ियों के जरिए जनता को आकर्षित करते हैं, जिससे चुनावों में उनका फायदा होता है, लेकिन यह अकर्मण्यता और निर्भरता को बढ़ावा देता है। समझना होगा कि सफलता मेहनत और प्रयास से मिलती है, न कि मुफ्त चीजों से। राजनीतिक दलों को अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाना होगा। चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट को इस पर सख्त पाबंदी लगाने की आवश्यकता है, ताकि यह अप्रत्यक्ष रिश्वत और समाज को नुकसान पहुंचाने वाली आदत समाप्त हो सके।
विभूति बुपक्या, खाचरोद, म.प्र.

Advertisement

घर का खाना बेहतर
ग्यारह दिसंबर के दैनिक ट्रिब्यून के संपादकीय ‘बुढ़ापे को बुलावा’ में डिब्बा बंद जंक फूड के खतरों पर प्रकाश डाला गया है। जैसे-जैसे लोगों की आमदनी बढ़ती है, वे घर का बना खाना छोड़कर जंक फूड का सेवन करने लगते हैं। यह आदत विज्ञापन के प्रभाव से बढ़ रही है। जंक फूड में इस्तेमाल होने वाले पदार्थों से हृदय रोग, मोटापा, ब्लड प्रेशर, और डायबिटीज जैसी बीमारियां उत्पन्न होती हैं। इटली के शोध के अनुसार, यह तेजी से बुढ़ापा ला सकता है। संपादकीय में घर का बना खाना जंक फूड से कहीं बेहतर विकल्प बताया गया है।
शामलाल कौशल, रोहतक

बेघरों की दुर्दशा
‘बेघरों का बसेरा’ शीर्षक से नौ दिसंबर काे प्रकाशित संपादकीय में नेताओं की संवेदनहीन राजनीति पर सवाल उठाए गए। चुनावों के समय नेता गरीबों, विशेषकर झुग्गी-झोपड़ी वालों के दुखों का ढोंग करते हैं, लेकिन सत्ता में आते ही उनकी नजरें बदल जाती हैं। ये लोग झूठे आश्वासनों पर जीवन बिता देते हैं और ठंड, गर्मी, बारिश झेलने के आदी हो जाते हैं। उन्हें पता होता है कि नेता कभी उनकी स्थिति में सुधार नहीं करेंगे। यह समाज के निम्न वर्ग के लिए कड़वी सच्चाई है।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.

Advertisement

Advertisement
Advertisement