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आइए, 2047 तक भारत को ज्ञान का शक्ति केंद्र बनाएं

07:42 AM Jun 12, 2024 IST
आइए  2047 तक भारत को ज्ञान का शक्ति केंद्र बनाएं
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ले. जन. एसएस मेहता (अ.प्रा.)
आत्मनिर्भरता के लिए शंखनाद से अभिप्राय है भारत को ज्ञान की धुरी बनाना, औपनिवेशिक मानसिकता से छुटकारा और ‘सस्ते श्रमिकों वाली’ अर्थव्यवस्था से ‘ज्ञान की कमाई वाली’ आर्थिकी में तबदील करना। हमारी मंजिल ‘ज्ञान का शक्ति केंद्र’ बनना है।
इसके लिए, हमारे पास सामर्थ्य है, आकार है और जनांकिकीय लाभांश है और अब वृद्धिमान आर्थिक कूवत भी है। सकल घरेलू उत्पाद में 8 प्रतिशत सतत वृद्धि बने रहने की आस और 6-जी के लिए नव-लहर प्रोत्साहन, चिप डिज़ाइन और चिप उत्पादन, नव-ईंधन (हाइड्रोजन एवं बायोफ्यूल), पवन एवं सौर ऊर्जा, अनेकानेक यूनिकॉर्न कंपनियां और स्टार्टअप्स का माहौल– ये सब, पर्यावरण मित्र और घरेलू उत्पादों की लहर बनाने की संभावना रखते हैं। 6-जी और चिप उत्पादन रणनीतिक महत्व रखते हैं जिससे डिजिटल क्रांति का मार्ग प्रशस्त होगा। यह वक्त दूसरों की तकनीक का अनुसरण करते रहने से परे हटने का भी है। वक्त आ गया है कि हम अपनी क्षमताएं बढ़ाएं और नेतृत्व करें। हमें तकनीकी प्रदाता बनना ही होगा।
कॉर्पोरेट्स, सार्वजनिक एवं निजी, दोनों को ‘मिशन-मॉड’ मानसिकता रखकर निवेश करने की जरूरत है। इससे सबसे अधिक फायदा होगा सुरक्षा का, चाहे राष्ट्रीय हो या नागरिक, और यह दोनों मिलकर बृहद राष्ट्रीय शक्ति में इजाफा करते हैं।
किंतु पहले, जमीनी हकीकत की जांच करनी होगी। हमारी रूपांतरण यात्रा में कुछ क्षेत्र नाजुक दशा में हैं। यूएनडीपी की वैश्विक ज्ञान सूचकांक रिपोर्ट (2023) के अनुसार, 133 देशों की सूची में कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों में, हमारा स्थान यूनिवर्सिटी-पूर्व शिक्षा में 96वां (अमेरिका का नौवां), तकनीकी-व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण में 119वां (अमेरिका दूसरे स्थान पर), उच्च शिक्षा में 106वां (अमेरिका चौथे नंबर पर), अनुसंधान एवं विकास और इनोवेशन में 54वां (अमेरिका पांचवें पायदान पर), आईसीटी यानी सूचना एवं संचार तकनीक में 83वां (अमेरिका दूसरे स्थान पर) है। दरअसल, समाधान हैं इनोवेशन और विकास। नवोन्मेष एक विचार को दूसरे पर रखकर विकसित करते जाने की प्रक्रिया है जिसका परिणाम है नूतन उत्पाद, प्रसंस्करण या सेवा, जिसका आगे व्यापारीकरण होने के बाद यह व्यावहारिक उपयोग में आती है। विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में विकास ‘एक समय में एक कदम’ के हिसाब से आगे बढ़ता है, और भावी पीढ़ियों में नवाचार करने की भावना भरने की हसरत रखता है। इसके लिए रट्टा आधारित शिक्षा तजकर ‘जिज्ञासा एवं नवाचार’ वाला मॉडल अपनाने की जरूरत है, जो रट्टा लगाकर उत्तर देने वाली प्रचलित प्रणाली को चुनौती देती है। हां, यह सही है कि 50 जमा 40 नब्बे होते हैं, लेकिन यदि कोई बच्चा कहे कि योग सौ से नीचे है तो उसने आपको एक स्वीकार्य उत्तर दे डाला है। रट्टा पद्धति से शिक्षा नवाचार की विरोधी है।
बगीचों के शहर नाम से प्रसिद्ध बेंगलुरू हमारे देश की सिलिकॉन वैली है, बल्कि सिलिकॉन कालोनी कहना ज्यादा उचित होगा। यहां के आईटी उद्योग में, हम दूसरों के लिए बतौर श्रमिक काम कर रहे हैं , दूसरे तैयार माल पर ठप्पा लगाकर लाभ कमाते हैं और हम ऐसे तैयार उत्पाद के लिए दाम चुकाने वाले खरीदार हैं। शुरुआत करने के लिए यह ठीक था, यह दुनिया को हमारे कौशल का प्रदर्शन के लिए भी सही था। वर्ष 2000 आते-आते इसने तेजी पकड़ी लेकिन अब उस युग का फायदा कब का पुराना पड़ चुका। बेंगलुरू बदल तो रहा है किंतु रफ्तार हमेशा की भांति धीमी है। 2047 की राह में बेंगलुरू को अन्य दर्जनभर ज्ञान-केंद्रों (हैदराबाद, चेन्नई, पुणे और कई अन्य शहर) में एक बने रहने के लिए अपनी चाल में तेजी लानी होगी। बेंगलुरू को अपना स्तर उच्चतर करने के लिए ‘चिप नेट इंटिग्रेशन कैपिटल’ में तबदील होने की जरूरत है जिससे कि आगामी लहर के सिलिकॉन हब के तौर पर मार्ग प्रशस्त कर सके।
कमियों के बावजूद हमें अगली पीढ़ी की प्रतिभा को भुनाने के लिए एक बृहद एवं पुरस्कृत करने वाली नवोन्मेष व्यवस्था का निर्माण करने की आवश्यकता है। हमारे पास प्रत्येक स्तर पर प्रतिभा बहुतायत में है, हमें बस इसका उपयोग करने की राह ढूंढ़ने की जरूरत है। अगली पीढ़ी (जेन-नेक्सट) भी अपनी उपयोगिता सिद्ध करवाने के लिए अवसरों का इंतजार कर रही है। जैसे ही उन्हें यह हासिल होंगे तो न केवल भारत बल्कि समूची मानवता का भला हो जाएगा।
जेन-नेक्सट, यह चाहे जहां हो, इसने भारत के बाहर या बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम करते हुए, अथक रूप से एवं बारम्बार सिद्ध कर दिखाया है कि इसका योगदान विश्वस्तरीय है। इस पर लगाम कसने की बजाय खुली छोड़ दें और इन्हें सशक्त बनाएं। रट्टे वाली पढ़ाई से छुटकारा पाएं। यह सिखाना कि विचार क्या होने चाहिए से अधिक महत्वपूर्ण है विचार कैसे पैदा किए जाएं। भारत को ज्ञान का शक्ति-केंद्र बनाने के मिशन में पांच पहलकदमियां आवश्यक हैं। प्रथम, शिक्षा की गुणवत्ता ऊंची उठाना। राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक शुरुआत है किंतु इसका क्रियान्वयन धीमा है और इसमें सीखने और तालमेल बिठाने वाला तंत्र नदारद है। ‘एक साइज सबके लिए वाली’ नीति काम नहीं आने वाली। राष्ट्रीय शिक्षा नीति बतौर एक सहायक ढांचे तक ही ठीक है। इससे छात्र और श्रमिकों को पूरे भारत में कहीं भी जाकर क्रमश: पढ़ने या काम करने में सहायता मिलेगी। इससे आगे, राज्य सरकारों को उनकी जरूरतों के माफिक बैठती नई योजना बनाने और अमल में लाने की जरूरत है। द्वितीय, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर नौकरशाही का नियंत्रण ढीला करना जरूरी है ताकि मौजूदा यथास्थिति में बदलाव लाकर नई खोजों के लिए माहौल बनाने हेतु फंड आसानी से मिल पाए, वह जो रचनात्मकता प्रोत्साहित करता हो और नवाचार को पुरस्कृत। तृतीय, बौद्धिक सम्पदा अधिकार में सेंध लगाने या चोरी पर लगाम लगाने के लिए कानून प्रवर्तन में सुधार लाया जाए। चतुर्थ, ग्रांट प्राप्तकर्ता की जवाबदेही तय करने वाली धारा जोड़ी जाए, ग्रांट-सब्सिडी पाने का आवेदन करते वक्त, इससे रोजगार अवसरों में बढ़ोतरी एवं नागरिक भलाई की संभावना को प्रपोजल का हिस्सा बनाया जाए। पंचम, कॉर्पोरेट्स में निवेश आदि को लेकर जिंदादिली की भावना पैदा करने वाले नियम बनाए जाएं।
लंबे अर्से से, सच में भारत निर्मित एवं वैश्विक स्तर पर बेचने लायक उत्पाद हम नहीं बना पा रहे। यह उत्पाद कोई वस्तु अथवा सेवा हो सकती है। 6जी मिशन इस दिशा में एक बहुत अच्छी शुरुआत है। मज़ेदार बात है कि इस बाबत विश्व बैंक ने चार स्तंभोंं वाला तंत्र बनाने की सलाह दी है, वह जो मानव-पूंजी आधारित अर्थव्यवस्था की तार्किकता का विश्लेषण करता हो। एक मजबूत ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था की स्थापना के लिए शिक्षित एवं कौशलयुक्त श्रमबल होना जरूरी है। आईसीटी संसाधनों तक आसान पहुंच मुहैया करवाने वाला सघन एवं आधुनिक सूचना तंत्र हो ताकि पैसे का लेन-देन करते वक्त उच्च सेवा शुल्क से बचा जा सके। प्रभावशाली नवोन्मेष नूतन तकनीक का उच्चतर स्तर बनाने में मददगार होगा, इसे जारी रखा जाए और घरेलू अर्थव्यवस्था में इस्तेमाल किया जाए। एक ऐसी संस्थागत प्रशासनिक व्यवस्था हो, जो नव उद्यमों को छूट देने और प्रोत्साहित करने वाली हो।
अब जबकि बुनियादी ब्लॉक्स एक बार अपनी सही जगह जमा दिये जाएं, हमें महीन जांच करते हुए पांच परतों वाली राह जोड़ने की जरूरत होगी। प्रथम, राष्ट्रीय शिक्षा तंत्र के सहायक ढांचे के अंदर, राजकीय समाधान विकसित करें और इन पर अमल करें। द्वितीय, उच्चतर शिक्षा में गहराई लाना– जैसे कि क्वांटम कम्प्यूटिंग, फोटोनिक्स, चिप डिजाइन और इस जैसी अन्य विधाएं। तृतीय, मूल्य शृंखला के तमाम स्तरों पर चिप उत्पादकता और अन्य ज्ञान सृजन का कौशल उच्चतर करना। चतुर्थ, हमारे 6-जी नवोन्मेष मिशन हेतु प्रयास निरंतर जारी रहें। अनुसंधान एवं विकास किसी देश को वैश्विक मंच पर उच्च स्थान पर रखते हैं, मानक और खासियतें तय करते है। पंचम, फैक्टरियों के उत्पादन में तेजी लाने के लिए ‘इंडस्ट्री 4.0’ श्रेणी की स्वचालित प्रणाली और 3-डी प्रिंटिंग अपनाई जाए।
टीएन नाइनन ने द ट्रिब्यून में छपे अपने हालिया लेख में माओ ज़िदोंग के शब्दों को उद्धत करते हुए लिखा ‘पूर्वी हवा पश्चिमी वायु को पछाड़ रही है- और वैश्विक शक्ति संतुलन में- पूर्वी हवा का वेग पहले की अपेक्षा तगड़ा है’, यहां वे एकदम सही हैं। चूंकि विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत पूर्व में है, हमें पूर्वी हवा को मजबूत करने में अधिक योगदान डालने की जरूरत है। भारतीय विचारों का वैश्वीकरण– आक्रामकता रहित, नरमी रखना, धमकाने से परहेज, बांटना और दूसरों का ख्याल रखना– यह हवा पूर्व और पश्चिम, दोनों दिशाओं में बहती है– जिसमें ज्ञान एक वैध एवं सर्वमान्य मुद्रा की तरह चलता है। एक पुनर्जागरण, न कि क्रांति, एक लहर जो हर किश्ती को ऊपर उठाए, अंदरूनी और बाहरी, दोनों रूपों में। शून्य का सिद्धांत देने के भारतीय योगदान के साथ, हमारी हवा पूर्व और पश्चिम में एक समान चली। कल्पना करें इसके बिना हम क्या होते। अब यही समय है अगली लहर पैदा करने का – ज्ञान की।
चीन के देंग शिआयोपिंग ने 1987 में कहा था ‘ यदि मध्य-पूर्व के पास तेल है, तो चीन के पास दुर्लभ प्राकृतिक खनिज’। जब 2047 आए तो हमारी भावी पीढ़ी पूरे विश्वास से कह सके ‘...और भारत के पास ज्ञान’। चहुं दिशाओं में बहने वाली पूर्व की हवा में हमारा योगदान यह हो कि अपने और पीछे छूटने वालों के बीच बने पाट को भरकर खुशियां साझी करें।

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लेखक पश्चिमी सैन्य कमान के पूर्व कमांडर व  पुणे इंटरनेशनल सेंटर के संस्थापक सदस्य हैं।

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