कंटीली राह के अनुभवों से सबक
जतिंदर जीत सिंह
बिहार और झारखंड की राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाने वाले वरिष्ठ राजनेता इन्दर सिंह नामधारी की आत्मकथा उनके पारिवारिक, सार्वजनिक व सियासी जीवन का सफरनामा है। बिहार में भाजपा के अध्यक्ष रहे नामधारी छह बार विधायक चुने गये, निर्दलीय सांसद बने और झारखंड के पहले स्पीकर का पद भी उन्होंने संभाला।
देश के विभाजन के दौरान बेघर होने, परिवार के साथ बिहार में नये सिरे से जिंदगी शुरू करने, स्कूली शिक्षा से लेकर इंजीनियरिंग करके प्राध्यापक बनने और राजनीति में आने की उनकी दास्तान शुरू से आखिर तक बांधे रखती है। उनके संस्मरण संघर्ष दिखाते हैं, प्रेरणा देते हैं। आपातकाल के दौरान जेल जाने, नामधारी समुदाय के गुरु के साथ रहने और अटल बिहारी वाजपेयी समेत कई शीर्ष नेताओं से जुड़े रोचक प्रसंग लेखक ने पुस्तक में साझा किए हैं।
सांप्रदायिक दंगों, चुनावी ध्रुवीकरण व तुष्टीकरण और सियासी उठापटक की कई घटनाओं-किस्सों का जिक्र करते हुए नामधारी ने लिखा है- अपने राजनीतिक सफर की तुलना में महाभारत के अभिमन्यु से करना चाहता हूं। मैंने भी अभिमन्यु की तरह बिहार और झारखंड में धर्म और जात-पात के चक्रव्यूह को तोड़कर सात चुनाव जीते। लेकिन अभिमन्यु की तरह ही चक्रव्यूह के अंतिम द्वार पर पहुंचकर मैं घिर भी गया। धर्म और राजनीति, इन दोनों ही कंटीले रास्तों पर अकेले चलने की हिम्मत ही मेरी आत्मकथा का संदेश है। वरिष्ठ पत्रकार हरिवंश नारायण सिंह ने इस पुस्तक की भूमिका में लिखा है कि इस किताब का महत्व सिर्फ नामधारी जी के जीवन के सफरनामे को समझना भर नहीं है, न ही बिहार-झारखंड की तत्कालीन राजनीतिक स्थितियों को समझने का दस्तावेज है, बल्कि देश की राजनीति के कुछ अनछुए पहलू भी इसमें हैं। ऐसी किताबें राजनीति में रुचि रखने वाले युवाओं, राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जरूर पढ़नी चाहिए।
पुस्तक : एक सिख नेता की दास्तान पाकिस्तान से डालटनगंज तक... लेखक : इन्दर सिंह नामधारी प्रकाशक : वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 144 मूल्य : रु. 495.