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लेखरा ने लिख दी सोने की इबारत

07:11 AM Sep 10, 2021 IST
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ग्यारह साल की छोटी-सी उम्र में कार दुर्घटना में यदि रीढ़ की हड्डी पर गंभीर चोट आये और शरीर का निचला हिस्सा काम करना बंद कर दे, तो सपने तो दूर की बात है जीवन की हकीकत भी दुरूह हो जाती है। सपने तो व्यक्ति तब देखेगा जब व्यक्ति सामान्य जीवन जीने लायक होगा। किसी बेटी के लिये तो यह राह और भी जटिल हो जाती है। फिर भारत जैसे देश में जहां शारीरिक अपूर्णता को लेकर तरह-तरह के फिक्रे कहने, उलाहने देने तथा हिकारत से देखने का अतीत रहा हो। दरअसल, आज भी हम सामान्य जीवन की वे व्यवस्थाएं स्थापित नहीं कर पाये हैं, जो दिव्यांगों को सामान्य जीवन जीने में सहायक हो। फिर खेल से जुड़ी सुविधाएं तो दूर की कौड़ी है। ऐसे हालात में यदि अवनि विश्वस्तरीय चुनौती के बीच पैरालंपिक में एक नहीं दो-दो पदक लेकर आए तो उसके जज्बे को सलाम बनता है। वह तमाम दिव्यांगों की ही प्रेरणा नहीं है, बल्कि बेहद मुश्किलों में जीवनयापन करने वालों के लिये भी प्रेरणा की जीवंत मिसाल है। जो बताती है कि हौसलों से हर लड़ाई जीती जा सकती है। हर सपना साकार किया जा सकता है।

टोक्यो पैरालंपिक में इस कमाल की बेटी अवनि लेखरा ने वाकई बड़े कमाल कर दिखाये। उसने टोक्यो पैरालंपिक में भारत के लिये पहला स्वर्ण पदक ही नहीं जीता, कई कीर्तिमान स्थापित किये। शूटर अवनि ने असाका शूटिंग रेंज में महिलाओं की दस मीटर एयर राइफल स्टैंडिंग एस-1 स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीतकर नया इतिहास रच दिया। उसने न केवल 249.6 प्वाइंट हासिल करके नया रिकॉर्ड बनाया बल्कि विश्व रिकॉर्ड की बराबरी भी की। उन्नीस साल की अवनि पैरालंपिक में सोने का पदक जीतने वाली पहली महिला बनी। शूटिंग में भी यह भारत का पहला स्वर्ण पदक है। वह यहीं नहीं रुकी और खेलों के समापन से पहले महिलाओं की पचास मीटर राइफल पी-3 एसएच-1 स्पर्धा में कांस्य पदक जीत लायी। एक पैरालंपिक में दो पदक जीतने वाली अवनि भारत की पहली महिला एथलीट हैं। उसने बताया कि बुलंद हौसलों और कभी हार न मानने के जज्बे से कोई भी सफलता हासिल की जा सकती है। दरअसल, एसएच-1 राइफल वर्ग में वे निशानेबाज शामिल होते हैं जो हाथ में बंदूक तो थाम सकते हैं, लेकिन पैरा शरीर का वजन नहीं उठा सकते। ऐसे एथलीट व्हील चेयर पर बैठकर प्रतिस्पर्धा में भाग लेते हैं। टोक्यो पैरालंपिक के समापन पर अवनि ने भारतीय दल का नेतृत्व किया और व्हील चेयर पर तिरंगा लेकर गर्व से आगे बढ़ी।

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दरअसल, जयपुर की रहने वाली अवनि 2012 में एक कार दुर्घटना में रीढ़ की हड्डी की गहरी चोट का शिकार हो गई थी, जिसके बाद उसके शरीर के निचले हिस्से ने काम करना बंद कर दिया। पिता ने उसे खेलों में भविष्य तलाशने के लिये प्रेरित किया। उसने तीरंदाजी और शूटिंग में हाथ आजमाने का मन बनाया। वो बताती है कि वर्ष 2015 की गर्मियों की छुट्टी में पापा शूटिंग रेंज में लेकर गये। मैंने कुछ शॉट लिये और वे सटीक निशाने पर लगे। पहले यह अवनि के लिये शौक था, फिर जुनून बन गया। वह कहती है कि जब मैं राइफल उठाती हूं, तो अपनापन लगता है। उससे लगाव महसूस होता है। फिर एकाग्रता और निरंतरता के साथ अवनि आगे बढ़ने लगी। वर्ष 2015 में जयपुर के जगतपुरा खेल परिसर से शुरू हुई यात्रा फिर टोक्यो पैरालंपिक तक पहुंची।

फिलहाल अवनि सहायक वन संरक्षक के पद का दायित्व निभा रही हैं और कानून की छात्रा भी हैं। इससे पहले अवनि ने निशानेबाजी की बारह अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में भाग लिया। अवनि ने वर्ष 2016-2020 के बीच नेशनल शूटिंग चैंपियनशिप में पांच बार गोल्ड मेडल जीतकर अपने इरादों को बता दिया था। उसने संयुक्त अरब अमीरात में वर्ष 2017 में हुए विश्व कप में भारत का प्रतिनिधित्व किया। अवनि ने वर्ष 2017 में बैंकाक में विश्व निशानेबाजी प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता। फिर क्रोएशिया व संयुक्त अरब अमीरात में हुए विश्व कपों में इस पदक को रजत पदक में बदल दिया।

दरअसल, कोविड के कारण लगे लॉकडाउन और बंदिशें उसके लिये कष्टकारी साबित हुई। एक तो वह पर्याप्त अभ्यास नहीं कर पायी तो दूसरी ओर शारीरिक दिक्कतों के चलते जरूरी फिजियोथेरैपी नहीं ले पायी। दरअसल, स्पाइनल कॉड की परेशानी के कारण उसे कमर के निचले हिस्से में संवदेना महसूस नहीं होती, जिसके चलते पैरों का व्यायाम कराना होता है। कोरोना संक्रमण के कारण फिजियोथेरेपिस्ट नहीं आ पायी। फलत: इसमें उसके माता-पिता ने मदद की। वैसे तो शूटिंग की ट्रेनिंग घर पर संभव नहीं थी, लेकिन उसने बिना गोलियों के प्रैक्टिस आरंभ कर दी।

शुरुआत में आर्चरी व शूटिंग में हाथ अजमाने वाली अवनि को बाद में शूटिंग में भाग्य आजमाना रास आया। वे इसे पूरी रुचि के साथ करने लगी। दरअसल, वह ओलंपिक में शूटिंग में सोने का तमगा जीतने वाले अभिनव बिंद्रा से खासी प्रभावित रही। उनकी किताब पढ़ने से उसे खासी प्रेरणा मिली। आज उनकी सफलता से देश प्रफुल्लित है। प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति के अलावा देश की तमाम बड़ी हस्तियों ने उसका हौसला बढ़ाया है। तमाम बड़े-छोटे पुरस्कारों के अलावा महिंद्रा ग्रुप के सीईओ आनन्द महिंद्रा ने उसे स्पेशल डिजाइन की गई एसयूवी तोहफे देने की घोषणा की है। देश को उनसे और पदकों की उम्मीद है, वह भी हालिया उपलब्धियों से संतुष्ट भी नहीं है।

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इबारत’लेखरा
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