सीखिये शरीर की आवाज सुनने का हुनर
आचार्य बलविंदर
अक्सर कहा जाता है कि शरीर के लिये परंपरागत खाना ही ठीक, तला भुना व फास्ट फूड जैसा ज्यादा भारी खाना सेहत के लिये ठीक नहीं है। आज मिलेट्स की बात हो रही। सबको पता है ये सब खाना ठीक नहीं है। युवाओं व डाक्टरों को भी पता है। लेकिन आदत से मजबूर होते हैं। जैसे सेल्फ हिपनोटाइज। व्यक्ति को पता है कि कोल्ड ड्रिंक, शराब, सिगरेट शरीर के लिये अच्छा नहीं, लेकिन फिर भी व्यक्ति आत्मसम्मोहित है। कोई आपको समोसा खिलाएगा तो उसका गुणगान करेगा कि ये शानदार है। इसकी खुशबू अच्छी है। दरअसल, जब से खाना बिजनेस बना है, स्वाद गहरे में आप को सम्मोहित कर रहा है। सम्मोहन के जरिये आपको कुछ भी खिलाया जा सकता है। हम जानते हैं कि प्यास के लिये शुद्ध पानी चाहिए। लेकिन जिसकी कोल्ड डिंक की फैक्ट्री है वो आपकी ज्ञानेंद्री को सम्मोहित करेगा।
शरीर के प्रति जागृति
जंक फूड नुकसानदायक है सबको पता है। एक शेर है- ‘सोने वाले को नहीं मालूम जागने वालों का मसला क्या है।’ दरअसल, जो सम्मोहित नहीं होता, उसे बरगलाया नहीं जा सकता। शेर का अगला हिस्सा है ndash;’लेकिन जागने वाले को सब मालूम है,सोने वाले की दिक्कत क्या है।’ सम्मोहित करने वाले का धर्म क्या है। उसका बंधन क्या है। सम्मोहन क्या है। इसलिए योग आयुर्वेद कहता है चेतनाशील हो जाओ। आप शरीर के प्रति जाग्रत हों। फिर आप ऐसी चीज नहीं खाओगे, जो शरीर को नुकसान पहुंचाए। बाजार हीरो-हीरोइन के आभामंडल के जरिये उत्पाद के प्रति सम्मोहन पैदा करता है। उनकी कंपनियों का बहुत पैसा खर्च करते हैं। उन्हें पता है सम्मोहन टूटेगा तो वो व्यक्ति उपभोक्ता नहीं रहेगा।
भोजन में शरीर की प्रकृति का ख्याल
दरअसल खाना दिन के, ऋतु के और शरीर की प्रकृति के अनुसार होना चाहिए। शरीर को कौन सी चीज सूट करेगी, आपको प्रकृति की समझ होनी चाहिए। कुदरत मौसम के हिसाब से फल देती है। गर्मी के सीजन में तरबूज, खरबूज, ककड़ी व आम जैसे फल देती है जिनमें रस है। गर्मी में पहाड़ों में बर्फ पिघलाती है क्योंकि मैदानों में पानी की ज्यादा जरूरत है। शरीर को पानी की जरूरत है, चाय व कोल्ड ड्रिंक की नहीं। हम शरीर की प्रकृति को समझें। कुल 70 फीसदी पानी है। पानी हमारे आहार का बड़ा हिस्सा है। इसके उलट जंक फूड शरीर में से पानी सोखेगा तथा वात, पित्त बढ़ाएगा। शरीर में असंतुलन पैदा करेगा।
जीभ, नाक हैं बॉडीगार्ड
यौगिक ग्रंथ कहते हैं कि आप को अपने शरीर को सुनने की कला आनी चाहिए। अगर शरीर की सुनोगे तो बताएगा कि कितना और कब खाना है। ज्ञान इंद्रियों की सुनेंगे तो सम्मोहित रहेंगे। हमारी जुबान चेतनाशील ज्ञान इंद्री है। ये शरीर के बॉडीगार्ड हैं। उससे पहले नाक बता देगी कि खाना ठीक है या नहीं। नाक के पास ले जाने पर गंध से पता लग जायेगा कि खाने लायक है कि नहीं। कड़वी है या मीठी। सम्मोहन के भ्रम में गलत निर्णय होते हैं। सम्मोहन ही है कि यह जानते हुए भी कि अच्छा है, नहीं खाना। यंगस्टर फ्रूट व सलाद नहीं खाते।जब तक चटपटा या चटनी न होे।
स्निग्ध, आर्द्र खाद्य पदार्थ
यौगिक दृष्टिकोण से देखें तो हठप्रदीपिका में इसका विस्तृत विवरण है। पतंजलि को शरीर में रुचि नहीं है वह आध्यात्मिक बात करता है। हठयोग के अनुसार भोजन में मुख्यत: स्निग्धता व आर्द्रता यानी पानी-घी गति के लिये। मधुरता लेकिन ये मीठा नहीं है। फल मीठे होते हैं, सब्जी में भी आखिर में मीठापन होता है। लेकिन चीनी नहीं।
खाने की गुणवत्ता व मात्रा
दरअसल, खाने के दो गुण मुख्य हैं- गुणवत्ता व मात्रा। आयुर्वेद के अनुसार पेट का चतुर्थ भाग खाली छोड़ना चाहिए। दरअसल, भरपेट खाना पाचन क्रिया में बाधा डालता है। वास्तव में खाना पचाना शरीर के लिये मेहनत का काम है। उसे रक्त बनाना होता है। फिर हमारी मनोदशा का प्रभाव खाने पर पड़ता है। zwj;वह ईश्वरीय हो व एकाग्रता दे। हमारी खाने को प्रसाद रूप में लेने की परंपरा है। ये मनोदशा रहेगी तो मनुष्य चेतनाशील रहेगा। चेतनाशीलता के अभाव में न मात्रा का व न गुण का ख्याल रहता है। इसलिए कहा जाता है टीवी, मोबाइल के साथ खाना न खाएं। अत: भावदशा, गुण, मात्रा, मिताहार, सात्विकता, मधुरता खाने के आवश्यक गुण हैं। प्रयास करें कि खाने में तमोगुण व रजोगुण कम हों।
दिन में बेहतर पाचन
खाने को लेकर हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए कि खाना सत्वगुण युक्त हो। जो ऋतु के अनुसार प्रकृति देती हो। सब्जियां व फल ऋतु के हिसाब, टाइम के हिसाब से देती है। पाचन का संबंध सूर्य की शक्ति से है। सूर्य आकाश में है तो पाचन अच्छा रहता है। सूर्योदय के बाद प्रात: कर्म से निबटने के बाद खाना लेना चाहिए। दिन का अंतिम खाना तब तक लें, जब तक प्रकाश खत्म होने वाला है। या उसके आसपास। यानी संधिकाल में। दरअसल, पाचन क्रिया सूर्यास्त के बाद धीमी हो जाती है। समाज में ज्यादातर तामसिक खाना रात में खाया जाता है जिसे पचाने कोे शरीर को अलग शक्ति लगानी पड़ती है। इससे शरीर के दैनिक कार्य में बाधा पैदा होती है। शरीर के सिस्टम पर लोड पड़ता है। शरीर किसी तरह पचा लेता है, लेकिन दुखी रहता है। लीवर, आंतों पर लोड पड़ता है। नियम याद रहे रात को अंधेरा है तो पाचन क्रिया धीमी रहेगी। रात का खाना हल्का रखना होगा। सब्जियों के सूप आदि लेने होंगे। उबली सब्जी ले सकते हैं। यानी खाना सुपाच्य हो।
भावना की भी बड़ी भूमिका
हमें अपनी मनोदशा पर ध्यान देना चाहिए यानी हमारी भावना। दरअसल, तनाव, गुस्से व नशे से भूख व उसकी प्रभावशीलता पर असर होता है। मनोदशा अनुसार खाना पचाने की क्रिया अलग होगी। खाने में अपनी प्रकृति का भी ध्यान रखें। एक फ्रूट किसी को सूट करता है दूसरे को नहीं। शरीर की समझ हो। अन्यथा अपचन खाने से एसिडिटी में बदल देता है। दूध न पचे तो सौंफ व इलाइची डालकर पचने लगता है। अगर हम ये समझ जाएं तो पाचन संबंधी कोई व्याधि नहीं होगी। दूसरे का अनुभव लें। मगर उसकी कसौटी अपनी निज की प्रकृति अनुसार हो।
-जैसा उन्होंने अरुण नैथानी को बताया।