रेस में बढ़त
जैसे कि हरियाणा में राजनीतिक पंडित मतदाताओं के मन पढ़ते हुए कांग्रेस की सत्ता में वापसी की बात कर रहे थे, कमोबेश वैसे ही रुझान एग्जिट पोल के निष्कर्षों में सामने आए हैं। हालांकि, पिछले लोकसभा चुनाव के बाद एग्जिट पोल की वास्तविकता को लेकर कई विमर्श सामने आते रहे हैं, लेकिन हरियाणा में शनिवार के मतदान के बाद आए एग्जिट पोल राजनीतिक हवा के अनुरूप भी हैं। लगता है कि एक दशक तक सत्ता से बाहर रहने वाली कांग्रेस हरियाणा में अब सत्ता हासिल करने को तैयार है। उम्मीद है कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी अपने दम पर सरकार बनाएगी, जबकि सत्तारूढ़ भाजपा के दूसरे स्थान पर रहने की संभावना है। पिछले दो दशकों में, राज्य में विधानसभा चुनावों के नतीजों ने एक पूर्वानुमानित पैटर्न दर्शाया है-पहले कांग्रेस दो लगातार कार्यकाल के लिये सत्ता में आई और फिर भाजपा ने दो कार्यकाल में सरकार चलायी। किसी भी पार्टी के लिये यह संभव नहीं हुआ कि वह तीसरी बार सत्ता हासिल कर सके। दरअसल,जब सरकारें जनता की आकांक्षाओं पर खरी नहीं उतरती, तो जनता धैर्य खोने लगती है। वास्तव में सत्ता विरोधी घटक ने भाजपा को कमजोर कर दिया था। तभी गत मार्च में जनमानस में व्याप्त सत्ता विरोधी रुझान को टालने के लिये मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया गया। कह सकते हैं कि यह बदलाव पार्टी की हताशा का ही परिचायक रहा।
हालांकि, भाजपा ने तीसरी बार सत्ता में वापसी और डैमेज कंट्रोल के लिये सभी दांव-पेच खेले। मतदान से ठीक पहले डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम की रिहाई कांग्रेस का गणित बिगाड़ने का आखिरी प्रयास था। बहरहाल, उत्तर भारत में भाजपा का जनाधार कम होता नजर आ रहा है। ऐसे में हरियाणा में भी नतीजे यदि भाजपा के खिलाफ जाते हैं तो ये भाजपा की बेचैनी बढ़ाने वाला होगा। दिल्ली के बाद पंजाब में हार झेलने के बाद भाजपा ने वर्ष 2022 में हिमाचल में भी हार का मुंह देखा। इसके साथ ही 2024 के लोकसभा चुनावों में घटे जनाधार ने भी पार्टी की कमजोरी को ही उजागर किया। तभी इस साल केंद्र में पूर्ण बहुमत न मिलने पर भाजपा ने अन्य दलों के साथ मिलकर गठबंधन सरकार बनायी। पिछले दशक में भाजपा ने जो देशव्यापी बढ़त हासिल की थी, उसके सापेक्ष कांग्रेस के जनाधार में गिरावट देखी जा रही थी। अब यदि कांग्रेस हरियाणा को अपनी झोली में शामिल करने में सफल हो जाती है तो राष्ट्रीय स्तर पर उसके हालिया पुनरुत्थान को ही बढ़ावा मिलेगा। वहीं दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर में भी कांग्रेस के फायदे में रहने के रुझान मिले हैं, जहां वह नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ी है। कयास लगाए जा रहे हैं कि राज्य बनने की ओर उन्मुख केंद्र शासित प्रदेश में त्रिशंकु सदन की संभावना बन रही है। ऐसी स्थिति में पीडीपी ने संकेत दिया है कि वह भाजपा को सत्ता से बाहर रखने की इच्छुक है। वैसे भगवा पार्टी अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के उपरांत हुए पहले चुनाव के परिणामों के बाद अपने पत्ते तो खेलेगी ही।