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1857 की जनक्रांति के अग्रणी महानायक

06:28 AM Sep 23, 2023 IST
1857 की जनक्रांति के अग्रणी महानायक
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आरती राव

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इसमें दो राय नहीं कि मां भारती को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए शुरू हुई 1857 की क्रांति चाहे विभिन्न कारणों से विफल हो गई थी, लेकिन इस क्रान्ति ने भारतीयों के मन-मस्तिष्क में आजादी पाने का ऐसा जज्बा पैदा किया था, जिससे भयभीत होकर कालांतर अंग्रेजों को देश छोड़ने को मजबूर होना पड़ा। स्वतंत्रता संग्राम की इस पहली जंग में जहां तांत्या टोपे, महारानी लक्ष्मीबाई, मंगल पांडे, नाना साहब पेशवा जैसे महान जांबाज थे तो वहीं रेवाड़ी रियासत के राजा राव तुलाराम भी वीरता व साहस के साथ डटे थे। नारनौल क्षेत्र के नसीबपुर के जंग-ए-मैदान में ही राजा राव तुलाराम के नेतृत्व में 1857 की क्रांति के दौरान यहां के पांच हजार अनाम सैनिकों ने राष्ट्र की फिरंगियों से मुक्ति के लिये अपनी कुर्बानी दी थी।
इस बात का तार्किक आधार है कि 1857 की क्रांति सही मायनों में भारतवर्ष का प्रथम राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन था। दुर्भाग्यवश एकीकृत ढांचे और समन्वय के अभाव के कारण यह क्रांति सफल नहीं हो सकी। लेकिन इस स्वतंत्रता संग्राम के दूरगामी प्रभाव सामने आए हैं।
अहीरवाल जनपद में रेवाड़ी रियासत के राजा राव तुलाराम ने साल 1857 में देश की आजादी का झंडा बुलंद किया। उन्होंने इस क्षेत्र से अंग्रेजों को कड़ी टक्कर दी थी। सत्रह मई 1857 को राजा राव तुलाराम ने स्वतंत्रता आंदोलन की घोषणा कर दी। इसके उपरांत उनके सैनिकों ने रेवाड़ी तहसील व थाने पर कब्जा कर लिया तथा तहसील के ख़ज़ाने को जब्त कर लिया। राव तुलाराम ने स्वयं को रेवाड़ी, भोंडा व शाहजहांपुर परगनों का स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया।
इस दौरान राव तुलाराम ने क्रांतिकारियों की सहायता के लिए रसद सामग्री और नकद राशि बादशाह बहादुर शाह जफर को दिल्ली भिजवाई। राव तुलाराम के नेतृत्व व वीरता से प्रसन्न होकर बादशाह ने शाही फरमान जारी कर राव तुलाराम को रेवाड़ी, भोंडा व शाहजहांपुर के शासक के रूप में मान्यता प्रदान कर दी। परंतु जल्दी ही दिल्ली का पतन हो गया और बादशाह बहादुर शाह जफर को गिरफ्तार कर लिया गया। राव तुलाराम इसके बावजूद पीछे नहीं हटे। बल्कि उन्होंने अंग्रेजों से सीधी टक्कर लेने के लिए सेना को फिर से संगठित किया। इतना ही नहीं, अपने आसपास के राजाओं और नवाबों से सहयोग मांगा।
राव तुलाराम ने अपनी सेना व कुछ छोटी तोपों के साथ नारनौल में मजबूत किलेबंदी कर ली। इसी दौरान राजपूताने से भी क्रांतिकारी सैनिकों का एक दल राव तुलाराम से आ मिला। इससे राव तुलाराम की शक्ति और बढ़ गई। उधर क्रांतिकारियों के दमन के लिए करनल जेरार्ड के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने नारनौल की ओर कूच किया। सोलह नवंबर 1857 को नारनौल के नसीबपुर मैदान में अंग्रेजी सेना पहुंच गई परंतु राव तुलाराम की मजबूत मोर्चाबंदी की सूचना पाकर कर्नल जेरार्ड हमले की हिम्मत नहीं कर सका। लेकिन क्रांतिकारी जोश में थे और उन्होंने स्वयं आगे बढ़कर अंग्रेजी सेना पर हमला करने का निर्णय लिया। युद्ध में कड़ी टक्कर में कर्नल जेरार्ड मारा गया और अंग्रेजी सेना को भारी क्षति पहुंची। अंग्रेजी सेना व क्रांतिकारियों के बीच हुए इस महासंग्राम में अंग्रेजी सेना की जीत हुई परंतु वह राव तुलाराम को गिरफ्तार नहीं कर सके। अंग्रेजों के साथ हुए इस युद्ध में एक ही दिन में 5 हजार सैनिक शहीद हुए थे। इस भीषण युद्ध की पराजय के बाद भी राव तुलाराम ने हार नहीं मानी और किसी ब्रिटिश विरोधी देश से सहायता प्राप्त कर भारतवर्ष की आजादी पर विचार किया। एक छोटी सी रियासत के राजा का इतना बड़ा और अद्भुत निर्णय उनके विराट व्यक्तित्व को ही परिलक्षित करता है। राव तुलाराम ने राजपूताने यानी जयपुर, जोधपुर व बीकानेर के राजाओं से रूस के शासक ज़ार के नाम सहायता के लिए पत्र लिखवाया। साल 1859 के अंतिम दिनों में राव तुलाराम मुंबई बंदरगाह से भेस बदलकर अपने साथियों के साथ ईरान की ओर रवाना हुए। ईरान में रूसी राजदूत से संपर्क कर ज़ार एलेक्जेंडर द्वितीय से मिलने के लिए रूस पहुंच गए, लेकिन ज़ार ने कोई ठोस जवाब नहीं दिया। वहां से वापस ईरान होते हुए राव अफगानिस्तान आ गए तथा अन्य ब्रिटिश विरोधी देश से संपर्क करने का प्रयास करते रहे। साल 1862 में कंधार में उन्होंने एक सैनिक टुकड़ी का गठन किया। राव तुलाराम ने अंग्रेजों से आजादी के लिए अपने प्रयासों के तहत विभिन्न देशों से संपर्क जारी रखा। इसी दौरान दुर्भाग्यवश राव तुलाराम का 23 सितंबर 1863 को अपने वतन से दूर काबुल में मात्र 38 वर्ष की अल्पायु में निधन हो गया। लेकिन देश की आजादी के लिए राव तुलाराम ने जो लौ जलाई थी वह आगे बढ़कर एक ज्वाला के रूप में देश में फैल चुकी थी। स्वतंत्रता संग्राम के महानायक शहीद राजा राव तुलाराम जी के शहीदी दिवस पर उनको शत-शत नमन!

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