लंबित मुकदमों पर वकीलों की टिप्पणी चिंताजनक : सीजेआई
नागपुर, 6 अप्रैल (एजेंसी)
भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायपालिका के कंधे चौड़े हैं और वह प्रशंसा के साथ ही आलोचना भी स्वीकार कर सकती है, लेकिन लंबित मुकदमों या फैसलों पर वकीलों की टिप्पणी बहुत चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि बार के पदाधिकारियों और सदस्यों को न्यायिक निर्णयों पर प्रतिक्रिया देते वक्त यह नहीं भूलना चाहिए कि वे अदालत के अधिकारी हैं, आम आदमी नहीं।
सीजेआई नागपुर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के शताब्दी वर्ष समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि एक संस्था के रूप में बार न्यायिक स्वतंत्रता, संवैधानिक मूल्यों और अदालत की प्रतिष्ठा की रक्षा करने के लिए आवश्यक है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के फैसले कठिन कार्यवाही, व्यापक न्यायिक विश्लेषण और संवैधानिक सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता का परिणाम होते हैं। उन्होंने कहा, ‘लेकिन एक बार जब फैसला सुना दिया जाता है तो यह सार्वजनिक संपत्ति है। एक संस्था के तौर पर हमारे कंधे चौड़े हैं। हम प्रशंसा और आलोचना दोनों स्वीकार करने के लिए तैयार हैं...।’ उन्होंने कहा कि लेकिन बार एसोसिएशन के सदस्य और पदाधिकारी होने के नाते वकीलों को अदालत के निर्णयों पर प्रतिक्रिया देते समय आम आदमी की तरह टिप्पणी नहीं करनी चाहिए।
न्यायिक सक्रियता और अतिरेक के बीच हो लकीर : पूर्व सीजेआई गोगोई
गुवाहाटी : भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एवं राज्यसभा सांसद रंजन गोगोई ने ‘न्यायिक सक्रियता’ और ‘न्यायिक अतिरेक’ के बीच एक लकीर खींचने पर बल दिया। उन्होंने कहा, ‘बदलाव के लिए कब उत्प्रेरक के तौर पर कार्य करना चाहिए और कब यथास्थिति बनाये रखना है, इसका चयन न्यायपालिका की अपार जिम्मेदारी को रेखांकित करता है। इस संदर्भ में ‘न्यायिक सक्रियता’ और ‘न्यायिक अतिरेक’ के बीच अंतर काफी महत्वपूर्ण हो जाता है।’ वह गुवाहाटी हाईकोर्ट के 76वें स्थापना दिवस पर मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे।