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सूत और कपास संग लट्ठम-लट्ठम भी

06:29 AM Sep 21, 2023 IST
सूत और कपास संग लट्ठम लट्ठम भी
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शमीम शर्मा

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एक लोक प्रचलित कथा है कि एक बार राजकुमार सिद्धार्थ अपने बगीचे में ध्यानमग्न बैठे थे कि तभी वहां उनके सामने एक घायल हंस आ गिरा। इससे उनका ध्यान भंग हो गया। तीर के वार से घायल हंस को देख सिद्धार्थ का मन द्रवित हो गया। फिर वह पास के सरोवर में हंस को ले जाकर उसके जख्म धोकर धीरे-धीरे तीर निकालने लगे। वह उसे सहलाते रहे और फिर घाव पर पट्टी करने लगे। तभी उनका चचेरा भाई देवदत्त आ धमकता है और सिद्धार्थ से कहता है- इस हंस पर मेरा हक है क्योंकि मैंने ही इसका शिकार किया है। सिद्धार्थ ने समझाते हुए कहा- यह हंस मेरा है। अगर मैं समय पर इसका इलाज न करता तो यह दम तोड़ चुका होता। बात महाराज शुद्धोधन के दरबार तक जा पहुंची। दोनों पक्षों के तर्क सुनने के बाद राजा ने निर्णय सुनाया- यह हंस देवदत्त का शिकार है, इसलिये इस पर पहला हक उसी का है परन्तु सिद्धार्थ ने इसकी जान बचाई है और जान बचाने वाला मारने वाले से बड़ा होता है। इसलिये यह हंस सिद्धार्थ का है।
अब महिला आरक्षण विधेयक पर पूरा झगड़ा मच चुका है कि यह किसका बेबी है? पन्ने और तिथियां दिखा-गिनाकर हक जमाया जा रहा है। पर जो बिल 27 साल तक लटकता रहा और जिसे संसद के नये भवन में पहले ही दिन सिंहासन पर बिठा दिया हो तो यह तो मानना ही पड़ेगा कि जाल बिछाने वाले से रक्षक ज्यादा महत्वपूर्ण है।
यह एक आश्चर्य भरा प्रश्न है कि क्या किसी बात को सत्ताईस साल तक भी लटका कर रखा जा सकता है? जवाब हां में है। इसके पास होने में टांग अड़ाने वालों से इतिहास ठोक-ठोक कर सवाल जरूर पूछेगा। कइयों की बोलती भी बंद होगी। पर अब एकाएक सारे सुर इस दिशा में मुड़ रहे हैं कि कैसे श्रेय को अपनी झोली में समेटा जा सके। यह निश्चित है कि फर्जी झोलियां हवा में खुद ही उड़ जायेंगी।
औरों का तो पता नहीं पर महिलाओं को तो लगने लगा है कि अच्छे दिन आ गये हैं। गणेश चतुर्थी पर संसद के नये भवन में नव प्रवेश हुआ है। सभी महिलाओं के गले से निकल रहा है- निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा। अर्थात‍् हे गणेश जी महाराज, इस बिल को निर्विघ्न पास करवाओ। बीच में कई तरह की कम्पार्टमेंट और स्पीडब्रेकरों से इस बचाओ।

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एक बर की बात है अक नत्थू अपणे बाब्बू तै बोल्या- ल्या बाब्बू, डेढ़ सौ रुपये दे दे गला घणां खराब हो रह्या अर अवाज कती बन्द हो री है। सुरजा बोल्या- डंट ज्या, मन्नैं लट्ठ ठा लेण दे फेर देखिये किलकी भी लिकड़ैगी।

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