Lata Mangeshkar सदैव अविरल बहती रहेगी स्वर सरिता
कर्णप्रिय आवाज का ही सम्मोहन है कि स्वर कोकिला लता मंगेशकर के गाये गीतों की लोकप्रियता आज भी कायम है। विभिन्न भाषाओं के हजारों फिल्मी, गैर फिल्मी गीतों, गजलों व भजनों को लताजी ने स्वर दिया। हर छोटे-बड़े संगीतकार का उन्होंने साथ दिया। लताजी जब भी कोई गीत गातीं, उसमें प्राण फूंक देती थीं जिन्हें श्रोता आज भी सुनते-गुनगुनाते हैं।
योगेन्द्र माथुर
लता मंगेशकर एक किंवदंती का नाम है। लगभग आठ दशक से भारतीय सिनेमा संगीत के क्षेत्र में गूंज रही लता जी की आवाज एक मानदंड बन चुकी है, जिसकी कसौटी पर हर नई गायिका की प्रतिभा का आकलन किया जाता है। हाल ही में सुर साम्राज्ञी गायिका की पुण्यतिथि थी। बच्चे से लेकर वृद्ध तक, देहाती से लेकर महानगरवासी तक और अनपढ़ से लेकर उच्च शिक्षित तक -लगभग सभी लोग स्वर कोकिला की आवाज के कायल रहे हैं। 28 सितम्बर 1929 को इंदौर में जन्मीं लताजी को संगीत विरासत में मिला। इनके पिता मास्टर दीनानाथ मंगेशकर मराठी रंगमंच के जाने-माने संगीत साधक थे। 3-4 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने लताजी को संगीत की शिक्षा देना आरम्भ कर दिया। साल 1942 में मराठी फिल्म ‘किती हसाल’ में लता ने पहली बार गीत गाया जिसे फाइनल कट से पहले हटा दिया गया। 1943 की मराठी फिल्म ‘गजा भाऊ’ का हिंदी गीत ‘माता एक सपूत की ...’ लता जी का पहला गाना माना जाता है।
छोटी उम्र में बड़ी जिम्मेदारी
लताजी का बचपन संघर्षपूर्ण परिस्थितियों में बीता। पिता की आकस्मिक मृत्यु के कारण 13 वर्ष की अल्पायु में ही, जब उम्र लिखने-पढ़ने और खेलने-कूदने की होती है, लताजी को घर की तमाम जिम्मेदारियों का भार वहन करना पड़ा। पांच भाई-बहनों में लताजी ही सबसे बड़ी थीं। उन्होंने अपने छोटे भाई हृदयनाथ तथा छोटी बहनों आशा (भोंसले), उषा, मीना व मां के भरण-पोषण की जिम्मेदारी निभाई।
हिंदी फिल्मों में पार्श्वगायन की शुरुआत
संघर्ष के दिनों में ही लताजी को बसंत जोगलेकर की हिंदी फिल्म ‘आपकी सेवा में’ मिली, जिसमें उन्होंने सर्वप्रथम पार्श्वगीत गाया। इसके बाद उन्हें कुछ अन्य संगीतकारों की फिल्में मिलीं, किंतु लताजी को पहचान मिली फ़िल्म ‘अंदाज’ से। इस फ़िल्म में लताजी के गीत काफी पसंद किये गए। ‘अंदाज’ के बाद ‘महल’ और ‘बरसात’ में गाए गीतों ने लताजी को शिखर पर पहुंचा दिया। ‘महल’ में गाया गया ‘आएगा...आएगा...आएगा आने वाला...’ उनका प्रिय गीत रहा।
हजारों गीतों को दिया स्वर
अपनी स्वर यात्रा में लताजी ने हर तरह के हजारों फिल्मी, गैर फिल्मी गीत, गजल व भजन गाये हैं, लेकिन उनमें पाश्चात्य संगीत पर आधारित गाने नहीं के बराबर हैं। 36 भाषाओं के हजारों गानों को लताजी ने अपनी आवाज दी है। प्रत्येक छोटे-बड़े संगीतकार का लताजी ने साथ दिया है। केवल ओपी नैयर ही इस बात के अपवाद रहे। लताजी जब भी कोई गीत गातीं, उसमें प्राण फूंक देती थीं। उनके स्वरबद्ध किये गाने श्रोता आज भी सुनते-गुनगुनाते हैं।
‘ऐ मेरे वतन के लोगो ...’
लताजी की आवाज के जादू ने कई गीतों को अमर कर दिया। 29 जनवरी,1963 को दिल्ली में शहीद सैनिकों की स्मृति में राष्ट्र को समर्पित एक विशेष कार्यक्रम में लताजी ने स्व. प्रदीप के लिखे गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगो, जरा याद करो कुर्बानी...’ गाया तो देश के बच्चे-बच्चे की आंखें भर आईं। मंच पर उपस्थित प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी अपने आंसू नही रोक पाए।
अभिनय व फ़िल्म निर्माण
गायन के साथ लताजी ने अभिनय व फ़िल्म निर्माण भी किया। उन्होंने मराठी फिल्म ‘पहली मंगला गौर’ समेत कई मराठी व हिंदी फिल्मों में छोटी भूमिकाएं की। वहीं लताजी द्वारा निर्मित फिल्में 1955 की ‘कंचन’ व 1990 की ‘लेकिन’ व ‘झांझर’ हैं। उन्होंने फिल्मों में संगीत भी दिया।
सम्मान और पुरस्कार
लताजी को चार बार ‘फ़िल्म फेयर अवार्ड’ एवं तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार के अतिरिक्त भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म भूषण’, ‘दादा साहेब फालके पुरस्कार’ व ‘पद्म विभूषण’ अलंकरण से सम्मानित किया। वर्ष 2001 में उन्हें देश के सर्वोच्च अलंकरण ‘भारत रत्न’ से अलंकृत किया गया। लता जी मात्र एक दिन ही स्कूल गईं लेकिन विश्व के कई विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद उपाधि से अलंकृत किया। वहीं मध्यप्रदेश सरकार द्वारा प्रतिवर्ष ‘लता मंगेशकर पुरस्कार’ दिया जा रहा है। सर्वाधिक गीतों की रिकार्डिंग के लिए लताजी का नाम ‘गिनीज बुक’ में भी अंकित है।
स्वर कोकिला लताजी 6 फरवरी 2022 को 92 वर्ष की उम्र में सदा के लिए मौन हो गईं लेकिन उनकी कर्णप्रिय, मनमोहिनी आवाज उनके गाए गीतों के माध्यम से सदैव गूंजती रहेगी। यह स्वर सरिता सदैव अविरल बहती रहेगी।