आध्यात्मिक उन्नति का दीपार्चनम्
अरुण नैथानी
जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने जैन धर्म के वास्तविक स्वरूप से जगत रूबरू कराया। उन्होंने जैन धर्म को मानव के आदर्श आचरण के रूप में व्याख्यित भी किया। उन्होंने जीव हिंसा ही नहीं, किसी की अनुमति के बिना विचार व वस्तु को लेने को भी हिंसा की श्रेणी में रखा।
निस्संदेह, ‘श्री महावीराष्टक दीपार्चनम्’ जैसा कि नाम से ही विदित होता है कि तीर्थंकर महावीर स्वामी की दीपों के माध्यम से अर्चना की गई है। दरअसल, इसमें साधारण महावीराष्टक को कुछ नये और सहज रूप में प्रस्तुत करने का सार्थक प्रयास किया गया है। इसमें संपादक क्षुल्लक श्री प्रज्ञांशसागर ने महावीराष्टक के काव्यों को उनके ऋद्धि मन्त्रों, यन्त्रों, तन्त्रों, अर्थ, चित्र, भावार्थ और अंग्रेजी उच्चारण के साथ बेहतर ढंग से प्रस्तुत किया है। निश्चित रूप से इस सकारात्मक प्रयास के माध्यम से जन साधारण को हर प्रकार से समझने में सुविधा व सहजता होगी। संपादक क्षुल्लक श्री प्रज्ञांशसागर का विश्वास है कि संपूर्ण एकाग्रता से पूरे नियम के साथ पाठ करने पर श्रद्धालुओं के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन होगें। इसके साथ ही समस्याओं के नये समाधान मिलेंगे, वहीं उनसे निपटने का मार्ग भी प्रशस्त होगा।
जैन मनीषियों की मान्यता रही है कि जिस प्रकार दीपक का प्रकाश अंधकार का उन्मूलन करता है, उसी प्रकार जिस घर में तीर्थंकर महावीर स्वामी की 9 दीपों के माध्यम से अर्चना होगी, उस घर से सभी प्रकार की नकारात्मकता, आर्थिक-दैहिक कष्ट एवं मानसिक द्वंद्व नष्ट हो जाएंगे। आचार्य विनिश्चयसागर महाराज के सुयोग्य शिष्य क्षुल्लक श्री 105 प्रज्ञांशसागर महाराज द्वारा संपादित ये कृति जैन साधकों के जीवन को एक नई दिशा प्रदान करेगी, उन्हें अध्यात्म से जोड़ेगी और अवनति से उन्नति की ओर ले जाने का मार्ग प्रशस्त करेगी।
पुस्तक : महावीराष्टक दीपार्चनम् संपादन : क्षुल्लक श्री प्रज्ञांशसागर प्रकाशक : गुड लाइफ फाउंडेशन, जयपुर पृष्ठ : 72 मूल्य : अनमोल