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यात्रा से हासिल ज्ञान

06:27 AM Oct 02, 2023 IST

ज्ञानदत्त पांडेय

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मुझे अचम्भा होता है कि भूगोल की मामूली जानकारी भी न रखने वाले प्रेमसागर पूरा भारत घूम ले रहे हैं और एक से दूसरे स्थान के बीच की दूरी, मिलने वाले स्थानों, नदियों, ऊंची-नीची जमीन का आकलन आदि करने के बावजूद मैं घर से एक कदम नहीं निकलता। वे मुझसे कहते हैं, ‘भइया, उड़ीसा में तो नर्मदा परिक्रमा का मार्ग मिलेगा। परिक्रमा के रास्ते में तो लोग बहुत सहायक होते हैं।’ मुझे घोर आश्चर्य होता है। ‘यहां नर्मदा कहां? नर्मदा तो अमरकण्टक से निकल कर अरब सागर में जाती हैं। यह तो दूसरे छोर का बंगाल की खाड़ी का इलाका है। यहां तो महानदी मिलेंगी। और भी कई नदियां रास्ते में होंगी। पर नर्मदा का तो यहां आना ही नहीं है। बंगाल और ओडिशा की सीमा रेखा है सुवर्ण रेखा नदी। उनके दर्शन होंगे।’ मैं उन्हें मोटा परिचय देता हूं।
‘हां भइया, सुवर्ण रेखा तो मैं जानता हूं। देखी हुई हैं। बाकी, रास्ते में क्या मिलेगा, कैसे होगा, वह सब तो महादेव जानें।’ प्रेमसागर अपनी अल्पज्ञता को महादेव को अर्पण कर देते हैं। सच में वही तो करा रहे हैं यह यात्रा! मैं लिखने से ऊब चुका हूं। प्रेमसागर की यात्रा ही नहीं, कुछ भी लिखने से। एकाग्रता नहीं बन रही। आंखें कीबोर्ड देखना नहीं चाहतीं। दो-चार लाइन लिखने के बाद मन को खींच कर वापस लाना पड़ता है। पर बंगाल की खाड़ी के तटीय इलाके को देखने का मन है। भले ही अपने चक्षुओं से नहीं, प्रेमसागर के चित्रों और उनके थोड़े-बहुत विवरण से हो। इंटरनेट पर ओडिशा के बारे में पुस्तकें तलाशता हूं। अंतत: विकिपीडिया को खंगालना होगा। क्या पता वही सब करते हुए मन एकाग्र होने लगे।
सवेरे नौ बजे के बाद कालीघाट स्थित रमाशंकर जी के डेरा से चले हैं प्रेमसागर। दोपहर बारह बजे उनकी लोकेशन तामलुक में दिखाई देती है। यह लिखने तक भी दोपहर ढाई बजे वे वहीं तामलुक में ही नजर आते हैं गूगल नक्शे पर। आज अगर वहां से चलना भी हुआ तो दस-बारह किमी से ज्यादा चलना नहीं होगा। उनका डियाक (डिजिटल यात्रा कथा) लेखन शायद नित्य न हो पाये। शायद दो-तीन दिन में एक बार। पर जैसा भी होगा; मैं ओडिशा के स्थानों की यात्रा करूंगा ही। प्राचीन मंदिरों, तटीय शहरों और समुद्र की छटा, ऐतिहासिक इमारतों, सुंदर कलाकारी और काष्ठ कला का प्रांत है ओडिशा! देखता हूं, प्रेमसागर कितना दिखाते हैं! अपना मोबाइल सुधरवाया है कलकत्ता में प्रेमसागर ने। वहां से कालीघाट के कुछ चित्र भेजे हैं। उस पर लिखना शायद बाद में कभी हो। आगे देखें क्या होता है।
साभार : ज्ञानदत्त डॉट कॉम

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