सूर्य की दहलीज पे दस्तक
भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक हाल के दिनों में आसमानी सफलता की नयी इबारत लिख रहे हैं। पिछले वर्ष अगस्त में चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के एक सप्ताह के भीतर ही भारत ने सूरज विषयक नया ज्ञान जुटाने के लिये आदित्य एल-1 मिशन शुरू किया था। हर भारतीय के लिये गर्व की बात है कि पृथ्वी से लगभग पंद्रह लाख किमी दूर आदित्य अपने लक्ष्य तक सफलतापूर्वक पहुंच गया है। जो बताता है कि कैसे इसरो के वैज्ञानिक बेहद जटिल व मुश्किलों से भरे अभियानों को सहजता से तार्किक परिणति दे रहे हैं। भारतीय वैज्ञानिकों की बड़ी उपलब्धि यह भी है कि तमाम सफलताएं इतनी कम लागत में हासिल की गई हैं कि पूरी दुनिया दांतों तले उंगली दबा लेती है। इस तरह भारत विज्ञान की उन सीमाओं को विस्तार दे रहा है जो कालांतर शेष दुनिया के लिये कल्याणकारी साबित होंगी। शुरुआती संकेत बता रहे हैं कि मिशन के सभी अवयव सुचारू रूप से अपना काम कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि आदित्य अगले पांच वर्षों तक शोध व अनुसंधान के कार्यों के जरिये मानवता के कल्याण के लिये नई जानकारी जुटाएगा। इस मिशन की सफलता ने उन संभावनाओं को भी गति दी है, जो भविष्य में अन्य ग्रहों में शोध-अनुसंधान के लिये मार्ग प्रशस्त कर सकती हैं। इस तरह पहले सूर्य मिशन में भारत ने अंतरिक्ष में सूर्य की निगरानी करने वाली ऑब्जर्वेटरी स्थापित कर दी है।
दरअसल, लैंगरैंज प्वाइंट तक पहुंचा आदित्य एल-1 धरती के इस करीबी ग्रह में होने वाली विभिन्न प्रक्रियाओं का अध्ययन, अंतरिक्ष के मौसम व सौर प्रवाह के धरती पर पड़ने वाले प्रभावों के विश्लेषण का मार्ग प्रशस्त करेगा। बीते साल दो सितंबर को प्रक्षेपित किए गए सूर्य मिशन का लक्षित कक्षा में सफलतापूर्वक पहुंचना हमारे वैज्ञानिकों की मेधा व सटीक योजना का ही परिणाम है। उल्लेखनीय है कि जिस बिंदु पर आदित्य को पहुंचाया गया है वहां सूरज व धरती का गुरुत्वाकर्षण बल संतुलित होता है, जिसके चलते अंतरिक्ष यान को कम ईंधन की जरूरत होती है। वह कम ईंधन में अधिक समय तक वैज्ञानिक शोध-अनुसंधान कर सकता है। दरअसल, आदित्य यान में मौजूद सात पेलोड्स सूर्य की बाहरी परत, ऊर्जा और अंतरिक्ष में होने वाली अन्य गतिविधियों का अध्ययन करेंगे। साथ ही उन कारकों की पड़ताल जो धरती व अंतरिक्ष के मौसम को प्रभावित करते हैं। दरअसल, सौर प्रवाह के चलते धरती पर कई तरह की वैज्ञानिक घटनाएं सामने आती हैं। जिसमें इलेक्ट्रोमैग्नेटिक विचलन की तार्किकता भी है। अब वैज्ञानिक सूर्य के विकिरण तथा धरती पर उसके प्रभावों के बारे में भी अधिक जानकारी जुटा पाएंगे। निश्चित रूप से आदित्य मिशन की सफलता से भारतीय वैज्ञानिकों के सूर्य को लेकर ज्ञान में वृद्धि होगी। जो कालांतर मानवता के कल्याण और अंतरिक्ष से आसन्न खतरों से बचाव का मार्ग दिखाने में सहायक होगा। विश्वास किया जाना चाहिए कि साढ़े चार करोड़ डॉलर बजट वाले इस आदित्य मिशन से भविष्य में देश को भरपूर लाभ मिल सकेगा।