केएल ठाकुर, परमजीत पम्मी पिछली लीड नहीं रख सके बरकरार
बीबीएन, 5 जून (निस)
लोकसभा चुनावों में एक बार फिर नालागढ़ व दून विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा आगे रही। हालांकि नालागढ़ में कांग्रेस ने इस बार बेहतर प्रदर्शन किया और 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को मिली 40 हजार की लीड को इस बार कम कर 15 हजार वोटों के करीब ला दिया। दून में भाजपा की यह बढ़त कम होकर 13 हजार पर पहुंच गई। लोकसभा चुनावों में जहां इस बार देश में भारी उलटफेर हुआ, वहीं उसकी जद में प्रदेश की औद्योगिक पट्टी बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़ भी आई है।
दून और नालागढ़ विधानसभा क्षेत्रों में केंद्र सरकार द्वारा पांच साल में कोई बड़ी सौगात न देने पर जनता का गुस्सा वोट के रूप में निकला। कभी ये दोनों विधानसभा क्षेत्र भाजपा के गढ़ माने जाते थे और यहां से 60 हजार तक की लीड भाजपा को मिलती थी। अगर 2019 के लोकसभा चुनावों की बात करें तो दून विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के लोकसभा प्रत्याशी को 20866 वोट मिले थे। उस समय वोट भी 64 हजार के करीब थे। इस बार उम्मीद थी कि यह बढ़त और ज्यादा बढ़ेगी क्योंकि वोट भी बढ़कर 74000 हो गये थे लेकिन हुआ इसके उलट और लीड 8 हजार कम हो गई।
इसी प्रकार जब प्रदेश में भाजपा सरकार थी तो 2019 में नालागढ़ की जनता ने भाजपा सांसद को 40 हजार की लीड दी थी। उसका श्रेय तत्कालीन पूर्व विधायक केएल ठाकुर ने लिया था। दून के पूर्व विधायक परमजीत सिंह व नालागढ़ के पूर्व विधायक केएल ठाकुर इस बार अपना जलवा बरकरार नहीं रख सके। यहां पर जनता की भाजपा प्रत्याशी के प्रति नाराजगी इस कदर भारी पड़ी कि यहां पर पार्टी की लीड 40 हजार से कम होकर मात्र 15 हजार रह गई। औद्योगिक पट्टी बीबीएन से 2019 में 60 हजार की लीड लेकर यहां पर विकास को लेकर खास तवज्जो नहीं दी गई और न ही कार्यकर्ताओं व आम लोगों से संवाद रखा गया।
रामकुमार ने किए अथक प्रयास
जब प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनी तो दून विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक रामकुमार चौधरी की ताजपोशी सीपीएस के रूप में हुई थी। उसी दिन से उन पर दबाब था कि किसी भी प्रकार दून से भाजपा की भारी लीड को रोकना था। रामकुमार ने इस चुनाव में अथक प्रयास किए और लोगों से संवाद भी साधा। इसी के चलते उन्होंने दून से भाजपा की भारी लीड काे न केवल रोका बल्कि उसमें 8000 मतों की कमी भी की।
हरदीप बावा ने कोर वोटर को साथ लेकर किया काम
नालागढ़ में कांग्रेस के सर्वेसर्वा हरदीप सिंह बावा थे लेकिन सुक्खू सरकार में उन्हें कोई तवज्जो नहीं मिली फिर भी बावा ने अपने कोर वोटर को साथ लेकर काम किया और भाजपा की लीड को 40 हजार से नीचे लाकर 15 हजार तक पहुंचा दिया।