नफरत के खिलाफ खाप
अब तक हरियाणवी समाज में खापों की परंपरागत सोच व रूढ़िवादी फैसलों की चर्चा देश-विदेश में होती रही है। मान्यता रही है कि इन संगठनों की कार्यशैली में प्रगतिशीलता से अंतर्विरोध नजर आता रहा है। खासकर खुलेपन के तौर-तरीकों व विचारों के साथ नया आकाश तलाशती नई पीढ़ी को लेकर। लेकिन यह सुखद ही कहा जायेगा कि नूंह में हुई हालिया हिंसक घटनाओं के चलते राज्य में सामाजिक समरसता पर जो आंच आई थी, उसे दूर करने की दिशा में खाप पंचायतें प्रगतिशील सोच के साथ सामने आ रही हैं। हाल ही में राज्य की फोगाट व सांगवान पंचायतों ने नूंह में निकाली गई उस शोभायात्रा के औचित्य को लेकर शंका जतायी, जिसको लेकर वहां हिंसक घटनाएं सामने आई थीं। साथ ही पंचायतों ने उन कथित गौरक्षकों की भी गिरफ्तारी की मांग की है जिनकी भूमिका मॉब लिंचिंग के एक मामले में संदिग्ध रही है। उनका इशारा इस साल की शुरुआत में भिवानी में कथित रूप से दो लोगों की हत्या के दोषियों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर था। खापों ने राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द को पलीता लगाने वाले तत्वों के विरुद्ध कार्रवाई करने की मांग भी की है। साथ ही खापों ने नूंह की हालिया हिंसा के बाद दोनों समुदायों के बीच विश्वास बहाली की भी बात कही है। वहीं दूसरी ओर चरखी दादरी जिले में खापों की अलग-अलग बैठकों में, सदस्यों का कहना था कि राज्य में विभिन्न खापें सांप्रदायिक एजेंडा बढ़ाने की कोशिश करने वाले तत्वों पर लगाम लगाने के मुद्दे पर एकजुट हैं। खापों ने नूंह में ब्रज मंडल यात्रा के आयोजन को लेकर भी सवाल उठाये और इसे महज राजनीतिक ध्रुवीकरण की कोशिश ही बताया। बैठकों में कहा गया कि सभी समुदाय अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिये प्रतिबद्ध हैं। बैठकों में नूंह व गुरुग्राम की हिंसा की निंदा भी की गई। वहीं दूसरी सांगवान खाप पंचायत में हालिया हिंसा के प्रति आक्रोश जताते हुए चेताया गया कि राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की इजाजत नहीं दी जायेगी।
दरअसल, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अतीत में भी खाप पंचायतें सामाजिक सौहार्द व गरिमामय परंपराओं के संरक्षण में रचनात्मक भूमिका का निर्वहन करती रही हैं। जिसके मूल में परंपरागत जीवन मूल्यों का संरक्षण और परंपराओं का जनहित में निर्वाह भी शामिल रहा है। इसमें दो राय नहीं कि आज जब राजनीति निहित स्वार्थों और पार्टी हितों तक ही केंद्रित होकर रह गई है, समाज में रचनात्मक बदलाव व मूल्यों के संरक्षण के लिये खापों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। मौजूदा सामाजिक जटिलताओं के दौर में भी जब आधुनिकता की आंधी हमारे जीवन मूल्यों को उड़ा ले जाने को बेताब नजर आ रही है। ऐसे में आशा की जानी चाहिए कि खापें किसी भी राजनीतिक दल के प्रभाव में आए बिना नीर-क्षीर विवेक से सामाजिक उत्थान व समरसता के लिये काम करती रहें। साथ ही भारतीय संस्कृति की मूलभावना वसुधैव कुटुंबकम् की अवधारणा को भी संबल देने का प्रयास किया जाये। निस्संदेह, विगत में सामाजिक विद्रूपताओं के खिलाफ तथा जाट आंदोलन व किसान आंदोलन के दौरान भी खापों ने रचनात्मक भूमिका का निर्वहन किया था। अब आम जनता सामाजिक न्याय व गंगा-जमुनी संस्कृति के संरक्षण में खापों की सक्रिय भूमिका की उम्मीद लगा रही है। लेकिन इसके साथ ही सावधानी जरूरी है कि कतिपय राजनीतिक दल आसन्न चुनावी महासमर के चलते इन संगठनों का उपयोग अपने राजनीतिक लक्ष्यों को हासिल करने में न कर सकें। मौजूदा वक्त में खापों को समाज में पथ प्रदर्शक की भूमिका निभानी है,क्योंकि राजनीतिक दलों ने समाज में जनता का विश्वास खो दिया है। यही वजह है कि खापों ने समाज में सामाजिक सद्भाव को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है। साथ ही चेताया भी कि अगर सरकार ऐसे तत्वों पर लगाम लगाने में विफल रही, तो खाप व्यवस्था का विरोध करेगी।