प्रेम और निष्ठा का व्रत करवा चौथ
आर.सी. शर्मा
कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सुहागिनें अपने पतियों की दीर्घायु के लिए करवा चौथ का व्रत रखती हैं। इसे सभी तरह के सुहाग व्रतों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इस व्रत के पीछे करवा माता की कहानी है, जो एक पतिव्रता धोबन थीं। एक बार जब उनके पति नदी में कपड़े धो रहे थे कि अचानक मगरमच्छ ने उन्हें पकड़ लिया, इस पर उन्होंने जोर जोर से अपनी पत्नी को पुकारा। जब करवा माता नदी पर पहुंचकर देखा कि उनके पति को मगरमच्छ ने पकड़ रखा है, तो उन्होंने अपने तपोबल से उन्हें मगरमच्छ की कैद से छुड़ाया और फिर अपनी सूती साड़ी के कुछ धागे निकालकर मगरमच्छ को उनसे बांध लिया और यमराज के पास पहुंचीं। यमराज के पूछे जाने पर उन्होंने सारी कहानी बतायी। इस पर यमराज उनके सतीत्व और पत्नी धर्म की निष्ठा से बेहद प्रभावित हुए। यमराज ने उनके पति को हमेशा स्वस्थ रहने और दीर्घायु का वरदान दिया, साथ ही यह भी कहा कि जो सुहागिनें कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा माता का व्रत रखेंगी, उनके पति की उम्र बहुत लंबी होगी।
तब से महिलाएं कार्तिक माह की पहली चतुर्थी यानी कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत रखती हैं। यह व्रत काफी कठिन होता है, क्योंकि इसे निर्जला रखा जाता है। करवा चौथ का व्रत मुख्य रूप से उत्तर भारत में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और राजस्थान तथा मध्य प्रदेश के एक बड़े हिस्से में मनाया जाता है। इस दिन सुहागिनें विधि-विधान से करवा माता की पूजा करती हैं और सामूहिक रूप से इकट्ठा होकर उनकी कथा सुनती हैं। इस साल 20 अक्तूबर को करवा चौथ व्रत रखा जायेगा। पंचांग के मुताबिक कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी 19 अक्तूबर को शाम 6 बजकर 17 मिनट पर शुरू होगी और 20 अक्तूबर को दोपहर बाद 3 बजकर 47 मिनट पर समाप्त होगी। लेकिन उदयातिथि के कारण करवा चौथ का व्रत 20 अक्तूबर (रविवार) को मनाया जायेगा। इस साल चांद निकलने का समय शाम 5 बजकर 46 मिनट से शुरू होगा और 7 बजकर 02 मिनट तक दिखेगा।
करवा चौथ का व्रत रखने के लिए सुहागिनों को सुबह सूरज उगने के पहले जगना चाहिए और सुबह ही स्नान कर लेना चाहिए। भले पूजा मुहूर्त के हिसाब से करनी चाहिए। जहां तक शाम को चांद के पारण के समय पूजा करने की बात है तो पूजा की थाली में धूप, दीप, फूल रोली, मिठाई और पानी का लोटा रखना चाहिए। पूजा के दौरान सबसे पहले दीया जलाना चाहिए, इसके बाद चांद को अर्घ्य देना चाहिए। अर्घ्य देने के बाद उसे छन्नी से देखना चाहिए और इसके बाद अपने पति को उसी छन्नी से देखना चाहिए। पति के छन्नी से दर्शन करने के बाद उपरांत पति पूजा की थाली में रखे लोटे से पत्नी को पानी पिलाकर व्रत का पारण करवाता है।
जिन महिलाओं को पहली बार यह व्रत करना हो, उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि वे अपनी ससुराल में ही पहला व्रत करें। इसके लिए उन्हें ब्रह्म मुहूर्त मंे उठ जाना चाहिए, फिर स्नान आदि से निवृत्त होकर सास के हाथों से सरगी का सेवन करना चाहिए। लेकिन जो महिलाएं सरगी का सेवन न करना चाहें, वो न करें। मगर जो करें उन्हें सूर्योदय के पहले ही इसका सेवन कर लेना चाहिए और पहली सरगी अपने सास के हाथों से ही लेना चाहिए। करवा चौथ में संध्या पूजन का विशेष महत्व है। मगर करवा चौथ के दिन सुबह भी पूजा की जानी चाहिए। इस दिन व्रत का पारण करने के बाद सिर्फ सात्विक भोजन ही करना चाहिए।
करवा चौथ के दिन सभी सुहागिनों को सोलह शृंगार करना चाहिए। इस दिन सोलह शृंगार करने का विशेष महत्व होता है। साथ ही इस दिन सुहागिनों को अपने हाथों पर करवा चौथ में मेहंदी जरूर रचानी चाहिए। अगर करवा चौथ का व्रत न रखें तब भी हाथों में मेहंदी रचानी चाहिए क्योंकि वह अखंड सौभाग्य की प्रतीक होती है। करवा चौथ के दिन लाल, गुलाबी या हरे रंग के कपड़े पहनने चाहिए। इस दिन अपने अपने क्षेत्र की परंपराओं के हिसाब से व्यंजन बनाना चाहिए। उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश के कई इलाकों में इस दिन दाल के फरे बनते हैं। कई जगहों पर मीठे के लिए सेवईं तो ज्यादातर जगहों पर मीठे के लिए इस दिन खीर बनती है। सुहागिनों को हमेशा खीर खाकर अपना व्रत पूरा करना चाहिए। इ.रि.सें.