ज्ञान-भक्ति युक्त कर्मयोग
सत्यव्रत बेंजवाल
पुस्तक ‘सरल-गीता’ में लेखक ने श्रीमद्भगवद्गीता का अनुवाद कर इसकी शिक्षाओं को पद्य रूप में अंकित किया है। भगवद्गीता महाभारत महाकाव्य के अंतर्गत कौरव-पांडवों के बीच युद्ध के दौरान कुरुक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण व अर्जुन के बीच हुआ संवाद है।
भगवत गीता के इस उपदेश को मनुष्य यदि जीवन में धारण करे तो मानसिक द्वंद्व व संघर्षों पर विजय पा सकता है। गीता के 18 अध्यायों में ज्ञान, भक्ति और कर्म की पावन त्रिवेणी है। मानव अपने जीवन में कर्म, स्वधर्म, उत्थान-पतन, काम, क्रोध, अहंकार इत्यादि विभिन्न विषयों का ज्ञान इसके अध्ययन से प्राप्त कर सकता है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिए हैं, जिनका बखूबी लेखक ने पद्य रूप में उल्लेख किया है ।
श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने मन को नियंत्रित रखने के लिए बुद्धि और आध्यात्मिक शक्ति का उल्लेख किया है। वहीं ध्यान, योग, स्वार्थी इच्छाओं-अपेक्षाओं का त्याग, इंद्रियों को नियंत्रित करने के लिए इच्छाशक्ति को मजबूत करना आदि युक्तियां हैं।
लेखक ने पुस्तक में उल्लेख किया कि जिस प्रकार कमल के पत्ते को जल स्पर्श नहीं करता, उसी प्रकार श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश व ध्यान करने से व्यक्ति को महापापादि कभी स्पर्श नहीं करते। लेखक ने लोकमान्य तिलक के गीता के प्रति विचार लिखे हैं कि ज्ञान-भक्ति युक्त कर्मयोग ही गीता का सार है। वहीं स्वामी विवेकानंद के उद्गार भी कि श्रीमद्भगवद्गीता उपनिषद रूपी बगीचों में से चुने हुए आध्यात्मिक सत्य रूपी पुष्पों से गुंथा हुआ पुष्प गुच्छ है। आखिरी पृष्ठ पर पद्य रूप में गीता का सार है। जनमानस के लिए यह पुस्तक उपयोगी एवं पथ-प्रदर्शक होगी, ऐसी आशा है।
पुस्तक : सरल गीता अनुवाद (लेखक) : दिनेश चंद्र छिम्वाल (गणेश) प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स दिल्ली पृष्ठ : 136 मूल्य : रु. 175.