कांवड़ यात्रा विवाद
सावन के माह में शिवभक्तों की कांवड़ यात्रा का लंबा पौराणिक इतिहास रहा है। आस्था के साथ इसका सांप्रदायिक सौहार्द का पक्ष भी सबल रहा है। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार के एक हालिया आदेश से एक अनावश्यक विवाद को बल मिला है। दरअसल, प्रदेश सरकार ने आदेश दिया है कि कांवड़ मार्गों पर सभी खाद्य व पेय पदार्थों की दुकानों तथा होटलों के संचालकों व मालिकों को अपना नाम व पहचान प्रदर्शित करनी होगी। दलील दी गई है कि कांवड़धारियों की आस्था की पवित्रता को बनाये रखने तथा कांवड़ियों की शांतिपूर्ण आवाजाही सुनिश्चित करने के लिये आधिकारिक तौर पर यह कदम उठाया गया है। इसके अलावा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हलाल-प्रमाणित उत्पाद बेचने वाले विक्रेताओं के खिलाफ कार्रवाई की चेतावनी दी है। इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए विपक्षी दलों के नेताओं व अन्य संप्रदायों के लोगों ने आदेश को अल्पसंख्यकों को अलग-थलग करने की कोशिश बताया है। दरअसल, एक पखवाड़े से अधिक समय तक चलने वाली कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ियों और दुकानदारों के बीच अक्सर हिंसा देखने में आती रही है। जिसकी मुख्य वजह यह रही है कि कांवडि़यों और दुकानदारों के बीच मांसाहारी भोजन को लेकर बहस व विवाद होता रहा है। यही वजह है कि अगस्त, 2018 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कांवड़ यात्रा के दौरान भड़की हिंसा व टकराव में निजी व सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की घटनाओं को सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से लिया था। इतना ही नहीं, वर्ष 2022 में हरिद्वार में हरियाणा के कांवड़ियों के साथ हुए विवाद में सेना के एक जवान की कथित तौर पर हत्या कर दी गई थी।
निस्संदेह, कांवड़ यात्रा के दौरान विभिन्न प्रकार के टकरावों से बचने के लिये राज्य सरकारों का दायित्व बनता है कि यात्रा मार्ग पर पर्याप्त संख्या पर पुलिसकर्मियों को तैनात करे। ताकि किसी भी प्रकार की हिंसा व गड़बड़ी को टाला जा सके। लेकिन एक बात तय है कि अल्पसंख्यकों द्वारा संचालित दुकानों को चिन्हित करने से न केवल सांप्रदायिक अलगाव को बढ़ावा मिलेगा, इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि इससे कांवड़ियों व राहगीरों के बीच कोई टकराव नहीं होगा। दूसरी ओर केंद्र में सत्तारूढ़ राजग सरकार में शामिल भाजपा के दो सहयोगियों जनता दल यूनाइटेड तथा लोक जनशक्ति पार्टी ने भी यूपी सरकार के इस आदेश की आलोचना की है। वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस आदेश को असंवैधानिक बताया है। यह साफ है कि उत्तर प्रदेश में हाल के लोकसभा चुनावों में ध्रुवीकरण की रणनीति भाजपा के लिये लाभदायक साबित नहीं हुई थी। लेकिन पार्टी राज्य में होने वाले विधानसभा उपचुनाव से पहले इसे फिर आजमाने के प्रलोभन से बच नहीं पायी है। दरअसल, चुनावी उलटफेर के बाद अपेक्षित चुनाव परिणाम हासिल न कर पाने वाली भाजपा अपने निराश बहुसंख्यक मतदाताओं को फिर अपने पाले में करने के लिये लालायित नजर आ रही है। लेकिन राजनीतिक पंडित कयास लगा रहे हैं कि यह चाल भाजपा के लिए उलटी भी पड़ सकती है।