कैथल के आठ अस्पताल, डॉक्टर बिन सब बेहाल
ललित शर्मा/हप्र
कैथल, 9 जुलाई
कैथल जिले के आठ सरकारी अस्पताल बिना डाॅक्टरों के चल रहे हैं। बड़ा सवाल है कि इस लाचार व्यवस्था में रोगियों का उपचार कैसे हो? प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र करोड़ा, किठाना, रसीना, फरल, बालू, सजूमा, बड़सीकरी और खरकां में डाॅक्टरों के दो-दो पद स्वीकृत हैं, लेकिन नियुक्त एक भी नहीं। बिना डॉक्टरों के इन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) में से एक-एक पर पांच से दस गांवों के लोगों के इलाज का जिम्मा है। यानी 50 गांवों की स्वास्थ्य सेवाएं राम भरोसे हैं। खुद ही बीमार इन अस्पतालों में कैसा इलाज होता होगा, अंदाजा लगाया जा सकता है। सामान्यत: करीब 20 हजार की आबादी पर एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खोला जाता है। आइये एक-एक कर इन केंद्रों की पड़ताल करें।
बड़सीकरी के स्वास्थ्य केंद्र में चिकित्सा अधिकारियों से लेकर डेंटल सर्जन, औषधाकार, स्टाफ नर्स- सभी पद खाली पड़े हैं। इस केंद्र की जद में आने वाले गांव बड़सीकरी कलां, बड़सीकरी खुर्द, कमालपुर, खेड़ी शेरखां, मटौर, कलासर, भालग गांव के मरीज आखिर कहां जाएं। इसी तरह सजूमा में भी डाॅक्टर नहीं हैं। किराए की बिल्डिंग में चल रहे इस स्वास्थ्य केंद्र में स्टाफ नर्स भी नहीं है। केवल औषधाकार के सहारे सजूमा, खेड़ी लांबा, दुब्बल, सिणद, हरिपूरा, दिल्लोवाली, दिवाल आदि गांवों के लोग इलाज करवा रहे हैं। यहां डेपुटेशन पर दो नर्सों की तैनाती है। पंद्रह दिन एक, 15 दिन दूसरी नर्स दवा देने आती हैं। फरल में अस्पताल इमारत उद्घाटन के इंतजार में है। अभी उधार की बिल्डिंग में चल रहे इस केंद्र में एक लैब टेक्नीशियन (एलटी) के भरोसे फरल, खेड़ी मटरवा, रावनहेड़ा, खनौदा, मोहना, ढुलियानी, संगरौली, धेरड़ू गांव के लोग हैं। खरकां, किठाना आदि केंद्रों की हालत भी ठीक नहीं है। इन स्वास्थ्य केंद्रों में पहुंचे प्रवीण, भूषण आदि का कहना है कि रोग चाहे कुछ भी हो, लाल सी गोली थमा दी जाती हैं। इन सब नकारात्मक बातों के बीच बाता के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में औषधाकार, लैब टेक्नीशियन, स्टाफ नर्स हैं। यहां प्रति माह करीब 12 डिलीवरी भी होती हैं।
आसपास के डॉक्टरों से ड्यूटी देने को कहा है : सीएमओ
सरकार की मंशा ठीक नहीं : गीता भुक्कल