मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

एक महानायक के साथ न्याय

06:47 AM Sep 17, 2023 IST

ज्ञानचंद्र शर्मा

Advertisement

मध्यकालीन भारतीय इतिहास में छत्रपति शिवाजी महाराज का एक विशेष स्थान है। देश के प्रायः सभी छोटे-बड़े राजा जब मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के नाम से भय खाते थे उस समय शिवाजी उसके सामने चुनौती बन कर खड़े हो गए। दक्षिण-विजय की औरंगज़ेब की हसरत का सबसे बड़ा रोड़ा शिवाजी थे।
औरंगज़ेब ने शिवाजी को दबाने के लिये अनेक हथकंडे अपनाए परंतु उन्होंने सब को निरस्त कर दिया। औरंगज़ेब ने अपने सेनानायक आमेर के राजा मिर्जा जय सिंह को शिवाजी का सर कलम के लिए भेज दिया। उसकी फ़ौजों ने जाकर शिवाजी की सेना को घेर लिया। यह घेरा कई दिन तक चला। अंत में व्यर्थ रक्तपात न हो इसलिए उन्हें राजा जय सिंह के साथ सन्धि करने के लिए विवश होना पड़ा। इस सन्धि के अनुसार अन्य शर्तों के अतिरिक्त अपना एक बहुत बड़ा क्षेत्र मुग़लों को देना था और स्वयं बादशाह के दरबार में उपस्थित होना था।
शिवाजी आगरा गये जहां उन्हें बंदी बना कर पांच हज़ार सैनिकों की पहरेदारी में रखा गया। यहां से भी औरंगज़ेब को धता बताकर और सैनिकों की आंखों में धूल झोंकते हुए अपने बुद्धि कौशल से बच निकलने में सफल हुए। वह फिर से अपने संघर्ष में लीन हो गए।
इतिहास-पुस्तकों में शिवाजी की उपलब्धियों का नगण्य उल्लेख है, उन्हें ‘पहाड़ी चूहा’ ‘छापा मार लुटेरा’ आदि निम्नतर विशेषणों से संबोधित किया जाता है। यह अपना इतिहास दूसरों के हाथों लिखे जाने का परिणाम है। उनकी दृष्टि एकतरफ़ा और पूर्वाग्रह ग्रस्त रहती है। इसीलिए भारतीय इतिहास के पुनर्लेखन की आवाज़ उठ रही है।
मराठी लेखक विश्वास पाटील का उपन्यास ‘महासम्राट’ इन्हीं छत्रपति शिवाजी के जीवन पर आधारित है। शृंखला रूप में लिखे जाने वाले इस उपन्यास के प्रथम खंड ‘झंझावात’ में मराठा सत्ता के उदय और शिवाजी के जन्म से लेकर मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के आदेश पर शिवाजी को परास्त करने के लिए प्रतापगढ़ पर चढ़ाई करने आए बीजापुर के सुल्तान अफ़ज़ल खां के शिवाजी के हाथों मारे जाने और उसके बाद की स्थिति का वर्णन है।
शिवा की माता जीजाऊ ने प्रारंभ से ही उन्हें एक बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिये तैयार करना शुरू कर दिया। किशोर अवस्था में प्रवेश करते ही वेे अपने पिता के साथ चढ़ाइयों पर जाने लगे थे। युवा होते-होते वह स्वतंत्र रूप से अपनी सत्ता के विस्तार में लग गये। अभी तीस के भी नहीं हुए थे कि उन्होंने अफ़ज़ल खां जैसे दुर्दांत शत्रु का अंत कर दिया। उसका सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार करने में उनके मानवीय पक्ष की झलक मिलती है।
विश्वास पाटील ने स्वतंत्र रूप से तथ्य जुटा कर उपलब्ध ऐतिहासिक साक्ष्यों से उनकी पुष्टि की है। इस उपन्यास में इतिहास और कल्पना का अच्छा मिश्रण है। कहीं-कहीं अनावश्यक विस्तार कथा-प्रवाह में बाधक बन जाता है।

पुस्तक : महासम्राट लेखक : विश्वास पाटील प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 438 मूल्य : रु. 399.

Advertisement

Advertisement