हादसों की यात्रा
उत्तराखंड में शुरू हुई चारधाम यात्रा के दौरान लगातार बढ़ी सड़क दुर्घटनाएं गंभीर चिंता का विषय बनी हुई हैं। पिछले चौबीस घंटों में तीन बड़े हादसों ने परिवहन व्यवस्था की रीति-नीतियों में बदलाव की जरूरत को बताया है। शनिवार को चारधाम यात्रा पर जा रहे एक टैंपो-ट्रैवलर के खाई में गिर जाने से पंद्रह तीर्थयात्रियों की मृत्यु हो गई। 24 घंटे के भीतर पौड़ी जनपद में दो वाहन खाई में गिर गए। एक व्यक्ति की मृत्यु के अलावा दर्जनभर लोग घायल हो गए। दरअसल, गर्मी से झुलसते मैदानों से लोग तीर्थाटन और पहाड़ों पर राहत पाने के लिये बड़ी संख्या में घरों से निकल रहे हैं। हाल के दिनों में चार पहिया वाहनों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई, जिसका बोझ पहाड़ की अपेक्षाकृत कम चौड़ी सड़कें उठाने में सक्षम नहीं हैं। जिसके चलते लगातार उत्तराखंड, हिमाचल व जम्मू-कश्मीर में वाहनों के खाई में गिरने की खबरें आती हैं। विडंबना यह है कि पहाड़ की प्रकृति और यातायात की संवेदनशीलत को समझे बगैर लोग निजी वाहनों के साथ यात्रा पर निकल जाते हैं। जिसके चलते अकसर दुर्घटनाएं होती हैं। उत्तराखंड चारधाम यात्रा के शुरू होने के बाद कई-कई किलोमीटर लंबे जाम लगने के समाचार लगातार आ रहे हैं। रविवार को भी गंगा दशहरा के स्नान में शामिल होने वाले लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा। जिसके चलते हरिद्वार से पहले कई-कई किलोमीटर के जाम लगे। लोग भीषण गर्मी में अपने वाहनों में कैद हो गए और वाहन बमुश्किल सड़कों पर रेंगते नजर आए।
पहाड़ों की संवेदनशीलता और जोखिम के मद्देनजर उत्तराखंड सरकार ने चालकों के लिये नए नियम बनाकर दुर्घटनाओं को टालने का प्रयास किया। राज्य सरकार ने फैसला लिया है कि पहाड़ों पर जाने वाले वाहन के चालकों के लिये हिल-एंडोर्समेंट की अर्हता को अनिवार्य किया जाएगा। अब तक यह परीक्षा ऑनलाइन होती थी। यह व्यवस्था पहले देहरादून में उपलब्ध थी, अब इसे चारधाम यात्रा के द्वार ऋषिकेश-हरिद्वार में भी अनिवार्य किया गया है। इसके अंतर्गत पहाड़ी इलाकों की सड़कों पर वाहन चलाने में बरती जाने वाली अतिरिक्त सावधानी के प्रति चालकों को सजग-सतर्क किया जाएगा। जिसके जरिये यह जानने का प्रयास होगा कि चालक पहाड़ में दुर्घटना के कारकों से बचने हेतु मनोवैज्ञानिक रूप से कितना मजबूत व सक्षम है। इस फिजिकल टेस्ट से चालकों की पर्वतीय इलाकों में वाहन चालन क्षमता का मूल्यांकन होगा। दरअसल, पहाड़ सीमित मात्रा में यात्रियों के आवागमन की इजाजत देते हैं। लेकिन हाल के वर्षों में सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करने की बजाय निजी वाहनों में दुर्गम इलाकों में जाने का फैशन बढ़ा है। संकट यह भी है कि वाहन चालकों को लाइसेंस व ग्रीन कार्ड देने में तमाम तरह की धांधलियां होती हैं। जिसके चलते अयोग्य चालक लोगों की जान संकट में डाल देते हैं। सरकारें ऐसे हादसा होने पर जागती हैं। जनता का आक्रोश टालने के लिये नये कायदे-कानून लागू करने की बात कही जाती है। कुछ दिनों शोर में ये चलता है और फिर अगली बड़ी दुर्घटना तक सब ठंडे बस्ते में चला जाता है।