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जींद भाजपा ने गैर जाटों के जरिए भेदा जाटलैंड, 5 में से 4 सीटें जीतीं

10:05 AM Oct 09, 2024 IST

जसमेर मलिक/हप्र
जींद, 8 अक्तूबर
जींद की बांगर की धरती इस बार भाजपा के कमल को राजनीतिक रूप से खूब रास आई है। भाजपा ने जींद की जाटलैंड में जो गैर जाट कार्ड खेला था, वह पूरी तरह से सफल रहा। इसमें भाजपा की मदद उचाना में निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी की, जिन्होंने कांग्रेस की हार और भाजपा की जीत में निर्णायक भूमिका निभाई।
बांगर की जींद की धरती पर इससे पहले भाजपा कभी एक साथ दो विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज नहीं कर पाई थी। उसे 2014 में उचाना कलां में तो 2019 में जींद में जीत मिली थी। इस बार भाजपा ने जींद जिले की 5 में से 4 विधानसभा सीटों पर ऐतिहासिक जीत दर्ज कर कांग्रेस और पूर्व में इनेलो तथा जजपा का मजबूत गढ़ रहे जींद को पूरी तरह से भेद दिया है। सफीदों से भाजपा प्रत्याशी रामकुमार गौतम ने कांग्रेस के पूर्व विधायक सुभाष गांगोली को लगभग 4037 मतों के अंतर से पराजित किया। जींद से भाजपा प्रत्याशी डॉ. कृष्ण मिड्ढा ने कांग्रेस के महावीर गुप्ता को लगभग 15000 मतों के अंतर से हराया। सबसे बड़ा उलटफेर नरवाना में करते हुए भाजपा के कृष्ण बेदी ने बाहरी होने के बावजूद कांग्रेस के सतबीर दबलैन और इनेलो की विद्या दनौदा को धूल चटाई।
सफीदों से भी टूटा मिथ
अभी तक जींद जिले की सफीदों विधानसभा सीट को लेकर यह मिथ था कि यहां से कोई बाहरी नहीं जीत सकता। 1987 में चौधरी देवीलाल की लोकदल की आंधी में भी उनकी पार्टी के बाहरी रामचंद्र जांगड़ा की सफीदों में जमानत जब्त हुई थी, तो 2014 में तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की बहन डॉ. वंदना शर्मा को बाहरी होने के कारण सफीदों में हार का सामना करना पड़ा था। इस बार जब भाजपा ने बाहरी रामकुमार गौतम को सफीदों से चुनावी दंगल में उतारा, तब उन्हें बहुत कमजोर माना गया था, लेकिन उन्होंने कांग्रेस के मजबूत प्रत्याशी सुभाष गांगोली को 4037 मतों के अंतर से पराजित कर बड़ा उलटफेर किया और सफीदों के उस मिथ को तोड़ दिया, जिसमें सफीदों से कभी बाहरी की दाल नहीं गलती थी।

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उचाना में भाजपा की चौंकाने वाली जीत
उचाना कलां में भाजपा की सबसे चौंकाने वाली जीत हासिल हुई। यहां से कांग्रेस प्रत्याशी रिटायर्ड आईएएस अधिकारी बृजेंद्र सिंह मजबूत प्रत्याशी माने जा रहे थे, लेकिन उन्हें भाजपा के एकदम नए नवेले देवेंद्र अत्री ने महज 32 मतों के अंतर से पराजित कर दिया। उचाना कलां को पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ. बीरेंद्र सिंह और उनके परिवार का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता है। खुद चौ. बीरेंद्र सिंह पांच बार विधायक बने और एक बार उनकी पत्नी प्रेमलता उचाना कलां से विधायक बनी।

कांग्रेस के बागी पड़े पार्टी प्रत्याशी पर भारी
उचाना कलां में कांग्रेस के बागियों ने पार्टी के सबसे मजबूत प्रत्याशी पूर्व सांसद बृजेंद्र सिंह की हार में अहम भूमिका निभाई। पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा के नजदीकियों में शुमार रहे विरेंद्र घोघड़ियां और दिलबाग संडील को कांग्रेस की टिकट नहीं मिली, तो दोनों बागी होकर चुनावी दंगल में उतर गए। इनमें विरेंद्र घोघड़ियां 30000 से ज्यादा और दिलबाग संडील लगभग 7000 वोट ले गए और यही उचाना कलां से भाजपा प्रत्याशी देवेंद्र अत्री की महज 32 मतों के अंतर से जीत और बृजेंद्र सिंह की इतने ही मतों से हार का सबसे बड़ा कारण बना।

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विनेश के लिए दीपेंद्र, प्रियंका ने झोंकी ताकत
कांग्रेस प्रत्याशी विनेश फोगाट ने जुलाना से चुनाव जीत लिया है, लेकिन उनकी सफलता के लिए कांग्रेस पार्टी को जींद जिले में खासी मेहनत करनी पड़ी। इस बार, कांग्रेस ने जुलाना से पार्टी टिकट के लिए 86 दावेदारों को दरकिनार कर ओलंपिक में डिस्क्वालिफाई हुई पहलवान विनेश फोगाट को चुनावी दंगल में उतारा। जब विनेश को टिकट मिला, तब वह जन भावनाओं के बवंडर पर सवार थीं। लेकिन जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते गए, उनकी स्थिति बिगड़ने लगी। बीच में उनकी हार की चर्चाएं भी होने लगीं। जिस विनेश को कांग्रेस नेतृत्व दूसरे क्षेत्रों में स्टार प्रचारक बनाने का विचार कर रहा था, वही खुद जुलाना में उलझ गईं। चुनाव लड़ने का अनुभव न होना, क्षेत्र के कांग्रेस नेताओं द्वारा उचित सम्मान न मिलना, और चुनावी प्रबंधन की कमी ने उनकी स्थिति को लगातार कमजोर किया। इस स्थिति को देखते हुए सांसद दीपेंद्र हुड्डा को जुलाना विधानसभा क्षेत्र में एक दिन में तीन रैलियां करनी पड़ीं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी को भी विनेश की जीत के लिए जुलाना आना पड़ा। इसके बावजूद, विनेश फोगाट ने भाजपा के उम्मीदवार बाहरी कैप्टन योगेश बैरागी को मुश्किल से 6000 मतों के अंतर से हराया।

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