For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

जननायक पटनायक

07:41 AM Jun 07, 2024 IST
जननायक पटनायक
Advertisement

नवीन पटनायक कुछ दिन और सत्ता में रह पाते तो उनका मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल देश में सबसे ज्यादा होता। इसके बावजूद लगातार 24 साल तक उन्होंने एकछत्र राज किया। हालांकि, इस बार के लोकसभा चुनाव के साथ कराये गए ओडिशा विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी बीजू जनता दल को करारी हार का सामना करना पड़ा है। जिस पार्टी को नब्बे के दशक में राज्य की राजनीति में पैर रखने की जगह बीजेडी ने दी थी, उसी ने उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया। राज्य में अब भाजपा पहली बार सरकार बनाने जा रही है। उसे विधानसभा की 78 सीटें मिली हैं। वहीं आम चुनाव में लोकसभा की कुल इक्कीस सीटों में से बीस सीटें भाजपा को मिली हैं। वक्त का पहिया कुछ ऐसा घूमा है कि लगातार पांच बार विधानसभा चुनाव जीतने और चौबीस साल तक निष्कंटक राज करने वाले नवीन पटनायक अपने एक अन्य विधानसभा क्षेत्र से चुनाव हार गए। बीजेडी को 51 विधानसभा सीटों पर सफलता जरूर मिली मगर लोकसभा की एक भी सीट बीजेडी नहीं जीत सकी। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेडी ने 12 व भाजपा ने आठ सीटें जीती थी। हालांकि, राजनीति के पुराने खिलाड़ी नवीन पटनायक को इस बात का बखूबी अहसास था कि भाजपा उन्हें सत्ता से विस्थापित कर सकती है। फलत: उन्होंने अपने अंतिम कार्यकाल में भाजपा की काट के लिये सांस्कृतिक राजनीति का सहारा लेना शुरू कर दिया था। वे महसूस कर रहे थे कि ओडिशा के छोटे शहरों के युवाओं का रुझान भाजपा के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की तरफ बढ़ रहा है। अब तक लोक कल्याण योजनाओं को अपनी राजनीति की धार बनाने वाले नवीन पटनायक ने अयोध्या की रणनीति के मुकाबले में श्रीजगन्नाथ मंदिर के आसपास में एक हेरिटेज कॉरिडोर को मूर्त रूप देने का प्रयास किया। राज्य के अनेक प्राचीन मंदिरों को जीर्णोद्धार के जरिये नये सिरे से निखारा गया। इसके अलावा हाल ही में पहले विश्व ओड़िया भाषा सम्मेलन आयोजित करके साहित्य व संस्कृति कर्मियों को जोड़ने का प्रयास किया गया।
दरअसल, राज्य में बदलती राजनीतिक बयार के मद्देनजर नवीन पटनायक ने युवाओं पर केंद्रित कार्यक्रमों को तरजीह दी। लोकप्रिय कल्याण कार्यक्रमों से इतर पटनायक ने बीजेपी की तरफ बढ़ रहे युवाओं को साथ जोड़ने के लिये ओडिशा को देश के खेलों की राजधानी बनाने का प्रयास किया। उन्होंने उन खेलों को तरजीह दी जो क्रिकेट की सुनामी में हाशिये पर जा रहे थे। पटनायक सरकार ने हॉकी की राष्ट्रीय पुरुष व महिला हॉकी टीम को प्रायोजित किया। इसके अलावा पर्याप्त खेल संरचना के विस्तार के साथ ही राज्य में दो विश्व हॉकी कप श्रृंखला आयोजित की गई। राज्य में शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं की असंतोषजनक स्थिति के मद्देनजर अस्पतालों का आधुनिकीकरण, स्कूलों की संरचना में बदलाव, बस सेवाओं में सुधार के प्रयास पिछले कुछ समय में किए गए। लेकिन उनकी एक कमी रही कि अपनी इन सार्थक पहलों का श्रेय लेने का प्रचार करने में वे पीछे रह गए। वहीं इन योजनाओं के क्रियान्वयन का दायित्व नौकरशाहों को सौंपने की वजह से उसका लाभ पार्टी को राजनीतिक तरीके से नहीं मिल पाया। वहीं अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में नौकरशाह वीके पांडियन को पार्टी व शासन में अधिक अधिकार देने का खमियाजा भी नवीन पटनायक ने भुगता। दरअसल, पांडियन तमिलनाडु मूल के हैं और ओडिशा में उनकी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका को एक बड़ा मुद्दा बना दिया गया। जिसका भाजपा ने खूब प्रचार किया। दरअसल, सत्ता में लगातार वर्चस्व बनाये रखने वाले पटनायक ने अपने आसपास किसी राजनीतिक विकल्प बनने की संभावना को कभी पनपने नहीं दिया। पांडियन प्रकरण पटनायक के लिए बेहद नुकसानदायक साबित हुआ क्योंकि ओडिशा में एक धारणा बन गई कि राज्य की बागडोर एक गैर ओड़िया व्यक्ति को सौंपी जा रही है। दरअसल, प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा देकर पांडियन जैसे बीजेडी में शामिल हुए और उन्होंने राजनीतिक अभियानों में भाग लिया, भाजपा ने इसे ओडि़या अस्मिता का अपमान बताकर इसे बड़ा मुद्दा बना दिया। बाद में पटनायक की सफाई भी काम नहीं आई। बहरहाल, गरीबों, ग्रामीण महिलाओं तथा बुजुर्गों के लिये अनेक प्रभावी योजनाओं को सफलतापूर्वक चलाकर लोगों के दिलों में वर्षों राज करने वाले नवीन पटनायक को ओडिशा के लोग जल्दी भुला नहीं पाएंगे।

Advertisement

Advertisement
Advertisement