वसंत का मुगालता छोड़ कामधंधे में लगने का वक्त
डॉ. प्रदीप उपाध्याय
चमन अब घर चल। तेरे घर वाले तेरी बाट जोह रहे हैं। करन अब तू भी घर जा। घर जाकर खूब मेहनत-मजूरी कर। अब्दुल तू क्या अब भी उनका चेहरा तके है, अब जाकर अपनी पंक्चर की दुकान संभाल और हां मंगू मोची, तू किसके भरोसे पर बैठा है! तुझे क्या काम-धंधा नहीं करना है। और संपत तू, अपना काम तो नहीं भूल गया! चल जाकर अपनी परचून की दुकान खोल और दो जून की जुगाड़ जमा। सब जाकर अपना काम-धंधा संभालो। और हां, अब घरवालों को भी समझा-बुझा देना कि बारह माह वसंत नहीं रहता है। वैसे तुम लोगों को पतझड़ की मानिंद दिन गुजारने की आदत तो है ही।
और हां, उन लोगों को भी समझा देना जो बड़े-बड़े सब्जबाग देखकर तुम लोगों के साथ हो लिए थे। क्या तुमने पहले से ही उनके सामने पूरी पिक्चर नहीं रख दी थी। वैसे किसी को मुगालते में नहीं रखना चाहिए। मुझे मालूम है कि पहली बार तो तुम लोगों को भी मुगालता हो गया था। तुम लोगों को लगा था कि अब दुख के बादल छंट जाएंगे। लेकिन यह तो कहावत ही कि घूरे के दिन भी फिरते हैं। तुम लोगों को तो इन्हीं हालात में जीवन-बसर करना है। जैसे तुम लोगों के बाप-दादा करते आए हैं। खैर, अब तुम्हारी ज़रूरत पांच साल के बाद ही पड़ेगी।
अरे सुना नहीं! अभी उनके पास टाइम नहीं है। अब वे तुमसे मिलने नहीं आने वाले। क्या कहा, तुम खुद उनसे मिलने उनके बंगले के बाहर खड़े हुए थे। अब वे बंगले पर भी नहीं मिलेंगे। वे अपना गणित जमाने में लगे हैं। तुम लोगों को मालूम ही होगा कि गणित कितना कठिन विषय है।
क्या कहा कि वे स्वार्थी हैं। अरे नहीं भाई, ऐसा नहीं है कि जब उनको तुम लोगों की जरूरत पड़ती है तो वे नाक रगड़ते हुए आ जाते हैं। आखिर मतलब पड़ने पर ही तो रिश्तेदारी बताई जाती है।
देखो, वे तुम लोगों का कितना ध्यान रखते हैं। चुनाव की घोषणा होते ही तुम्हारा सारा खर्चा-पानी उठाने को तत्पर रहते हैं। तुम्हें अपने घर-बार की चिंता से मुक्त रखते हैं। उत्सवी माहौल बनाकर भरपूर मदिरापान और भरपेट भोजन की व्यवस्था करना क्या छोटी-मोटी बात है! उनका बेड़ा पार लगाने में तुम्हारा योगदान कोई कम थोड़े ही है। हां, यह बात अलग है कि चुनाव हो जाने के बाद तुम्हारी उपयोगिता कुछ सीमित हो जाएगी। अब जब चुनाव सम्पन्न हो गए हैं तो स्वाभाविक है कि कुछ लोग ध्यानयोग में तल्लीन होंगे तो कुछ लोग भोग में ध्यान लगाने अज्ञातवास पर निकल पड़ेंगे। जिसकी जैसी चाहत और जिसकी जैसी कुव्वत, भला इससे अपने को क्या। बस तुम लोग दुआ करो कि उनको सफलता मिल जाए।