बरस रही बकवास को याद रखना मुश्किल
आलोक पुराणिक
अयोध्या कार्यक्रम को जिस तरह से टीवी चैनल दिखाने में जुटे, उससे समझ आ गया कि गमों में सबसे बड़ा गम है गम-ए-रोजगार।
हर टीवी रिपोर्टर को टेंशन कि कुछ नया, कुछ खास निकालना है।
कुछ टीवी रिपोर्टर तो वानर भेष में ही घूम रहे थे। कुछ नया होना चाहिए, देखकर हंसे पब्लिक तो टेंशन नहीं, पब्लिक हंसे तो टीआरपी आयेगी।
मेरे पास कुछ टीवी चैनलों के बाॅस लोगों के फोन आये –बताइये कुछ नये आइडिये, कैसे कुछ अलग करें।
मैंने मजाक में ही कह दिया, वानर भेष में घुमाइये रिपोर्टरों को। कुछ देर में कुछ रिपोर्टर वानर बने घूम रहे थे। वाहियात बातें सोच समझकर बोलना चाहिए, इन दिनों उन्हें बहुत सीरियसली लिया जा रहा है। वानर बनने या नागिन बनने में क्या कष्ट, अगर टीआरपी की बारिश हो रही हो तो।
एक रिपोर्टर बकरी का इंटरव्यू करता हुआ पाया गया।
जी सब चलता है। वैसे बकरी का इंटरव्यू करना बेहतर है। नेताओं के इंटरव्यू देख-सुनकर पक गये हैं। बकरी जो भी कहती है, उसकी व्याख्या अपने-अपने हिसाब से की जा सकती है। यह कहा जा सकता है कि बकरी पीएम मोदी को धन्यवाद दे रही है या फिर बकरी देश के सबसे पहले पीएम नेहरू को धन्यवाद दे रही है। इन दिनों इतनी बकवास बरस रही है टीवी चैनलों पर कि याद रख पाना मुश्किल है।
अहा क्या वक्त था अब से करीब चालीस साल पहले का। कई टीवी केंद्रों पर शाम को कुछ घंटों के लिए ही टीवी कार्यक्रम आया करते थे।
तब कई बंदों को यह तक याद हुआ करता था कि उस दिन दिखाये गये कृषि दर्शन कार्यक्रम में फंफूद हटाने की विधि में कौन-कौन-सी विधियां बतायी गयी थीं। वे भी जिनका खेती से कोई लेना-देना न था। उन दिनों दूरदर्शन समाचार देखने वाले कई लोगों को यह शिकायत थी कि समाचार वाचिका सलमा सुल्तान मुस्कुराती बिलकुल नहीं हैं। सलमा सुल्तान की मुस्कान राष्ट्रीय चिंता का विषय हुआ करती थी। अब तमाम टीवी एंकरों को उनकी चीख-चिल्लाहट के लिए याद किया जाता है। ‘हम लोग’ नामक धारावाहिक में एक चरित्र हुआ करती थी- बड़की। उसकी शादी को लेकर कुछ अड़चनें आ रही थीं। बड़की की शादी भी राष्ट्रीय चिंता का विषय बनी।
नया सुझाव यह है कि गणों की बारात के स्वरूप में टीवी रिपोर्टर रिपोर्टिंग करें। बारात में भूत-प्रेत शामिल हुए थे। बस यह देखना बाकी रह गया है कि रिपोर्टर भूत-प्रेत बने घूमते दिखें।
दिखेगा, यह भी दिखेगा।