किसी को आरक्षण से बाहर रखना विधायिका और कार्यपालिका का काम : सुप्रीम कोर्ट
नयी दिल्ली, 9 जनवरी (एजेंसी)
सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को कहा कि कार्यपालिका और विधायिका यह तय करेंगे कि क्या उन लोगों को आरक्षण के दायरे से बाहर रखा जाए, जो कोटे का लाभ ले चुके हैं और दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा करने की स्थिति में हैं। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने पिछले साल अगस्त में शीर्ष अदालत की सात जजों की संविधान पीठ के फैसले का हवाला देते हुए एक याचिका पर यह टिप्पणी की। जस्टिस गवई ने कहा, ‘हमारा विचार है कि पिछले 75 वर्षों को ध्यान में रखते हुए, ऐसे व्यक्ति जो पहले से ही लाभ उठा चुके हैं और दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा करने की स्थिति में हैं, उन्हें आरक्षण से बाहर रखा जाना चाहिए। लेकिन इस बारे में निर्णय कार्यपालिका और विधायिका को लेना है।’
संविधान पीठ ने बहुमत से फैसले में कहा था कि राज्यों को अनुसूचित जातियों (एससी) के अंदर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है, ताकि उनमें सामाजिक और शैक्षणिक रूप से अधिक पिछड़ी जातियों को उत्थान के लिए आरक्षण दिया जा सके। संविधान पीठ का हिस्सा रहे और एक अलग फैसला लिखने वाले जस्टिस गवई ने कहा था कि राज्यों को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के बीच भी क्रीमी लेयर की पहचान करने और उन्हें आरक्षण का लाभ देने से इनकार करने के लिए एक नीति बनानी चाहिए। बृहस्पतिवार को याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील ने सर्वोच्च न्यायालय के उस फैसले का हवाला दिया, जिसमें ऐसे क्रीमी लेयर की पहचान करने के लिए नीति बनाने को कहा गया था। जस्टिस गवई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का विचार है कि उप-वर्गीकरण स्वीकार्य है। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि संविधान पीठ की ओर से राज्यों को नीति तैयार करने का निर्देश दिए हुए लगभग छह महीने बीत चुके हैं। पीठ ने कहा कि हम इस पर सुनवाई के इच्छुक नहीं हैं। जब वकील ने याचिका वापस लेने और इस मुद्दे पर निर्णय ले सकने वाले संबंधित प्राधिकारी के समक्ष अभ्यावेदन दायर करने की अनुमति मांगी तो अदालत ने इजाजत दे दी। वकील ने कहा कि राज्य नीति नहीं बनाएंगे और अंततः शीर्ष अदालत को हस्तक्षेप करना पड़ेगा तो इस पर अदालत ने कहा कि सांसद हैं न। सांसद कानून बना सकते हैं।