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आत्मनिर्भर भारत के लिए नवाचार को बढ़ावा देना आवश्यक

08:38 AM Nov 07, 2024 IST
आत्मनिर्भर भारत के लिए नवाचार को बढ़ावा देना आवश्यक
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चंडीगढ़, 6 नवंबर (ट्रिन्यू)
2047 तक ‘विकसित भारत बनाने के लिये स्वदेशी तकनीक’ विषय पर पंजाब विश्वविद्यालय में शुरू हुई तीन दिवसीय चंडीगढ़ साइंस कांग्रेस (चैसकॉन) में उद्घाटन भाषण में आईएनएसए (इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी) के अध्यक्ष प्रो. अाशुतोष शर्मा ने कहा कि देश में आज इंटेलेक्चुअल टेलेंट की कमी नहीं है लेकिन अभी भी कल्चरल बिहेवियर इसके अनुकूल नहीं है। उन्होंने कहा कि कोविड से पहले देश में एन 95 मास्क तक नहीं बनता था लेकिन जुगाड़, धंधा और पंगा लेने की प्रवृति ने सब कुछ सिखा दिया। प्रो. आशुतोष ने कहा कि जो पढ़ाया जाता है उसका व्यवहार में ज्यादा इस्तेमाल नहीं है। हर चीज पर सवाल करने की आदत डालनी होगी और इन्वेंशन को इनोवेशन यानी कॉमर्शियलाइज करना होगा। उन्होंने कहा कि हालांकि प्रौद्योगिकी महत्वपूर्ण है लेकिन समाज को आत्म-सम्मान, आत्मविश्वास और अपनी ताकत और कमजोरियों की आलोचनात्मक समझ पर ध्यान देना चाहिए। ये ‘तीन सांस्कृतिक स्तंभ’ हैं- आत्मविश्वास, आत्म-सम्मान और आत्म चिंतन। ये भारत के वैज्ञानिक परिदृश्य में नवाचार और उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण हैं। सम्मेलन में एशिया पेसेफिक जापान ग्लोबल गवर्नमेंट अफेयर्स वरिष्ठ निदेशक श्वेता खुराना ने अपने बीज वक्तव्य में कहा कि एआई से ही रोजमर्रा का जीवन चालित होगा। भविष्य के वैज्ञानिकों के रूप में छात्रों के पास इस एआई क्रांति का नेतृत्व करने का अवसर है। कल्पना कीजिए कि भारत न केवल एआई का उपभोग करने वाला बल्कि एआई में नए ज्ञान का नेतृत्व करने वाले राष्ट्र में भी परिवर्तित हो रहा है। उन्होंने कहा कि यह प्रभाव गहरा हो सकता है, न केवल नवप्रवर्तन से बल्कि जिम्मेदारीपूर्वक, नैतिक रूप से और स्थायी रूप से परिवर्तन का नेतृत्व करने से, क्योंकि हम प्राचीन विज्ञान को आधुनिक सफलताओं से जोड़ते हैं। सुश्री खुराना ने कहा कि एआई-सक्षम युग स्थानीय समुदायों को बढ़ावा दे सकता है, रोजगार पैदा कर सकता है और एआई में भारत की वैश्विक स्थिति को मजबूत कर सकता है।
एआई-संचालित समाधानों की कल्पना करें जो किसानों को मिट्टी के स्वास्थ्य का विश्लेषण करने और लागत के एक अंश पर फसल की पैदावार को अधिकतम करने में मदद करते हैं। किफायती एआई ऐसी प्रगति को सक्षम कर सकता है, जिससे प्रौद्योगिकी को सुलभ, सस्ती और उन लोगों के लिए उपलब्ध कराया जा सकता है जो अन्यथा डिजिटल क्रांति से वंचित रह सकते हैं।
कुलपति प्रो. रेनू विग ने इस बात पर जोर दिया कि प्रौद्योगिकी लगातार विकसित हो रही है, हमारे जीवन की गुणवत्ता में सुधार कर रही है और लगभग हर क्षेत्र में उन्नत सुविधाओं के साथ बेहतर उत्पाद पेश कर रही है। यह विकास एक चुनौती और अवसर प्रस्तुत करता है, विशेष रूप से छात्रों जैसे युवाओं के लिए, जो भविष्य की प्रौद्योगिकियों पर काम करेंगे। सम्मेलन के समन्वयक वाई.के. रावल ने प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों, नवप्रवर्तकों और युवा शोधकर्ताओं को एक साथ लाने में चैस्कॉन की उत्पत्ति और महत्व पर प्रकाश डाला।

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