देर ही तो हुई कोई अंधेर तो नहीं
शरद उपाध्याय
यात्री, तू इतने क्रोध में क्यों है। क्या बात है कि जब भी तू रेल पर सवार होता है। हमेशा गुस्से में ही नजर आता है। हरदम रेल को कोसता रहता है। कभी सीट अच्छी नहीं है, कभी तेरी सीट पर कोई बैठ गया। अब एक ट्रेन लेट होने के पीछे पगला रहा है। पगले, क्या तू नहीं जानता। भारतीय रेल राष्ट्र की जीवन रेखा है। अब ट्रेन लेट हो गई, तो हो गई। गुस्सा होने की बात क्या है। तू नासमझ है, छोटी- छोटी चीजों से परेशान हो जाता है। हर चीज़ को दिल पर ले लेता है। गया से दिल्ली तक की छोटी-सी यात्रा में एक दिन लेट होने पर घबरा गया। अरे हमारे तो रोजाना सैकड़ों ट्रेन लेट हो जाती हैं। हमने तो कभी दिल पर नहीं लिया।
पगले, इस दुनिया में सब चीज़ें अपने स्वभाव से ही गति करती हैं। द्रव्य बहता है, गैस हवा में उड़ती है। ऐसे ही लेट होना रेल का जन्मजात स्वभाव है। अपने स्वभाव के विपरीत वो कैसे जा सकती है। एक तेरी छोटी-सी इच्छा के लिए, अपने जन्मजात स्वभाव को छोड़ दे। जिस परिपाटी पर रेलवे को बरसों से गर्व है, उसे तेरे लिए त्याग दे। कैसा निष्ठुर है रे। तूने अपने को देखा कभी, आज तक कभी टाइम पर ऑफ़िस पहुंचा? कभी ऑफिस में कोई काम समय पर करके दिया। अपनी बीबी को देखा कभी। जिसके कारण, ख़ुद तू लंच के टाइम नाश्ता करता है। डिनर के टाइम लंच। और तू रेलवे को समय की पाबंदी का पाठ पढ़ा रहा है।
तेरी अगली ट्रेन तीन घंटे बाद थी और ट्रेन मात्र सवा तीन घंटे ही लेट हो गई। सेम डेट में पहुंचा रहे हैं, और क्या जान लेगा। कल तू गया में पिंडदान करते समय बड़ी दार्शनिक बातें कर रहा था। इस संसार में अपने बस में कुछ नहीं है। सब ऊपर वाले की मर्जी से होता है। तो फिर हमारी ट्रेन के पीछे क्यों पड़ रहा है। हमारे खुद के बस में नहीं है। कल पंडितजी ने तुझे समझाकर भेजा था कि क्रोध और माया-मोह से दूर रहा कर।
अब तेरी दूसरी गाड़ी छूट गयी। तो भाई रेलवे की क्या गलती है। तू टाइम से क्यों नहीं गया। हमारी ट्रेन पकड़नी थी तो एक दिन पहले आना चाहिए था। हमारी रेल तो राष्ट्र की जीवन रेखा है। हम तो समय पर चलने वाले लोग हैं। हम तेरे लिए दूसरी ट्रेन लेट करते फिरे।
और इतनी शिकायत। क्या फ़र्क पड़ा। एक दिन पहले घर पहुंच जाता तो घर पर बहिनजी के प्रवचन ही तो सुनता। रेल ने तुझे भारी क्लेश और चिकचिक से बचा लिया। यह तो नहीं कि रेलवे को धन्यवाद दे। अहसान माने कि उन्होंने तेरी जिंदगी में एक दिन शांति का दिया है। गया से चढ़ा था तो पूरी दो सौ छह हड्डियां थीं। गिनी थी के नहीं। अब दिल्ली में पूरी सही सलामत दो सौ छह ही हैंड ओवर की है। एक भी कम नहीं है। इसलिए इतना अहसानफरामोश भी मत बन। चुपचाप तत्काल में टिकट कटा और निकल ले।