For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.

कमाकर भी टमाटर खाना होता दुश्वार

06:11 AM Jul 10, 2024 IST
कमाकर भी टमाटर खाना होता दुश्वार
Advertisement

डॉ. सौरभ जैन

बचपन में बरसात के दिनों में हम पानी बाबा आया ककड़ी भुट्टे लाया गुनगुनाया करते थे। अब स्थिति काफी बदल गई है पानी बाबा ककड़ी भुट्टे तो लाता है मगर लाल-लाल टमाटर को आम आदमी की पहुंच से दूर कर देता है। इस दौर में सच्चा प्रेमी तो वही है जो चांद, तारे की बजाय टमाटर देने की ताकत रखता हो। अभी टमाटर के दामों ने बड़े राज्यों में सरकार बनाने वाले बहुमत के आंकड़े को छू लिया है, इसके दामों की गति में वृद्धि ऐसी ही रही तो यह केंद्र में सरकार बनाने वाले आंकड़ों तक पहुंच जाएगा।
पहले जब दाम बढ़ते थे तब विरोध होता था, अब जब दाम बढ़ते हैं तब समर्थन के तर्क खोज लिए जाते है। यहां बढ़ते दामों के बीच टमाटर न खाने के फायदे गिनाए जा रहे हैं। जिसे पढ़कर ऐसा लगता है मानो सब्जियां खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। बच्चे खुश हैं कि उनकी मम्मियां सब्जियों के बढ़ते दामों से टिफिन में राहत दे चुकी हैं। व्हाट्सएप समूहों पर सब्जियां खाने से होने वाले नुकसानों के शोध पत्रों का वाचन शुरू हो गया है। उम्मीद है जल्द ही इस विषय पर पीएचडी भी सामने आ सकती है।
टमाटर भीगते मौसम में अपने दामों से रुला रहा है मगर आम आदमी के आंसू बरसती बूंदों में दिखाई न पड़ रहे हैं। इतनी सारी सब्जियों में से टमाटर ही क्यों खाना है, वाले वर्ग ने भी जन्म ले लिया है। इनका मानना है कि सब्जियों के दाम बढ़ने पर मौन व्रत लेते हुए उपवास शुरू कर देना चाहिए। देश के इस आस्थावान वर्ग के अनुसार सब्जियों के दाम बढ़ने में जरूर कोई शुभ संकेत छिपा होगा। यहां हम टमाटर की चटनी नहीं बना रहे अब टमाटर हमारी चटनी बना रहा है। सीसीटीवी वाले खुश हैं कि टमाटर की बढ़ती कीमतों ने किचन गार्डन में उन्हें व्यापार दे दिया है। एक के बाद एक टमाटर के पौधों की सुरक्षा के इंतजाम किये जा रहे हैं। एक कटोरी चीनी वाला व्यवहार अब टमाटर पर लागू न होने से पड़ोसियों से संबंधों में जरूर कड़वाहट घुल गई है।
इस दौर में वे ही मेहमान अच्छे माने जा रहे हैं जो आते समय अपने संग फल और मिठाई की जगह किलो भर टमाटर, पाव भर धनिया, सौ ग्राम अदरक लेते आ रहे हैं। बिटिया की विदाई में टमाटर की टोकरी न देने पर ससुराल में ताने सुने जा सकते हैं, मास्साब को ट्यूशन फीस के साथ अदरक देने पर नम्बर मिल सकते हैं, किसी सरकारी दफ्तर में धनिया दे-लेकर ही काम बनवाया जा सकता है।
टमाटर के दाम बढ़े इस बात से हर बार की तरह सरकार का कोई लेना-देना न है। वह मानती है कि सब्जियां खाने से ही यदि बुद्धि आती तो बकरी जंगल की प्रधान सचिव होती। अब जिन राज्यों में चुनाव होना है वहां की सरकार टमाटर वितरण योजना शुरू कर सकती है। ऐसा हुआ तो टमाटर की सौ ग्राम थैली पर अपनी बड़ी-सी फोटो छपवाए नेताजी लाभ देते नजर आएंगे।

Advertisement

Advertisement
Advertisement
Advertisement
×