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मालदीव में पाकिस्तानी खेल समझना भी जरूरी

06:37 AM Mar 09, 2024 IST
मालदीव में पाकिस्तानी खेल समझना भी जरूरी
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पुष्परंजन

बाईस फरवरी, 2010 की बात है, मालदीव के तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ. मोहम्मद वहीद हसन ने अपने दिल्ली आगमन के दौरान भारतीय मीडिया को बताया कि मालदीव के युवाओं को पाकिस्तान और अफगानिस्तान में आतंकवादी समूहों द्वारा जिहाद के लिए भर्ती किया जा रहा है। डॉ. मोहम्मद वहीद हसन ने संकेत दिया कि लश्कर-ए-तैयबा, जिसे नवंबर, 2008 में मुंबई हमलों के लिए जिम्मेदार माना जाता है, मालदीव में सक्रिय था। उस समय भारतीय खुफिया ब्यूरो के सूत्रों के हवाले से बताया कि पाक समर्थित समूह के लगभग लगभग एक हज़ार कार्यकर्ता मालदीव में सक्रिय थे।
वहीद ने कट्टरपंथी संस्थानों में भाग लेने वाले संदिग्ध युवाओं को वाया भारत आने से रोकने के लिए सहायता मांगी थी। तत्कालीन उपराष्ट्रपति के प्रेस सचिव मोहम्मद जुहैर ने तब कहा था कि पाकिस्तान में 200 से 300 अपंजीकृत मालदीवियन छात्र हैं। ऐसे कई संदिग्ध वाया कोलंबो या कोच्चि मालदीव में एंट्री लेते हैं। तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ. मोहम्मद वहीद हसन ने जो कुछ फरवरी, 2010 में कहा था, वो बात आई-गई हो गई। न तो पाकिस्तान का शासन जिहादियों को तैयार करने से रोक सका, और भारत तो बस मूकदर्शक की भूमिका में था।
मालदीव-पाकिस्तान के संबंधों को समझना है तो वहां की संसद को देखिये, जिसका निर्माण पाकिस्तान ने 45 मिलियन रुपये लगाकर किया था। माले के मागू स्थित पार्लियामेंट ‘मज़लिस’ का उद्घाटन 1 अगस्त, 1998 को पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की उपस्थिति में किया गया था। उसके 19 साल बाद, 25 जून, 2017 को मालदीव के स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और उनकी पत्नी कलसूम नवाज शरीफ को आमंत्रित किया था। नवाज़ को दोबारा मालदीव बुलाने से पहले तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन 7 मई, 2015 को इस्लामाबाद भी गये थे।
देखते-देखते मालदीव, पाकिस्तान का हम प्याला-हम निवाला बन गया। राष्ट्रपति यामीन ने जिन देशों में अपने दूत भेजे, उनमें पाकिस्तान भी शामिल था। पाक सेना के तत्कालीन प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने मार्च, 2018 के अंत में मालदीव का दौरा किया था। इस समय पाकिस्तान में मालदीव के अधिकांश छात्र देशभर के विभिन्न विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में डिग्री और पाठ्यक्रम कर रहे हैं। स्थानीय दूतावास और मालदीव सरकार के रिकॉर्ड के आधार पर पंजीकरण के अनुसार, उनकी संख्या सैकड़ों में है, जो 400 से 600 अपंजीकृत तालिब मदरसों में दीक्षा ले रहे हैं, वो पूरे उपमहाद्वीप के लिए ख़तरनाक हो सकते हैं।
1965 में मालदीव एक स्वतंत्र देश बना। भारत इस द्वीपीय राष्ट्र को मान्यता देने वाला पहला देश था। 1972 में भारत ने मालदीव में अपना पहला उच्चायोग स्थापित किया, जबकि 2004 में मालदीव ने नई दिल्ली में अपना पहला पूर्ण राजनयिक मिशन खोला था। ठीक से देखा जाए तो भारत ने दो दशकों में मालदीव से उतार-चढ़ाव वाले कूटनीतिक संबंध बनाये रखा। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि चीन पर दोष मढ़ने की बजाय, भारत को अपने पड़ोसी देशों में चल रही गतिविधियों को ध्यान में रखकर दूरगामी रणनीति बनाने की ज़रूरत थी। आप मानें न मानें पाकिस्तान, चीन, सऊदी अरब और तुर्की का नेक्सस की भूमिका दिल्ली से माले के संबंध बिगाड़ने में दरपेश रही है।
बात भी सही है। भारत क्या पड़ोस से खुफिया जानकारी जुटाने में पीछे रहा है? या उसके एक्शन प्लान में कोई खोट है? इन सवालों का बेहतर उत्तर विदेश मंत्रालय ही दे सकता। चीन-मालदीव मैत्री पुल मालूम नहीं दिल्ली को कब दिखा। मालदीव की राजधानी माले को हुलहुले द्वीप से जोड़ने वाले पुल, ‘क्रॉस-सी ब्रिज’, का उद्घाटन 30 अगस्त, 2018 को किया गया था। जब यह पुल बना, उन दिनों मुइज्जू माले के मेयर थे। बताते हैं कि उसी कालखंड में चीनी राजदूत से उनकी नज़दीकियां बढ़ी थीं। यह चीन की वन बेल्ट रोड इनीशिएटिव की शुरुआत थी, मगर अफसोस नई दिल्ली चीनी कूटनीति की रफ्तार को समझ नहीं पाया। पाकिस्तान द्वारा निर्मित मालदीव की संसद और चीन द्वारा निर्मित एक ऐसा पुल, जो माले को हुलहुले द्वीप से जोड़कर वहां की साढ़े चार लाख की आबादी में छवि निर्माण कर रहा था। बावज़ूद इस ख़बर के, हम 2024 तक लगभग सोये रहे।
18 मई, 2023 को भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह मालदीव की तीन दिवसीय यात्रा पर थे। यात्रा के दौरान मालदीव राष्ट्रीय रक्षा बल (एमएनडीएफ) को एक फास्ट पेट्रोल जहाज और एक लैंडिंग क्राफ्ट असॉल्ट जहाज सौंपा। उथुरु थिला फाल्हू में एकथा हार्बर के निर्माण की आधारशिला रखी। तब राजनाथ सिंह ने कहा था कि भारत और मालदीव के बढ़ते रक्षा सहयोग को हम और सुदृढ़ करेंगे। लेकिन हमारी मिल्ट्री इंटेलिजेंस को इसका अनुमान नहीं था कि मालदीव में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के बाद सब कुछ पलट जाने वाला है। मालदीव को भारतीय सहायता की लंबी-चौड़ी फेहरिस्त है। आपदा प्रबंधन से लेकर खोज और बचाव अभियान, हाइड्रोग्राफिक मैपिंग के अलावा दोनों सेनाएं हिंद महासागर रिम एसोसिएशन और गोवा मैरीटाइम कॉन्क्लेव जैसे प्लेटफार्मों में भी सहयोग करती हैं। इसके अलावा, भारत ने मालदीव को दिये विमानों को संचालित करने के लिए पायलटों, पर्यवेक्षकों और इंजीनियरों को प्रशिक्षित किया है। इससे माले की नीतियों में कोई फर्क़ क्यों नहीं पड़ा, इसकी समीक्षा की ज़रूरत है।
यह ख़बर हैरान नहीं करती कि मालदीव ने चीन के साथ एक सैन्य सहायता समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू उसी दिशा में आगे बढ़ रहे थे। उनके बयान बार-बार एक ख़ास वोट बैंक को अड्रेस कर रहे थे। मोइज्जू ने अपना रुख दोहराया था कि उनके देश में नागरिक पोशाक में भी भारतीय सैनिकों की उपस्थिति नहीं होगी। पोशाक पहनें या न पहनें, भारतीय सैनिक नहीं रहेंगे, यह मोइज्जू ने दो टूक कह दिया था।
4 मार्च, 2024 को मालदीव के रक्षा प्रमुख मोहम्मद ग़सन मौमून और चीनी अधिकारी मेजर जनरल झांग पाओछुन ने सैन्य सहयोग पर जैसे ही हस्ताक्षर किए, इस्तांबुल से इस्लामाबाद तक का रिएक्शन देखने लायक़ था। सोमवार को राजधानी माले में सैन्य समझौते पर हस्ताक्षर के समय मंत्रालय द्वारा साझा तस्वीरों में चीनी राजदूत वांग लिशिन भी नजर आ रहे थे। मोइज्जू चीन से रक्षा समझौते में अपनी जीत देख रहे हैं, लेकिन उनका देश एक ऐसी वन-वे सुरंग में घुस चुका है, जहां से निकलना मुश्किल होगा। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, मालदीव पर चीन का 1.37 बिलियन डॉलर की देनदारी है, उसके बाद सऊदी अरब (124 मिलियन डॉलर) और भारत (123 मिलियन डॉलर) का वह कर्ज़दार है। चीनी कंपनियों ने मालदीव में 1.37 बिलियन डॉलर का अतिरिक्त निवेश किया है। इसे भी क़र्ज़ ही मानिये।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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