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रईसी के बाद ईरान

08:05 AM May 22, 2024 IST
रईसी के बाद ईरान
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मध्यपूर्व की कूटनीति व सामरिक रणनीति में खासी दखल रखने वाले ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में हुई दुखद मौत के कारणों को लेकर कयासों का दौर जारी है। निस्संदेह, राष्ट्रपति रईसी व विदेश मंत्री समेत कई महत्वपूर्ण अधिकारियों की अप्रत्याशित मौत से ईरान सदमे में है। हालांकि, इब्राहिम रईसी की गिनती ईरान की इस्लामिक क्रांति के प्रतिनिधि चेहरों व कट्टरपंथी नेता के रूप में होती रही है। खासकर ईरान में राजनीतिक विद्रोहियों के साथ क्रूरता व पिछले दिनों हिजाब विरोधी आंदोलन के दमन को लेकर उनकी आलोचना होती रही है। दरअसल, इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान मध्यपूर्व में अमेरिकी प्रभुत्व के खिलाफ सख्ती से खड़े होने वाले देश के रूप में जाना जाता है। जिसके परमाणु कार्यक्रम पर नियंत्रण के मद्देनजर अमेरिका व पश्चिमी देशों ने सख्त आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं। इस आर्थिक संकट से निकलने के लिये इब्राहिम रईसी ने भरसक प्रयास भी किये। ईरान की इस्लामिक क्रांति का अनुसरण करने वाली राजनीति में उनका कद इतना ऊंचा था कि उन्हें ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई के उत्तराधिकारी का प्रबल दावेदार माना जाता रहा है। यद्यपि ईरान की विदेश नीति और परमाणु कार्यक्रम पर 85 वर्षीय खामेनेई का ही अंतिम अधिकार रहा है। निस्संदेह रईसी के अधूरे कार्यों को उनके उत्तराधिकारियों को पूरा करना होगा। हालांकि, रईसी की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में हुई मौत में इस्राइल की भूमिका को लेकर तमाम कयास लगाए जा रहे हैं। इसकी वजह यह भी है कि कुछ समय पहले सीरिया में इस्राइली हमले में एक ईरानी जनरल के मारे जाने के बाद कुछ सप्ताह पूर्व क्रुद्ध ईरान ने इस्राइल पर सैकड़ों मिसाइलों व ड्रोन से हमले किये थे। शंका की वजह यह भी कि इस घटनाक्रम के कुछ सप्ताह बाद यह हादसा हुआ है। दरअसल, इस्राइल पर हमलावर रहने वाले हमास व हिजबुल्ला विद्रोहियों को दिये जाने वाले आर्थिक व नैतिक समर्थन के चलते ईरान हमेशा से ही इस्राइल के निशाने पर रहा है। सात अक्तूबर को इस्राइल पर हुए हमास के भीषण आक्रमण के पीछे भी ईरान का हाथ होने का आरोप लगाया जाता रहा है।
दरअसल, ईरान में इस्लामिक क्रांति के 45 साल के इतिहास में सत्ताधीशों की विदाई, मौत व दुर्घटनाओं का एक लंबा इतिहास रहा है। ऐसे में वहां इस तरह की व्यवस्था बना दी गई है कि एक शासन प्रमुख के जाने के बाद उसकी वैकल्पिक व्यवस्था तुरंत कर दी जाती है। यही वजह है ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने ईरानियों को भरोसा दिलाया है कि देश की शासन व्यवस्था में किसी तरह का व्यवधान नहीं आएगा। इसी क्रम में उन्होंने प्रथम उप-राष्ट्रपति मोहम्मद मोखबर को देश का कार्यवाहक राष्ट्रपति नियुक्त किया है। ईरानी संविधान के हिसाब से पचास दिन के भीतर नये राष्ट्रपति का चुनाव होना जरूरी है। बहरहाल, ईरान में सत्ता के इस नवीनतम घटनाक्रम पर पश्चिमी देशों तथा भारत समेत अन्य हितधारकों की निगाहें रहेंगी। उल्लेखनीय है कि पिछले हफ्ते ही नई दिल्ली व तेहरान के बीच ईरान के रणनीतिक बंदरगाह चाबहार के संचालन के लिये दस साल के अनुबंध पर हस्ताक्षर किये गए थे। दरअसल, चाबहार डील इब्राहिम रईसी की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में गिनी जाती थी। इस समझौते को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मील का पत्थर बताया था, जो भारत को अफगानिस्तान व मध्य एशियाई क्षेत्र में व्यापार संचालित करने की सुविधा प्रदान करता है। यही वजह है कि अमेरिकी वक्र दृष्टि के बावजूद ईरान व भारत ने इस समझौते को अंतिम रूप देकर अपने संबंधों को मजबूती दी है। दरअसल, विगत में ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ बेहतर संबंध विकसित कर लिये थे। यही वजह थी कि ईरान को ब्रिक्स समूह के देशों में शामिल करने के मामले में तेजी आ सकी थी। उल्लेखनीय है ब्रिक्स देशों के इस समूह में रूस, चीन, दक्षिण अफ्रीका ,ब्राजील तथा भारत शामिल हैं। विश्वास किया जाना चाहिए कि रईसी के उत्तराधिकारी के साथ भारत-ईरान संबंधों को नये आयाम मिल सकेंगे।

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