विश्वविद्यालयों में असहिष्णुता
गुजरात विश्वविद्यालय परिसर में विदेशी छात्रों की आस्था की सार्वजनिक अभिव्यक्ति को लेकर जो मारपीट हुई, वह भारतीय संस्कृति व मानवीय दृष्टिकोण से भी दुर्भाग्यपूर्ण कही जाएगी। खासकर ऐसे देश में जहां ‘वसुधैव कुटुंबकम’ और ‘अतिथि देवो भव’ की अवधारणा को सदियों प्राथमिकता दी जाती रही हो। निश्चित रूप से यह घटनाक्रम देश की छवि को दागदार करने वाला है। अच्छी बात है कि विवाद बढ़ते देख राज्य सरकार ने मामले को गंभीरता से लेते हुए सख्ती बरती है और कुछ लोगों को गिरफ्तार किया। सवाल यही है कि विदेशी छात्रों के साथ ऐसी धार्मिक असहिष्णुता क्यों? आखिर किसी अन्य धर्म के छात्र की आस्था की अभिव्यक्ति पर किसी को प्रतिक्रिया देने की आवश्यकता क्यों पड़ी? निश्चित रूप से शैक्षिक परिसरों में इस तरह की असहिष्णुता का पनपना दुर्भाग्यपूर्ण ही है। रमजान के महीने में विश्वविद्यालय परिसर में सामूहिक रूप से प्रार्थना करना सामान्य बात है क्योंकि वहां कोई उपासना स्थल मौजूद नहीं था। सवाल यह भी है कि बाहरी लोगों के हमला करने पर विश्वविद्यालय का सुरक्षा तंत्र व पुलिस समय रहते सक्रिय क्यों नहीं हो पाये। सवाल देशी-विदेशी छात्रों का नहीं है, लेकिन जब विदेशी छात्रों के मामले में किसी भी तरह की अराजकता फैलायी जाती है तो दुनिया में गलत संदेश जाता है। निस्संदेह, ऐसे घटनाक्रमों से विदेशों में भी भारत की छवि खराब होती है। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि दुनिया के तमाम देशों से विभिन्न धर्मों के छात्र हमारे उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्ययन के लिये आते हैं। ऐसे में हमारे विश्व गुरु बनने के दावे का क्या होगा? क्यों फिर विदेशी छात्र भी पढ़ाई को लेकर भारत को अपनी प्राथमिकताओं में रखेंगे? दरअसल,भारत को एशिया व अफ्रीकी देशों के छात्र इसलिये पढ़ाई के लिये चुनते रहे हैं क्योंकि माना जाता रहा है कि भारत में उच्च शिक्षा के अवसरों के साथ ही वातावरण सहिष्णुता की संस्कृति वाला रहा है। निश्चित रूप से यह घटनाक्रम सिर्फ कानून व्यवस्था का ही नहीं है बल्कि दुनिया में भारत की छवि को खराब करने वाला भी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि घटना में लिप्त लोगों से सख्ती से निबटा जाएगा।
निस्संदेह, किसी भी विश्वविद्यालय परिसर में ऐसा घटनाक्रम दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा। विगत में ऐसी घटना दिल्ली स्थित जेएनयू परिसर में भी हुई थी और छात्रों को निर्ममता से पीटा गया था। हमलावरों में बाहरी लोग भी शामिल थे। लेकिन दोषियों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई संतोषजनक नहीं रही थी। संभवत: सत्ता में वर्चस्व वाले दल के हस्तक्षेप के चलते पुलिस दबाव महसूस कर रही होगी। दरअसल, ऐसी घटनाओं की तह में जाने की जरूरत होती है। ताकि पता चल सके कि घटनाक्रम तात्कालिक घटना से प्रेरित है या फिर घटनाक्रम की सोच के पीछे नियोजित कोशिश है। लेकिन इसके बावजूद अंतर्राष्ट्रीय छवि से जुड़ी संवेदनशील घटनाओं के प्रति स्थानीय प्रशासन व पुलिस को सजग रहने की जरूरत है। निश्चित रूप से हमारे शिक्षा के परिसर सांप्रदायिक सोच के चलते तोड़फोड़, पथराव व मारपीट की घटनाओं से मुक्त होने चाहिए। यह ठीक है कि बाद में गुजरात पुलिस ने मामले में कार्रवाई में तेजी लाते हुए कुछ लोगों को गिरफ्तार किया है। इस मामले में राज्य के गृहमंत्री ने पुलिस के आला अधिकारियों के साथ बैठक करके विश्वविद्यालय प्रशासन को अतिरिक्त सुरक्षा देने वाले कदम भी उठाये हैं। लेकिन जरूरत इस बात की है कि घटना में संलिप्त अन्य लोगों के खिलाफ भी कार्रवाई हो और जांच को तार्किक परिणति तक पहुंचाया जाए। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो सके। निस्संदेह, ऐसी घटनाएं अचानक नहीं होती। मामले की पृष्ठभूमि पर भी गौर करने की जरूरत होती है। साथ ही विश्वविद्यालय परिसरों में ऐसा वातावरण होना चाहिए कि छात्र सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील व सहिष्णु बनें। साथ ही छात्र सर्वधर्म समभाव की सोच का अनुसरण करें। जिससे विश्वविद्यालय परिसरों में सभी धर्मों का आदर करने की सोच कमजोर न हो। यह बात हमारे विश्वविद्यालय परिसरों में ही नहीं, पूरे देश के लिये भी अपरिहार्य है।