श्रद्धा में समाहित हो आत्मीय अहसास
डॉ. मोनिका शर्मा
दुनिया से विदा हुए अपनों के स्मरण का मोह भी सदा बना रहता है। जीवन की जड़ों को सींचने वाले पूर्वजों की स्मृति को नमन करने का पावन भाव छूट भी कैसे सकता है? हमारी सांस्कृतिक-आध्यात्मिक विरासत में तो संसार से विदा ले चुके अपनों की स्मृतियां दोहराने के लिए कुछ दिन तक निश्चित हैं। ये दिन भौतिक रूप से हमारा साथ छोड़ चुके अपनों को आत्मीय अनुभूतियों के धरातल पर स्मरण करने को समर्पित हैं। हालांकि पितृ पक्ष से जुड़ा बहुत कुछ समय के साथ बदल गया है, पर भावनाओं के पक्ष पर कुछ नहीं बदला है। संवेदनाओं से जुड़े बदलाव की आवश्यकता भी कम ही है क्योंकि पितृ पक्ष के दिन भी हमें सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने ही आते हैं। जीवन की अनिश्चितता से मिलवाते हुए जनकल्याण में प्रवृत्त करने की सीख देने का माध्यम बनते हैं।
जुड़ाव का व्यावहारिक पक्ष
अपनों की स्मृतियों की वंदना के इस भाव से जीवन के बहुत से व्यावहारिक पहलू जुड़े हैं। यही वजह है कि पितृ पक्ष को केवल कर्मकांड से जोड़कर देखना उचित नहीं है। आज के बिखरते पारिवारिक परिवेश में देश के दूसरे हिस्सों से ही नहीं, विदेशों से भी लोग अपनों को याद करने अपने गांव-घर आते हैं। घर की दूसरी-तीसरी पीढ़ी अपने बड़ों के जीवन को जानती-समझती है। उनके सद्कर्मों की चर्चा होती है। जीवन-संघर्षों की बात करते हुए उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है। श्राद्ध से जुड़ा यह श्रद्धा भाव आज घर-परिवार को सहेजने के लिए जरूरी हो चला है। पूर्वजों की आत्मा को भी यह बात शांति पहुंचाती है कि उनकी वर्तमान पीढ़ियां और परिजन आपस में जुड़े रहें।
पारिवारिक भाव को सींचने का जतन
यों तो विशिष्ट तिथियों को किये जाने वाले श्राद्ध कर्म में दिवंगत आत्मा के निकटतम संबंधी ही अनुष्ठान करते हैं पर उनका स्मरण सगे-संबंधियों तक को हो आता है। उनकी स्मृति उस घर की मौजूदा पीढ़ी के मन के लिए बहुत सी बातों को सोचने-समझने की स्थितियां बना देती है। इसे मानवीय स्वभाव कहें या जीवन की आपाधापी, नश्वर शरीर को त्यागने के बाद निकटतम परिजनों को भी एक समय के बाद याद नहीं किया जाता। इन सूखते भावों को सींचने के लिए ही संभवतः हमारे ऋषि-मुनियों ने हर वर्ष यह एक पखवाड़ा निश्चित किया। इसीलिए तिथि के अनुसार श्रद्धा भाव से किये जाने वाले श्राद्ध अपनों की स्मृतियों को सदैव जीवित रखने का माध्यम लगते हैं। विधिपूर्वक अनुष्ठान हो या मन में स्मरण, परिजनों को अपने पूर्वजों का आशीष मिलता ही है। कहना गलत नहीं होगा संसार छोड़ चुके अपनों के पुण्य स्मरण का यह समय पारिवारिक जुड़ाव को बनाए रखने का जतन भी है।
तार्किक सोच पर भारी भावनाएं
पितरों के प्रति आभार जताने का यह अवसर किसी तर्क की कसौटी पर नहीं कसा जा सकता है। यह किसी भी घर की वर्तमान पीढ़ी के अन्तर्मन से जुड़ा पक्ष है। स्मृति के रूप में अपनों की सूक्षम उपस्थिति को अनुभव करने का विषय है। यही वजह है कि दिवंगत परिजनों के स्मरण की यह रीत केवल भारतीय संस्कृति में नहीं बल्कि संसार के बहुत समुदायों में देखने को मिलती है। संसार के कई हिस्सों में स्मृतियों को प्रणाम करने की प्रथा अलग-अलग होने के बावजूद मानवीय मोर्चे पर सब कुछ एक सा ही लगता है। इस एकरूपता के केंद्र में अपने पूर्वजों से आशीर्वाद पाने का भाव है। उनसे जुड़ी स्मृतियों को दोहराने का लगाव है। अगली पीढ़ियों के लिए अपनी जड़ों से मिली नमी को सहेज लेने का जतन है। इन सब पहलुओं पर कोई तर्क काम नहीं करता। हां, वैज्ञानिक सोच रखते हुए कर्मकाण्ड को प्राथमिकता देने के स्थान पर मानवीय भावों को चुनने से जुड़ा नयापन ही सुखद परिवर्तन कहा जाएगा। बहुत घरों में बड़े अनुष्ठानों की जगह यह भाव अपने पूर्वजों के प्रति सहज सम्मान जताने से जुड़ गया है। इसीलिए दिवंगत अपनों की स्मृति में वर्तमान पीढ़ी सत्कर्म का मार्ग चुनने और सेवाभावी व्यवहार अपनाने का प्रण भी लेने लगी है।
श्रद्धा से जुड़े सच्चे सरोकार
श्राद्ध पक्ष जुड़ा ही श्रद्धा के भाव से है। श्रद्धा का यह भाव बहुत सहज और संवेदनाओं से पूरित होता है। यही वजह है कि इससे जुड़े बदलाव से हमारी मान्यताएं भी अछूती नहीं हैं, पर मान्यताओं में आए बदलाव के कुछ पक्ष पीड़ादायक भी हैं। अपने आत्मीय पूर्वजों का श्राद्ध करने से जुड़े अनुष्ठानों में दिखावा भी देखने को मिलता है। पितृ जनों के स्मरण को उनके वंशजों द्वारा बड़े आयोजन का रूप दिया जाता है। इतना ही नहीं संसार में मौजूद बड़ी पीढ़ी की अनदेखी भी अब आम सी बात है। स्मरण रहे कि हमारी धार्मिक मान्यताओं में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है। इसीलिए दिवंगत परिजनों को याद करते हुए आपकी जीवित बड़ी पीढ़ी की सेवा- सम्मान में भी कोई कमी नहीं आनी चाहिये। यह अवसर दिवंगत आत्माओं के अच्छे कर्मों से प्रेरणा लेने और उनका आशीर्वाद पाने का है। इसलिए पुरखों की स्मृति में पौधे लगाने और जरूरतमंदों की सहायता करने का मार्ग चुन, श्राद्ध पक्ष में श्रद्धा से जुड़े सच्चे सरोकार अपनाएं।