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इंटरनेट पर बंदिश

07:46 AM Feb 21, 2024 IST
इंटरनेट पर बंदिश
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हालिया किसान आंदोलन के चलते हरियाणा व पंजाब में इंटरनेट पर लगी पाबंदी से एक बार फिर सवाल उठा है कि क्या कानून-व्यवस्था बनाये रखने के नाम पर लाखों नागरिकों का जीवन बाधित किया जा सकता है? सही मायनों में आधुनिक युग में इंटरनेट जीवन प्रवाह का पर्याय बनकर उभरा है। यहां तक कि एक मामले में सुप्रीम कोर्ट भी टिप्पणी कर चुका है कि इंटरनेट के माध्यम से सूचना तक पहुंच भारतीय संविधान के तहत दिया गया एक मौलिक अधिकार है। एक मामले में कोर्ट ने कहा कि यदि सरकार कानून व्यवस्था के नाम पर इंटरनेट के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाती है तो वह अस्थायी, एक दायरे में सीमित, कानूनी तौर पर वैध और अपरिहार्य होना चाहिए। एक संसदीय समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में इंटरनेट प्रतिबंध से जुड़े सरकार के फैसलों पर सवालिया निशान लगाते हुए इस मामले में ज्यादा पारदर्शिता अपनाने की जरूरत बतायी। हालांकि, अक्सर सरकार की दलील होती है कि यह प्रतिबंध सुरक्षा-कानून व्यवस्था को बनाये रखने के लिए लगाया गया। वैसे भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में यह बहस पुरानी है कि इंटरनेट पर प्रतिबंध कब और क्यों लगाया जाना चाहिए। दरअसल, इससे न केवल नागरिकों की दिनचर्या बुरी तरह प्रभावित होती है बल्कि कारोबार को भी करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ता है। आजकल जब छात्र बोर्ड की परीक्षाओं में लगे हैं तो उनकी परेशानियों का अंदाजा लगाना कठिन नहीं है। देश के विभिन्न भागों में गाहे-बगाहे लगने वाले इंटरनेट प्रतिबंधों को दुनिया में बड़ी गंभीरता से लिया जाता है और इसे गैर-लोकतांत्रिक कदम के तौर पर देखा जाता है। हाल के वर्षों में भारत में इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाने की प्रवृत्ति इतनी अधिक देखी गई है कि भारत को इंटरनेट शटडाउन का बादशाह तक कह दिया जाता है। बताते हैं कि वर्ष 2021 में दुनिया में इंटरनेट प्रतिबंध के जो 182 मामले दर्ज किये गए, उसमें 106 भारत में हुए।
एक समय था कि सड़कों पर आवाजाही बंद होने और परिवहन सेवा-बाजार बंद होने को जन-जीवन ठप होना कहा जाता है। लेकिन यदि आज इंटरनेट बंद हो जाए तो सही मायनों में जन-जीवन ठप हो जाता है। अभिव्यक्ति और मनोरंजन से इतर इंटरनेट सेवा बंद होने से सबसे बड़ी आर्थिक चोट पहुंचती है। एक घंटे इंटरनेट बंद होने से करोड़ों का नुकसान होता है। एक तरफ तो सरकार डिजिटल इंडिया की कामयाबी पर इतराती है। लोगों को ज्यादा से ज्यादा बैंकिंग, कारोबार, लेन-देन और पढ़ाई को ऑनलाइन करने की दुहाई देती है। वहीं दूसरी ओर एक झटके में इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा देती है। भले ही इंटरनेट और अन्य कंपनियों में पश्चिमी देशों के अपने आर्थिक हित निहित होते हैं। उनके मानवाधिकार के पैमाने अपने होते हैं। अमेरिका में अश्वेत आंदोलन के दौरान इंटरनेट पर अपरोक्ष रूप से प्रभाव डाला गया। एक पर्यावरण आंदोलन के दौरान ब्रिटेन में भी प्रतिबंध देखा गया। लेकिन इसके बावजूद उनका तर्क होता है कि इंटरनेट शटडाउन गैर-कानून और मानवाधिकारों का उल्लंघन है। भारत में खासकर जम्मू-कश्मीर में लंबे-लंबे इंटरनेट प्रतिबंधों पर वैश्विक स्तर पर सवाल उठते रहे हैं। वहीं सरकार का तर्क होता है कि प्रतिबंध की वजह चरमपंथियों के विरुद्ध होने वाले अभियान, अशांति फैलाने व राष्ट्रविरोधी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के मकसद से लगाया जाता है। वहीं आलोचक इन तर्कों को सही नहीं ठहराते हैं क्योंकि इससे किसी के मौलिक अधिकारों का अतिक्रमण होता है। साथ ही यह भी कि इसके फायदे कम और नुकसान ज्यादा होते हैं। लंबे प्रतिबंध से जहां करोड़ों लोग प्रभावित होते हैं, वहीं अरबों रुपये का नुकसान भी होता है। विगत में देखा गया है कि नागरिकता संशोधन विधेयक, किसान आंदोलन और कश्मीर में कई मौकों पर लंबे इंटरनेट प्रतिबंध लगे। जहां एक ओर राजनीति प्रेरित इंटरनेट प्रतिबंध की आलोचना होती है और इसे लोकतंत्र के लिये चुनौती बताया जाता है, वहीं सरकार दुष्प्रचार और साइबर हमलों को रोकने की दलील देती है। पश्चिमी देश मानते हैं कि साइबर स्पेस लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देने वाला होना चाहिए। वहीं कुछ सरकारें सोशल मीडिया कंपनियों की वजह से छोटे देशों के लोकतंत्र पर आने वाले खतरों की जवाबदेही तय करने की बात भी करती हैं।

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