अंतरराष्ट्रीय विद्वतजनों ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को लेकर दिये विशिष्ट व्याख्यान
कुरुक्षेत्र, 15 अक्तूबर (हप्र)
केयू सीनेट हॉल में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सुरक्षा, जलवायु, सतत विकास को लेकर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में ऑनलाइन माध्यम से जुड़े आस्ट्रेलिया से विशिष्ट अतिथि डॉ. चार्ल्स एस कोलगन ने दूसरे दिन जलवायु परिवर्तन और नीली अर्थव्यवस्था, महासागर आधारित तथा महासागरीय अर्थव्यवस्था के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र कई देशों को जोड़ने का कार्य कर रहा है। जलवायु परिवर्तन का नीली अर्थव्यवस्था पर प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि नीली अर्थव्यवस्था का क्या अर्थ है। राष्ट्रीय आय और उत्पादन में महासागर से संबंधित योगदान तथा महासागर अर्थव्यवस्था महासागर संसाधनों के उपयोग के लिए नवीन तकनीकों का अनुप्रयोग किया जाना चाहिए। मुख्यातिथि डॉ. जॉन विर्डिन, निदेशक, महासागर और तटीय नीति कार्यक्रम, निकोलस स्कूल ऑफ एनवायरनमेंट, ड्यूक यूनिवर्सिटी, डरहम, एनसी, यूएसए ने कहा कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र वह क्षेत्र है, जहां दुनिया की कुछ सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी नजर आती हैं। ऐसे में इस क्षेत्र की बढ़ती अहमियत को समझा जा सकता है। इसमें दो राय नहीं कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र वह आधार है, जिसके चारों ओर कई देश अपनी नीतियों को स्थापित और जोड़ने में लगे हैं। डॉ. बेन मिलिगन, निदेशक, सतत विकास सुधार केंद्र, न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलिया ने कहा कि समुद्री और तटीय पारिस्थितिकी तंत्र किसी भी देश की राष्ट्रीय संपदा का एक महत्वपूर्ण घटक होता है, जो उसके सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिए आवश्यक होता है। डॉ. जॉर्डन गाकुटन, सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट रिफॉर्म, ऑस्ट्रेलिया ने सतत विकास लक्ष्य की प्राप्ति में अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताएं, कानून एवं नीतियों की जानकारी साझा की। रेकम नुसंतारा फाउंडेशन, इंडोनेशिया से एनिस्या रोसडियाना ने इंडोनेशिया में महासागर विकास से संबंधी नीति के बारे में जानकारी दी। सम्मेलन के सह-संयोजक प्रोफेसर संजीव बंसल ने सम्मेलन की रिपोर्ट प्रस्तुत की और सम्मेलन संयोजक प्रोफेसर अशोक चौहान ने प्रतिभागियों से बातचीत कर अच्छी प्रतिक्रिया प्राप्त की। आयोजन सचिव डॉ. अर्चना चौधरी ने सभी का धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया।