नीयत और भाग्य
एक बार विनोबा भावे अपने भूदान आंदोलन के दौरान गांव की पाठशाला में ठहरे हुए थे। दोपहर के समय कुछ शिक्षकों को नीयत तथा नसीब पर सीख दे रहे थे। तभी एक बिलखता हुआ बालक उन सबके सामने आया और पेट पर हाथ लगाता हुआ जमीन पर लोटने लगा। यह भूखा बालक है। इसे कुछ भोजन दे दो। अचानक ही किसी ने कहा तो एक युवक जो उस पाठशाला में नया ही नियुक्त हुआ था उसने करुणा से अपना खाने का डिब्बा उस बालक को दिया। उस डिब्बे में दो रोटी और अचार था। वह सब खा गया। मटके से पानी पीकर वहीं एक दरी पर सो भी गया। अब वह युवक अपना खाली डिब्बा देखने लगा। उस समय तो गांव की पाठशाला के आसपास कोई दुकान भी नहीं होती थी। विनोबा सहित सब एक दो पल खामोश थे कि एक युवती भागती हुई आई। उसके एक हाथ मंे थाली ढकी हुई थी। पता लगा कि वह इसकी बुआ है और उस बालक के लिए हलवा-पूरी लाई है। सब माजरा जानकर उस युवती ने अनुरोध किया कि वह युवक इस खाने को ग्रहण करे। युवक भी भूखा था। उसने आनंद से सब स्वीकार किया। अब विनोबा बोले कि जिसकी नीयत में खोट नहीं है उसका भाग्य भी साथ देता है।
प्रस्तुति : पूनम पांडे